मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

जूता और जान




नेतागिरी का नाम आते ही ओके साथ एक और शब्द जुदा चला आता है और वह है जूता।
जी हाँ वाही जूता जो कभी किसी के पैरों की शान होता है तो कई लोगों की जान पर भी बन आता है।
इस बार जूते का जिक्र इस कारण से आया है इरान मैं एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक पत्रकार ने अमेरिका के रास्त्रपति बुश को जूता दे मारा। कारण ये बताया जा रहा था की वह इस बात से परेशानथा की उस आदमी के कारण उसे अपहरण करके बंदी बना दिया गया था यह वाकिया तब हुआ जब वे साझा बयान के लिए प्रेस कांफ्रेंस मैं बोल रहे थे ।
अब कुछ लोगों का यह कहना है की किसी भी देश के प्रतिनिधि के साथ एसा नहीं किया जन चाहिए तो जनाब सुन लीजिये वह देश भारत नहीं था जिसके मंत्री की कपडों की भी तलाशी की जे या फ़िर रस्त्रपिता की समाधी पर बुश अपना कुत्ता ले जा सके और हम कुछ भी न कर सके।
वहां उस पत्रकार का मानना था कि बुश हजारों लोगों कि मौत का जिम्मेदार है और उसने जूता मार दिया , अब भारत मैं ढूँढने निकलोगे तो कदम कदम पर बुश मिलेंगे जो गुनाहगार है मगर हम कुछ करते कहाँ है सिवाय यह कहने के "इनको तो जूता मारना चाहिए '

शनिवार, 6 दिसंबर 2008

मीरा बाई को मत बदनाम करो मंदिराबाई



जनाब कल एक फ़िल्म का सुनकर बड़ा दुःख हुआ ये जानकर नही किवह फ्लॉप हो गई कारण ये था के ये पिक्चर राजस्थान के चित्तोर की महीयसी मीरा के नाम को बदनाम करने का गन्दा तरीका है ।
यदि ये कामेडी है तो इसी कामेडी नहीं चाहिए । जिसमे किसी महान सख्सियत के नाम को धुल मई मिला दिया जाए ।
मदिरा बेदी अपने करियर मैं तो ज्यादा कुछ कर नहीं सकी मगर अब बचे टाइम मेंयही करने मे लगी हुई है ।
मंदिर का यह मजाक उसी इलीट जात का है जिसके तहत आमिर बाप की बिगड़ी औलादे जो भ मिले उन सब का मजाक बनती जाती है ।


वैसे भी हमारे बालीवूडवालों की तो पुराणी आदत है जा जानीलीवर और राजू श्रीवास्तव की कामेडी पर तो हसना भी आता है मगर जब ॐ शान्ति ॐ जैसी फ़िल्म में भारत कुमार मनोज कुमार का मजाक बनाया जाता है यह किसी भी नजर से सही नहीं है । माफ़ी तो दूर उल्टे उनको अपनी इज्जत बचने के न्यायलय की मदद लेनी पड़ती है ।

शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

सारे टॉप बिजनेस मेन नोन सेंस आइडिया से शुरू : आलोक पुराणिक

सारे टॉप बिजनेस मेन नोन सेंस आइडिया से शुरू हुए है और उनके आइडिये इसे थी जिनको सुनकर आपको हसना नहीं आए वो आइडिया विजनरी है ही नहीं और बिना विजनरी आइडिया के मार्केट आपको कोई पैसा नहीं देता है यह बात कही है आलोक पौराणिक जी ने जो इनदिनों नवरात्री में भोपाल में आए हुए है और हमें एड ऑन कोर्स में बिजनेस पढ़ा रहे है. पौराणिक जी ने हमें आज पहले दिन कंपनी , कोर्पोरेट और टेक ओवर पढाया है बिजनेस के बाकि मामलों पर सविस्तार से चर्चा आगे के दिनों में होगी .

शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

रूप बदल के सयाने सैया





नेटवर्क 18 के नए चेनेल कलर पर बिग बॉस नम के सीरियल की दूसरी परी शुरू हो चुकी है जिसका श्रेय शिल्पा को जाता है जो कभी अपने किस तो कभी योग तो कभी बाबा रामदेव से मिलने तो कभी इसी सीरियल मैं नस्लवादी टिप्पणी करने को लेकर चर्चा मैं आती है एक बार फ़िर अपने सीरियल के इस नए वर्सन के साथ चर्चा में है
इस बार शिल्पा अपने साथ एक राधा कृष्ण की जोड़ी को लेकर आई है इस जोड़ी के कृष्ण है राहुल महाजन और राधा बनी है जाने मने गेंगस्टर अबू सलेम की प्रेमिका मोनिका बेदी है जिन्होंने कुछ समय पहले ही जेलों से मुक्ति पाई है. जनाब दुनिया कहीं है कि ये मोतरमा अबू सलेम की प्रेमिका है जिनके दम पर ही इनको इन्दास्तारी में कई बार काम मिला है वहीं इन पर भोपाल में फर्जी पासपोर्ट का मामला भी दर्ज है मगर क्या हो सकता है अब वे तो बइज्जत बरी कर दिया है और उनके साथ क्या हुआ इसके किस्से अब इस शो में सुनाये जा रहे है ताकि जनता उन्हें सही समझ सके.
अब हम हमारे कान्हा की बात भी कर लेते है हमारे कान्हा बने है ये वे ही कन्हा थे जिनके पिता की राजनीती मैं काफी चलती थे मगर अब सारा परिवार मारा मारा है।


ये कहना इसे है जो अपने मृत पिता को तर्पण देने से पहले नशा करने के लिए रूक गए और इसी चक्कर मैं इनके सेक्रेटरी की भी जान चली गई. इसके बाद भी जैसे तैसे मामला रफा दफा किया गया तो कुछ दिनों मैं ही ये महाशय अपनी नवेली पत्नी के झगड़ पड़े और एक बार फ़िर सुर्खियों में आ गए . उसके बाद अब ये जनाब फ़िर नए अवतार में आए है ये रूप है श्रीकृष्ण का . नाटक की तरह चलने वाले इस सीरियल के बहाने ही सही चर्चा में आ गए है मीडिया में उनके प्रेम के चर्चे जारी है आज हमारे देश में एक नया वर्ग तैयार हो रहा है जो न तो भारत का रहा है और न ही विदेशी बन पाया है . इसी कारण इन युवाओं की दशा दो कश्तियों पर पाँव रख कर चलने वाले के जैसी हो गई है सच तो ये है की इस राधा कृष्ण की कहानी का अंत भी जमन जनता है ।

मंगलवार, 2 सितंबर 2008

बक बक हमारा जनम जात अधिकार है

जी हा जनाब काया कह रहे है किसी और से मत कहना वरना पागल समझेगा?
लो अब कारन भी पूछते है आप तो ठीक है हम ही बता देते है हम कह रहे है कि बक बक करना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है . यह अधिकार इतना पुराना है कि इसके बारे में अब में क्या कहू बताना तो नहीं चाहिए लेकीन बता देते है कि हम सभी को ये अधिकार अपनी माता के पलने में ही मिल जाता है . बचपन में बच्चा सोता सोता आआआना ऊऊ करता है तो माता पिता कितना खुश होते है कि हमारा बच्चा बोलना सिख रहा है मगर उनको क्या पता है कि वह क्या कहना चाह रहा है .
खेर उसके बाद कुछ बड़ा होने पर भी दोस्तों के साथ कभी अलग अपनी इस बक बक को छुट ही नहीं पाती है स्कुल में टीचर का गुस्सा दुसरे बच्चों पर तो घर में माँ बाप का गुस्सा छोटे बड़े बहिनों पर निकलता ही रहता है .
ऐसी बात में है कि कई खामोशी पसंद बच्चे भी होते है जो चुप चाप अपना काम कर लेते है मगर एक बात उनके साथ भी होती है कि उन्हें भी जब भी मौका मिलता है अपनी कुंठाओं को निकलने में बाज नहीं आते है बचपने के बाद धीरे धीरे लोग बड़े हो जाते है मगर उनमे से कई इसे भी होते है बड़े होकर भी बड़े नहीं हो पाते है उनके बड़े होने पर भी ये बच्चों वाली आदत छूट नहीं पाती है. और कुछ लोगों में तो ये कला समय के साथ साथ बाद ही जाती है और वे इतनी बक बक करते है कि लोग उन्हें नेता मानने लग जाते है.
तो भइया ऐसे लोग नेता बनने के बाद भी कहाँ इस आदत को छोड़ पाते है और जैसे ही इस आग में चुनावी घी पड़ जाता है तो बेचारे आम जनता के जलने का वक्त शुरू हो जाता है. पुरे पॉँच साल तक जनता इनके पीछे दौड़ती है बाकि के कुछ दिन ये भी जनता के दरवाजे चले जाते है मगर वहां भी बक बक से नहीं चूकते है जनता बेचरी चाहती है कि जैसे भी हो इस बक बक से साथ छूटे और इस ऊहापोह की दशा में वोट चाहो तो ले लो भेजा तो मत खाओ की मान्यता पर वोट मिल जाते है मगर यहाँ एक बात और बता देना जरूरी है कि इन दिनों बक बक का दौर चल रहा है एक तरफ़ जम्मू कु बक बक दूसरी तरफ़ उडीसा कि तो तीसरी तरफ़ गोरखा लैण्ड की बक बक और अब बिहार और सिंगुर भी उसमे शामिल हो गया है
जाते जाते एक बात और बता दे इन दिनों एम पी और राजस्थान में भी बक बक के बड़े अवसर उपलब्ध है दोनों राज्यों में चुनाव है यहाँ शिवराज सिंह आशीवाद के बहने बक बक करने निकले है तो राजस्थान में वसुंधरा अपने बचे काम को समेटने में लगी है तो वहां बक बक का जिम्मा विपक्ष के सी पी जोशी ने उठाया है उनको मुकाबले की टक्कर देने के बसपा ने तो कोई भारी काम नहीं किया मगर राम विलाश पासवान जी को क्या हो गया कि उनको बिहार की बाढ़ में राजस्थान की याद आ गई और वे टपक से पुष्कर आ पहुचे . हाँ जनाब वहीं पुष्कर जहाँ देश का सबसे बड़ा ब्रम्हा मन्दिर है और पवित्र सरोवर हैं जहाँ पुरखों का पिंडदान भी क्या जाता है ताकि उनकी आत्मा को शान्ति मिल सके.
पुष्कर में आकर भी कई लोगों को शान्ति नहीं मिला पाती है और उनकी जनम जात वाली बक बक कि आदत नहीं छूट पाती है अब पासवान साहब यहाँ आए तो थे हरी बहजन को और ओटन लगे कपास साफ कहे तो चोर की दाढ़ी में तिनका नियत का खोट जल्दी पकड़ा जाता है इसमे भी बक बक का बड़ा योगदान रहा जनाब यहाँ आकर उस राज्य में बांग्लादेशियों की वकालत कर गए है जो इनकी वजह से सबसे ज्यादा परशानी में है जहां देश के सबसे ज्याद रिफ्यूजी है जनाब ने सिमी पर प्रतिबन्ध के खिलाफ बजरंग दल पर रोक की मांग की पिछडे सवर्णों को आरक्षण से लगाकर परमाणु करार सब पर जम कर बक बक की यहाँ तक की मायावती पर दलितों को ठगने का आरोप लगाया और बिहार बाढ़ पर नीतिश को नाकाम बताया. ऐसे कई अनेक मुद्दों पर लामा कर बक बक की भाई कहना यही है कि
चुप रहे तो अच्छा है सो मौन का भी लाभ है वरना कर बार जीभ तो गुस्ताखी कर जाती है और सज़ा बेचारे सर को भुगतनी पड़ती है
आख़िर भारत में रहने का यही तो फायदा है कि बक बक पर पाबन्दी नहीं है यहाँ वरना तो हम कब के मर गए होते

दोस्ती बड़ी ही हसीं चीज है




माखनलाल विश्वविद्यालय से पिछले एक साल मैं काफी ज्यादा प्यार मिला जिसे हम अपने कंधो पर घूम रहे है जी करता है कि हम उसे चुका दे, मगर अब किसी को इसकी जरूरत नहीं है. सो हम इस पोटली को अपने साथ लादे जा रहे है .

गुरुवार, 28 अगस्त 2008

उडीसा में बढ़ते 'बजरंगी'

उडीसा के सुंदरगढ़ जिले से राउरकेला में अभी भगवान हनुमान की एक भव्य प्रतिमा बनाई जा रही है इस प्रतिमा का निर्माण हरिद्वार में बनी भगवान् शिव की प्रतिमा के सामान ही भव्य होगा जिसे सुंदर वन में स्थापित किया जायगा जहाँ पर बारह एकड़ में उद्यान का निर्माण कराया जा रहा है इसकी उचाइ चोहत्तर फीट की होगी.
भाई इस पर हमें रामायण की वह चौपाई याद आ गई जिसमे कहा गया है कि "जस जस सूरमा बदन बढ़ावा तासु दुगुन कपि रूप दिखावा" हमें तो भाई आज के ये हाल भी बिलकूल वैसे ही लग रहे है जैसे रामायण के लंका के युद्ध में थे. भाई आज भी तो जहाँ कई लोगों की संकीर्ण मानसिकता लोकतंत्र को चलने का प्रयास करते है तो उनसे भी बड़े रूप में हमारा भाईचारा सामने आता है.
मगर क्यो एक दूसरे के खिलाफ हथियार उठाने कि नौबत आती है? आखिर क्यो कोई ज्यादती इस हद तक पहुँच जाती है जहाँ से कोई भी व्यक्ति सिर्फ़ एक ही राह पर जाता है और वो राह होती है हथियार उठाने की. आज हमारे सामने आज़ादी से लगाकर अज तक के कई उदहारण है जहाँ हमारे देश कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के बाद भी एक दी नहीं बड़े जन समूहों को अपने हक़ की जंग लड़ने के लिए हथियारों का सहारा लेना पड़ा है.
इसके बावजूद जो लोग इस दशा का फायदा बखूबी उठा लेते है वे लोग इतने शातिर होते है कि वे परेशानियों से ट्रस्ट और हमारी व्यवस्था से परेशान जनता से वह सबकुछ करा लेते है जो वो चाहते है और जब उनका स्वत पूरा हो जाए तो उन्हें अपने स्वाथों के हवं में स्वाहा करने से नहीं चुकते है.
एसा करने में कई लोग बड़े महीर थे जो पहले देश की जनता का प्रयोग करके उन्हें देश की रक्षा करने वाली बंदूकों के सामने खड़ा कर देते है इस काम को करने में मज़हबों का जम कर सहारा लिया जाता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति धरम और परिवार के नाम पर ही सबसे ज्यादा हिंसक बन जाता है यदि उसे किसी से खतरा हो तो वो धरम युद्ध से लगाकर जेहाद तक कर लेता है.
इसी आधार पर पहले सिक्खों को खालिस्तान के नाम पर बहलाया गया इसी क्रम में कुछ नए प्रयोग शिवसेना ने महारास्त्र में, भाजपा ने राम मन्दिर, गुजरात के गोधरा के अलावा कई मामले में मुस्लिमो ने भी किया है. गुजरात की हिंदू प्रयोगशाला के अस्तित्व को हम मानते है तो कश्मीर में पिछले दो दशको से चलने वाले कोहराम को भी नकारा नहीं जा सकता है. वहीं समय समय पर ईसाई मिशनरियों के पवित्र उद्देश्य के दूसरे पक्ष धर्मान्तरण से इंकार नहीं किया जा सकता है. वहीं सिमी के शक के बाद कानपूर के धमाके भी हमने सुने है.
कहना बस यही है कि भाई हिंद देश के निवासी सभी जन एक है तो फ़िर क्यो हम समय समय पर बहक जाते है आखिर क्या हो जाता है कि हम हैवानियत पर उतर आते है और सबकुछ भूल जाते है बस हम सभी चाहे जिस किसी भी धर्म या मज़हब के हो अपने दायरों को समझाना चाहिए और दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं मरने चाहिए क्यो कि उनके भी हाथ है और पत्थर मरना तो मानव ने आदि काल से ही सिख लिया है तो सामने वाला भी पत्थर मार सकता है तब हमारा जो खून निकलेगा वह भी सामने वाले की तरह लाल ही होगा.

बुधवार, 27 अगस्त 2008

अब 'शिवराज' को 'नरेन्द्र' का गांडीव भी चाहिए होगा

भारत में लोकतंत्र की स्थापना के बाद यूँ तो कई सारी पार्टियों ने समय-समय पर कई यादगार जीत हासिल की होगी मगर फ़िर भी कई इसी जीते रही है जो हमेशा लोगो के साथ साथ राजनेताओ को याद आती रही है.
इनमे से एक ख़ास जीत थी पिछले चुनावों में गुजरात में मुख्यमंत्री नरेद्र भाई मोदी की एतिहासिक जीत जिसने नरेन्द्र मोदी के कद को भाजपा के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया. कहा तो यह भी जाने लगा की नरेन्द्र मोदी कहीं पार्टी से भी बड़े ना बन जाए मगर मोदी ने कहा था की माँ तो माँ होती है और उसका बेटा कितना भी बड़ा ही जाए हमेशा उसके आगे छोटा ही रहता है. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है की नरेन्द्र मोदी ने यह जीत गुजरात में विरोधी पार्टियों, मुस्लिम समुदायों और कही कही पर तो मिडिया के चरम विरोध के बावजूद भी मैदान जीता था
और वह जीत भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र में हार के बाद की यह बड़ी जीत थी जो सभी की आंखों में बस गई पार्टी के इतिहास में मानक जीत का नवीनतम दर्जा प्राप्त कर चुकी है इससे पूर्व जीत का मानक अयोध्या के बाद मिली जीत को माना जाता रहा था.
इसके बाद आगामी चुनावो के लिए भाजपा ने न सिर्फ़ दुसरे स्थानों पर जीत के लिए नरेन्द्र मोदी को तुरुप के इक्के की भांति इस्तेमाल किया वरन उन्हें पार्टी का बाद "प्रोफेसर" माना गया. अब मध्य प्रदेश में भी आगामी चुनावों में भाजपा शायद कोई कमी नहीं रखना चाहती है इसी के मद्देनज़र भाजपा ने प्रदेश में आशीर्वाद यात्रा के लिए नरेन्द्रभाई मोदी का वाही रथ मंगाया है जिस पर सवार होकर उन्होंने पूरे गुजरात में यात्रा की और अपने विरोधियों के चक्रव्यूह को तोड़ दिया दिखाया.
अब उन्ही की तर्ज़ पर यह रथ मध्य प्रदेश मंगाया गया है जहाँ आज से मुख्यमंत्री को लालकृष्ण अडवाणी यात्रा का आरम्भ कराने वाले है. मगर यहाँ यह बात सोचने वाली है कि रथ यात्रा के मामले में अडवाणी जी की भारत उदय यात्रा का असर उल्टा ही रहा है. अबकी बार अडवाणी के शुकून और नारेद्रभई मोदी के रथ के सहारे शिवराज सिंह को प्रदेश के महाभारत में जीत मिलेगी या नहीं इसका पता तो जनता के बीच चुनावों के बाद ही हो सकेगा

सोमवार, 25 अगस्त 2008

चाय वाले की तो दादी मर गई...............


अरे भाई मैं किसी का मजाक कहाँ बना रहा हूँ मैं तो सच बता रहा हूँ ।


जब से भोपाल मैं आकर बसा हूँ कुछ गिने चुने स्टालों पर ही चाय पीता


हूँ उनमे से ही एक है हमारे ख़ास चाय वाले जिनकी चाय की दूकान कह दो या थडी कह दो या फ़िर जो जी मैं आए सो कह दो वह भोपाल के प्राइम लोकेशन पर है। शहर के आई एस ओ मान्यता प्राप्त रेलवे स्टेसन हबीबगंज के ठीक सामने के चंद दुकानों मैं से ख़ास है हमारे खास की होटल। सर्दियों में जब अक्सर देर से घर जन होता था या फ़िर रात को घूमने का मन करता तो यहाँ की चुस्कियों से भला कहाँ चूका जाता था. कभी कभार हमारे एक सीनियर सर थे उनको भी चाय की तलब लगती थी या फ़िर जब उन्हें अपनी बड़े होने के कर्तव्य का लिहाज़ आ जाता था तो इस क़र्ज़ को चुकाने के लिए हमें चाय पिलाने ले जाते थे.



ये तो थी तब की बात जब हम छोटे बोले तो बच्चे नहीं जूनियर हुआ करते थे जिसे बाद मैं न किसी ने याद दिलाया,


और न ही हमें भी याद आया ........................


और इसके एक अरसे बाद कल शाम को हम फ़िर उसी सड़क से गुजर रहे थे कि रूक गए मन किया चलो फ़िर वह बचपन वाली चाय पी जाय। गाड़ी रोकी और होटल पर पहुचे तो होटल वाला एक पल तक देखता रहा गया हम भी उसकी शक्ल में कुछ ढूँढने लगे चंद ही पल बाद उन्होने कहा कि अरे आप यहाँ ? कैसे आना हुआ ?


हमने भी कह दिया बस यूँ ही आ गए है. हमारे मन मैं मौजूद प्रश्न को भी हमने दाग दिया कि आपके सिर को क्या हुआ ? उसने बड़ी गम्भिरता के साथ जवाब दिया कि दादीजी नहीं रही है।



खेर मैं उनसे उम्र मैं काफी छोटा और अश्वासन के लिए मेरे पास कुछ नहीं था। मगर इसके चंद समय पहले मेरे मन में था कि कहीं एसा तो नहीं कि ये भी आमिर खान से प्रभावित हो गए हो जैसा इन दिनो कई युवा लगते है. जनाब क्या कहे सर मुंडवा के अपने आप को गज़नी समझने लगते है.



उनको पता नहीं आमिर की तरह हर कोई कामयाब नहीं होता, उनके भी क्या कहने जब फ़ैसला पब्लिक को करना हो तो कुछ भी हो सकता है जैसा मंगल पाण्डेय के साथ हुआ था



गुरुवार, 21 अगस्त 2008

आख़िर उनको आ ही गया, खुदा का बुलावा

लिम्का बुक में सबसे बडी उम्र के व्यक्ति के रूप में दर्जा प्राप्त हबीब मियां भारत के ज्ञात सबसे बुजुर्ग है सफ़ेदकुर्ते पायजामे में साधारण रूप से रहने वाले अपने आप में अद्वितीय है. जो दो बार हज जा चुके है और छह पुश्तों को देख चुके है उनका भी कहना था "खुदा के घर भी नहीं जायेंगे बिन बुलावे के"
और दो दिन पहले वो मुक्कम्मल वक्त आ ही गया जब खुदा को उनको बुलावा भेजना था और उन्होंने बिना किसी देर के इस मुस्किल और तकलीफों से भरी इस दुनिया जिसमे आतंकियों ने जीना मुहाल कर रखा था पल भर में छोड़ दी.
जिंदगी को वे एक पाठ मानते थे, हर साल अपने जन्मदिन को बड़ी धूमधाम से मानते थे, मगर इस बार जब से जयपुर में इस साल के आरम्भ में मई माह में जगह जगह पर ब्लास्ट हुए तो वो टूट से गए.

इस दौरान जयपुर के चांदपोल, छोटी चौपर, त्रिपोलिया बाज़ार, हवा महल, बड़ी चौपर , जोहरी बाज़ार और हनुमान मन्दिर में जो ब्लास्ट हुए वे हबीब साहब को सदमा लगा. उन्हें लगने लगा था की शांत से रहने वाले उनके शहर भोपाल को ये किसकी नज़र लगी है. शायद गुलाबी नगर को किसी की बुरी नज़र लग गई है उन्होंने अपने जम्दीन के जश्न से बचते हुए कहा था जब मेरे शहर का ये हाल हो तो कैसा जश्न? यही हाल उनका अहमदाबाद और दूसरी जगह के ब्लास्ट के बाद हुआ था और वे शायद अन्दर ही अन्दर इन सभी जख्मों से टूटते जा रहे थे.

उम्र के उस पड़ाव में भी उनके दांत बिल्कुल सही थे और उनको कोई बड़ी बीमार नहीं थी संयमित जीवन के मामले में उनका जीवन बड़ा सादा था. उनकी जिन्दगी का सबसे बड़ा पल वह था जब जयपुर में राजस्थान दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में आने पर पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे कलाम उनसे व्यक्तिगत तौर पर आकर मिले थे, हबीब मियां का जीवन कूल मिला हम सभी लोगों के लिए एक उदहारण है कि उम्र के इस पड़ाव में भी उन्हें देश कि इतनी फिक्र थी जब कई लोग देश में भ्रष्टाचार और आतंकवाद जैसे कुकृत्यों में संलग्न है उनके लिए हबीब मियां का जीवन काफी कुछ सबक देने वाला है..............

बुधवार, 20 अगस्त 2008

ग्लोबल शिल्पा इन ग्रेट इंडियन बिग बोस मिस्ट्री


वो आई तो दिल वालों के दिल का करार और
यूपी बिहार लूटने मगर वह यहीं नहीं रुकी ?
चंद सालों में बॉलीवुड में कुछ सफल और ज्यादातर असफल फिल्म करने के बाद वो हॉलीवुड का ख्वाब देखने लगी और जल्द ही उन्हें ये मौका भी मिल गया और उसने इस मौके को इसे भुनाया कि सारा मुल्क एक स्वर में उसके साथ खड़ा हो गया है और जब उसे पता चला कोई कुछ भी नहीं कर पाया और वो बेवजह ही तब तक वो एक ग्लोबल एक्ट्रेस का दर्जा पा चूकी थी।
शायद आप जान गए होंगे कि

मैं किस की बात कर रहा हूँ फ़िर भी बता देता हूँ कि यहाँ तारीफ शिल्पा शेट्टी के हो रही है. और उनके बिग बॉस से लगा कर गैरी रिचर्ड्स के साथ चुम्बन प्रकरण से लगाकर बाबा रामदेव की शिष्य बनकर योग को और प्रोत्साहीत करने की रही हो, उनसे एक बात तो सभी को समझ लेना चाहिए कि मौके को कैसे भूनना है यह जानना हो तो उनसे सीखें।
पिछले दिनों नेटवर्क एटीन के नए चेंनेल "कलर" का जोर शोर से आरम्भ हुआ और देखते ही देखते उसके कार्यक्रम अपना जादू करने लगे है. उन सभी कार्यक्रमों से एक कदम आगे का कार्यक्रम लेकर लौटी शिल्पा शेट्टी।
उनके इस कार्यक्रम में प्रोग्राम् से ज्यादा उनकी काया दिखाई देती है।

अगर बात शो के कायदे कानून की करें तो देश के बड़े वर्ग की समझ से परे है, यहाँ तक कि सास बहु के सीरियल में महारथ प्राप्त महिलाएं भी इस मामले में पानी भरती नजर आ रही है।
खैर फ़िर भी कॉमेडी किंग फेम अहसान कुरैशी अब हँसाने के बाद दुसरे रोल में आए है और पुरे देश की नजरों में कभी किरकिरी बन चुकी जेड गुड्डी को इस बार शिल्पा शेट्टी समेत सभी आयोजको ने गेस्ट रोल के लिए बुलाया है इनके आलावा एक बड़ी शख्सियत भी इस शो के जरिये अपने एक्टिंग के करियर की दूसरी परी शुरू करने जा रही है हालाँकि उसने पहले ही शो में पुलिस और प्रशासन की मुस्किले बढ़ा दी है अबू सलेम की प्रेमिका मोनिका बेदी भी इस शो में शिरकत कर रही है।

बटोर इससे चनेल को टीआरपी advertisment, पब्लिक को entartenment, मिडिया को exitment, शिल्पा को compliment मिल जाएगा।
अब देखना ये है कि इस ग्लोबल शिल्पा को ज्यादातर बोले तो रुरल इंडिया क्या रेस्पोंस देता है।

मनमोहन को भारी पड़ सकती है ये गांधीगिरी

इन दिनों मौसम के हाल बड़े बुरे है। भारत से लगाकर पाकिस्तान सभी जगह मारामारी मची हुयी है। लाहौर से लगाकर दिल्ली और कश्मीर तक सब जगहों पर बरसात तो हो रही है लेकिन पानी की बजाय किसी और चीज की ?

और उधर सरहद पार के जिन्ना के दिन भी अमन से नहीं कट रहे है . पडौसी की क्या बात करीं अपने घर को ही ले लो तो अहमदाबाद से लगाकर सुरह सभी जगह रह रह कर जख्म मिलते जा रहे है और तो और इन सब की परेशानी ख़त्म ही नहीं हुयी थी कि कशमीर में अमरनाथ स्रांयन बोर्ड को जमीन देकर नया शिगूफा शुरू कर दिया इसके पहले नोट के बदले वोट हिट स्टोरी बना हुआ था
इसी हीत स्टोरी के क्लायमेक्स से एक नई कहानी का जन्मा हुआ जो आगे चल कर अमरनाथ के नाम पर कशमीर में परेशानी का सबब बनी.
मनमोहन सरकार ने अपनी कुर्सी बचने के लिए जो किया उस महान घटना का एक हिस्सा यह भी था कि कशमीर के राजनीती के पहरेदारों ने इसको प्रोत्साहन दिया था और समर्थन दिया. मगर किस कीमत पर ? क्या उसी कीमत पर जो अब हमारे सामने कश्मीर में दिखाई दे रही है?
मनमोहन सरकर को समर्थन देने के बाद कश्मीर में अमरनाथ मुद्दे ने अपना रंग दिखाना शुरू किया और देखते ही देखते सारा का सारा कश्मीर जलने लगा कई लोग मारे गए शान्ति के लिए सेना का सहारा लिए गया तो सेना की कार्यवाही का नतीजा उनके मुखिया को भुगतना पड़ा.
जब तक हालात पुरे नहीं बिगड़ गए और ये जमीन का मसला ज़मीर का नहीं बन गया तब तक वहां की सारी पार्टियाँ इस आग में भाड़ झोंकते रहे. और जा ये आग वहां की जनता में कौम और ज़मीर तक नहीं पहुची सब लोग लगे रहे इस आग को हवा देने में .

केन्द्र सरकार शुरू से लगाकर इस मुद्दे से दूर रही है ऐसा लगता है कि मानो न्यूक्लियर डील के मामले में मनमोहन सरकार इतनी ज्यादा खो गई कि उसे इस मुद्दे की घम्भिरता जरा भी समझ में नहीं आई. इस सम्बन्ध में या तो सरकार मुगालते में है कि यह ज्यादा बड़ी समस्या नहीं है या फ़िर इस मामले में मनमोहन सिंह गांधीगिरी दिखा रहे है.
इसके बीच बीच सुरक्षा एजेंसियां ये कहती रही है कि इससे आन्तरिक सुरक्षा को खतरा बढ़ रहा है मगर उनकी सुने कौन? अल्गाव्वावी इन दिनों अपने चरम पर है उनके एक नेता सैय्यद अली शाह गिलानी ने जम्मू कश्मीर को पाक में मिलाने की जरूरत तक बता दी. पीडीपी के हवाले से महबूबा मुफ्ती भी कहे तो कुछ नहीं है मगर मुज़फ्फराबाद मार्च का समर्थन करते है और तो और पुलिश फायरिंग में मरे गए हुर्रियत के एक नेता के जनाजे में हिंदुस्तान में पकिस्तान के जयकारे लगते है और .......................
इस नज़ारे को सारा देश कातर नजरों से देखता रहता है . आख़िर हम कर भी क्या सकते है हम तो एक बार चुन कर भेजते है चाहे पॉँच साल तक रहे या चले जायें. परमाणु समझौता करें या फ़िर परमाणु परीक्षण हमें कौन पूंछता है? आजाद देश में भी हमसे पूछता कौन है न नेहरू और न ही मन मोहन. खेर नेहरू के समत पर कोई तो सरदार पटेल थे जिन्होंने पूरे देश को एक सूत्र में बंधे रखा मगर अब तो दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आता है और इसे में अगर कोई बेचारा 'सरदार' की तर्ज़ पर बात करें तो लालू जैसे कई नेता है जो उसे "असरदार" होने ही नहीं देते है.

बुधवार, 13 अगस्त 2008

अभिनव उवाच

दोस्तों और पाठकों


इन दिनों देश में हर तरफ़ एक ही नाम का चर्चा हो रहा है। जो बीजिंग से लगाकर देश के हर कोने में छाया हुआ है।

रातों-रात सफलता के नए कीर्तिमान कायम करने वाले अभिनव बिंद्रा को जानने का एक और मौका आपके लिए हम ढूंढ़ लाया हूँ अभिनव को जानने के लिए क्लिक करें.



मंगलवार, 12 अगस्त 2008

'खिलाड़ी' बोला बिंद्रा इज किंग

इस बार के ओलंपिक शुरूआती दौर में तो हमारे खिलाड़ी भी टीम इंडिया की तरह ही ढहते जा रहे है ऐसे में अभिनव बिंद्रा ने पहली बार इतिहास की गल्पों के से खिलाफत करते हुए जो नई कहानी लिखी है वह सभी भारतियों के दिलों में नया जोश पैदा करने वाली है।





इसके बाद जो हुआ वह किसी से भी छुपा हुआ नहीं है। महंगा माना जाने वाला ये खेल कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठोर के बाद एक बार फ़िर सुर्खियों में आ गया. पहले बात रजत पदक की थी मगर पहली मर्तबा इस बार बिंद्रा ने सोने पर निशाना साधा और उसे अर्जुन की तरह भेद दिखाया. सभी समाचार चैनलों के साथ अखबरों के पहले पन्ने इसी की चर्चा से पते थे पता नहीं इस समय वे लोग कहाँ गए जो अक्सर इस बात का रोना रोते रहते है कि मीडिया क्रिकेट के आगे अन्य खेलों को प्राथमिकता नहीं देते है. हर मीडिया में बस एक ही नाम था अभिनव . और यह अभिनव हर न्यूज़ पर भारी पड़ रहा था कोटा में मन्दिर की सीडियां धसने, श्रीनगर में गोलाबारी, परमाणु करार और वोट के बदले नोट सभी अभिनव के अभिनव इतिहास के आगे काफी हल्के थे





राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री समेत सभी आला हस्तियों ने अभिनव को बधाइयाँ दी. खेर राजनेता ऐसे मौके चुकते ही कब है जब नेशनल मीडिया में उनकी बाइट आए.
जरा बात अब हमारे नेताजी की कर लेते है
हर खेल के नाम पर झंडा लिए खड़े हो जाते है. जो बात बेबात अक्सर अपना गला फाड़ने से कभी नहीं चुकते है और ऐसे मौकों पर जहाँ से उनको जरा सा भी क्रेडिट मिलने वाला हो तो लपक के हर बार गर्व से अपना सीना चौडा कर देते है जैसे कि उन्होंने कोई बड़ा तीर मार लिया हो. चाहे मुद्दा उन्हें पता हो या ना भी हो.
बेचारा 'रिपोर्टर' उसे ख़ुद बताना पड़ता है कि अक्सर मामला क्या है?




एक बात और भी हुयी इसी दौरान कि सिंह इज किंग की रिलीज के बाद आरंभिक सफलता के सेलेब्रेसन के अवसर पर खिलाड़ीयों के खिलाड़ी कहे या फ़िर हालिया रिलीज शो खतरों के खिलाड़ी अक्षय कुमार ने खुशियों की शाम में ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीते अभिनव बिन्द्रा के नाम कर दी। उन्होंने कहा कि रीयल किंग इज अभिनव बिंद्रा, जिनकी वजह से 28 सालों के बाद देश को स्वर्ण पदक मिला है । एक्टर तो पर्दे पर ही किंग होते हैं, मगर अभिनव ने अपनी मेहनत और लगन साबित किया कि वे ही रियल किंग हैं।
अब जनाब राज्यवर्धन साहब तो इस बार खास नहीं कर पाए मगर फ़िर भी

उम्मीदों पर दुनिया टिकी है जल्द ही किसी अच्छी ख़बर कि आशा की जा सकती है.

सोमवार, 11 अगस्त 2008

लिबास कहें हम एक है

ड्रेस का विवाद
ओलंपिक के आरम्भ के अवसर पर बीजिंग में आयोजित मार्च पस्त में जब कर्नल राज्यवर्धन सिंह तिरंगा थामे आगे आगे चल रहे थे तो हर किसी हिन्दुस्तानी का सीना गर्व से चौडा हो गया होगा. मगर इसके बाद की खबर सभी भारतियों को ठेस पहुँचने वाली रही जिसमे ये बताया गया की इस परेड में शामिल होने वाले सभी खिलाडियों को विशेष वेशभूषा के लिए कहा गया था मगर वैसा उन्होंने किया ही नहीं था. और बात हम महिला खिलाडियों की करीं तो सानिया मिर्जा और सुनीता राव ने किसी भी नियम का ख्याल नहीं रखा. उन्हें साडी पहनने के लिए कहा गया था मगर वे वहां जींस में मार्च कर रही थी .
इस मामले के बाद कलमाडी साहब को आगे आकर ये दलील देनी पड़ी कि खिलाड़ियों के पास प्रेक्टिस के बाद समय नहीं था कि वे साडी पहन सके वहीं नेहा अग्रवाल की साडी का रंग भी फेशनेबल था. और अब बात उन महाशयों की भी हो जाए जो पूरी तरह से इस समारोह से गायब ही थे जैसे प्रार्थना से ड्रेस के चक्कर में कई बच्चे बंक मार देते है.
जनाब ये हालत बिल्कुल हमारे डिपार्टमेन्ट के जैसे ही है और यही देश के भी. दरअसल बात ये है न की अब हम इतने मोर्डन हो चुके है कि अब चड़े न दूजो रंग वाले हालत है
हम जो है वो बनना नहीं चाहते है और जो नहीं है वह ख़ुद को बताना चाहते है.
अरे भाई हमारे लिबास तो ऐसे इसलिए रखे गए थे कि हम दुनिया को ये दिखा सके कि
हम हिंद देश के निवासी सभी जन एक है, रंग रूप वेश भाषा चाहे अनेक है
वहां से लगाकर यहाँ तक हम तो यही चाहते है कि हर उस शक्श के पास ये सदेश जायें कि हम एक है और ये बात हमें चिल्ला कर नहीं कहनी पड़े बल्कि ये बात हमारे कपड़े ख़ुद बोले कि हम एक है .

मंगलवार, 29 जुलाई 2008

हम तो झोला उठा के चले

दोस्तों जयपुर शहर में अब काफी समय हो गया है और वाही समत इतनी इजाजत नहीं देता है कि अब यहाँ रूका जा सके. सो भइया हम तो यहाँ से झोला उठाके चलने वाले ही है. चल शिवा घर आपने बोले भोपाल .

रविवार, 27 जुलाई 2008

घणो चौखो लागो जैपुर

धोरां री धरती रो ताज, अर राजस्थानी री माटी री महक रा साथै मौजोद जैपुर शहर भाई मने तो घणो चौखो लागो । राजस्थान रा वेता खातर पेला जैपुर में ज्यादा रेवा रो तेम कोणी लागो , पण अबके अठे दस दान रेवा रो मोलो मल्यो तो जैपुर ने देखवा रो लाभ लेई लियो है। आमेर ,नाहर गढ़ ,जंतर मंतर अर सिटी पेलेस ने छोड़ ने पुरो शहर देख्यो तो है आमेर अर गलत फेर कदी देखाला बाकि रो काम कर लेवा।
यह तो थी घुमने फिरने की बात भइया अपना पत्रिका डॉट कॉम का कम भी दनादन चल रहा है। बिया अपने को समझ में आ गया है की ब्लॉग नाम के बेटे की माँ है वेबसाइट और पोर्टल उसका बाप है और किसे उसे मेनेज करना है ।
मेरे दोस्तों और पाठकों मिलते है छूटे से ब्रेक के बाद बोले तो सत्ताईस आज है और तीस को हमें यहाँ से उड़ना है ।

गुरुवार, 3 जुलाई 2008

दिल मैं मेरे है दर्दे दिल्ली

इस ब्लॉग के पाठकों,सबसे पहले तो माफ़ करदेना कई दिनों से आपसे मिल नहीं पा रहा हूँ कारण आजकल हम अपने सेकेण्ड सेमेस्टर के एग्जाम के बाद अब हम जरा दिल्ली आ गए आप जरा भी ये मत समझना की गुमने फिरने के लिए अरे भाई अपनी इलेक्ट्रोनिक इंटर्नशिप के लिए बस फ़िर क्या होना था यहाँ अब इतने उलझ गए है की सुलझाने को टाइम ही नहीं है फ़िर भी ये एक कोशिश है शायद इसी बहाने आपको याद आता तो रहूँ फ़िर मिलते है आपसे जब भी मिला मौका

शनिवार, 14 जून 2008

बस एक बार आजमाना चाहता हूँ।


मुझे हो गया अपने होने का,

अहसास मैं बस,

यह जान कर ही खुश हूँ।

और मेरा न होने मतलब भी समझता हूँ

फ़िर भी बस एक बार देखना चाहता हूँ । ।

मेरे होने से क्या फर्क था ।

और मेरे ना होने से क्या असर होता है,

बस एक बार अपने को आजमाना चाहता हूँ । ।

ख़ुद की तसल्ली के साथ,

औरों को भी समझाना चाहता हूँ ।

कि मैं हूँ तो क्यो हूँ ,

और नहीं तो भी क्यो नहीं ?

इस बहाने ही सही ये बताना चाहता हूँ ।

इस बार अपने साथ

उनको भी आजमाना चाहता हूँ ।।

शनिवार, 7 जून 2008

महाराणा प्रताप बच्चों के किस काम आयेंगे?


आज बच्चों से हमारे महापुरुषों को ऐसे दूर रखा जा रहा है की उनसे उनको कोई काम पड़ने वाला ही नहीं हैया फ़िर उनके विचारों का कोई महत्व ही नहीं है।
परसों की बात है, मेरी एक दोस्त राजस्थान पत्रिका के भोपाल संसकरण मैं काम करती है, जिसका ऑफिस चेतक ब्रिज के पास है। उसके घर पर छोटे भाई ने पता पूछा तो उसने बताया कि चेतक ब्रिज तो उसके लिए ये मजाक का विषय बन गया।

इसका कारण उसके सुनने में हुयी त्रुटी रही हो या फ़िर हमारी इस बदली हुयी शिक्षा का नतीजा उसका जवाब था क्या आपका ऑफिस तो चेचक ब्रिज के पास है यानि आपके ऑफिस में चिकन पोक्स भी रहता है?
उस बच्चे को शायद महाराणा प्रताप के बरे में पता होगा या नहीं मगर उसे ये बात तो पक्की है कि उसे चेतक के बरे में दयां नहीं था ये है ना हमारे लिए शर्म की बात यदि नहीं तो इससे बुरे और किस हालत की उम्मीद कर रहे है आप ?
मेरा अपनी दोस्त से पहला सवाल यहीं था कि क्या वह कान्वेंट स्कूल में पढ़ता है तो उसका उत्तर सकारात्मक था आज दशा यह है कि हमारे बच्चे चिकन पोक्स में समझते है उर उन्हें महाराणा प्रताप के घोडे का नाम मालूम नहीं है या फ़िर उनके इन्ट्रेस्ट में शामिल नहीं है ?
हम तो सरकारी स्कूलों में पढे है जहाँ सर छिपाने के लिए छत नहीं होती थी मगर वहां से सर उठाने का सबक जर्रोर मिला था वहां खाने के लिए बड़ा पैकेट नहीं होता था मगर भरपेट संस्कार जरूर मिले थे।
हाँ मैं ये स्वीकारता हूँ कि हमे पर्सनालिटी के जैसा कुछ बताया नहीं गया था फ़िर भी देशभक्ति की प्रेरणा उसी विद्या के मन्दिर में मिली है मगर आज क्या हो रहा है ..............
उससे आप भी वाकिफ है?
आज किताबों में हेरी पोर्टर को महत्व दिया जाता है पंचतंत्र को नहीं, मिक्की माउस के बरे में बताया जाता है महाराणा प्रताप के बारे में नहीं, फ़िर कैसे पता चलेगा? सब दोष हमारा ही है हमने अपनी शिक्षा की गुणवत्ता के नाम पर ऐसी दुकाने खोल डाली है जहाँ न ही तो ज्ञान है और ना ही संस्कार और ना ही अपनी परम्परा कि कोई सार्थक शिक्षा।
इसके साथ अब एक और दुख वाली बात ये है कि हमारे सरकारी स्कूलों को भी अब भारतीय आदर्शों को पढ़ने में शर्म आने लगी है ।
अगर बात राजस्थान की करें तो यहाँ आज से पन्द्रह बीस साल पहले विद्यालयों में कई देशभक्ति की कविताएं कोर्स का हिस्सा थीं जो राजस्थान के महान योद्धों के जीवन से छात्रों को परिचय कराती थी मगर पता नहीं इस वैचारिक बदलाव की अंधी ने क्या जादू सा कर दिया कि हमारे निति निर्धारकों को उन कविताओ को पढ़ना अच्छा नहीं लगा . कई साल पहले राजस्थान बोर्ड की कक्षा सात में राजस्थान के कवि कन्हेया लाल सेठिया जी की कविता हुआ करती थी 'पिथल और पाथल' जिसे उन्होंने महाराणा प्रताप के संघर्ष के दिनों को कवि की विचारों में पिरो कर पेश किया था जिसे बाद में महज इस आधार पर हटा दिया गया कि यह इतिहास के विरुद्ध है हालांकि आज भी वह कविता जनजन की कंठाहार है मगर ये भी सत्य है कि अज ये कविता किताबों से लगाकर ई ज्ञान का खजाना कहे जाने वाले इंटरनेट पर भी ये कविता मुझे तो नहीं मिली है. पता नहीं इसका इतना बड़ा अनादर क्यों हो गया?
कक्षा पांच की किताब में पन्नाधाय का एक पाठ हुआ करता था मगर अब वह भी पता नहीं कहा गायब है? प्रायमरी कक्षाओं से महाराणा के पहरुए के नाम से गदुलिये लुहार का पाठ था शायद वह भी अभी नहीं होगा. कुछ समय पहले तक ग्यारहवीं कक्षा में महीयसी मीरां शीर्षक का खंड काव्य था मेरे से तीन साल छोटे भाई ने उस क्लास में आने पर बताया कि वह तो बदला गया है अब उसके स्थान पर यशोधरा पढाया जाता है, मेरी यशोधरा से कोई मतभेद नहीं है मगर इस राष्ट्रीयकरण की दौड़ में हम अपने बच्चों को महाराणा प्रताप,चेटक, चित्तोड़गढ़, मीरां ,पन्नाधाय, हल्दीघाटी से लगाकर दीवेर से दूर करते जा रहे है ................. ।

कन्हैया लाल सेठिया की 'पिथल और पाथल' कहाँ ?

इस भागदौड़ की जिंदगी में हमें शायद अपने बारे में ज्यादा सोचने का मौका नहीं मिलता है मगर कई बार हम बहूत कुछ काम का भी खो देते है बदलाव की बयार में हम कई काम की बातें और लोगों को भुला चुके है जिनमे एक नाम कन्हैया लाल सेठिया जी का भी है जिनकी कृति जो कभी जन -जन कंठहार रही वह अब खोजे नहीं मिल रही है शायद इसका कारण ये भी माना जा सकता है।
महाराणा प्रताप को लेकर जिन लोगों ने भी जो कुछ लिखा है वह उनके जीवन को प्रस्तुत करने के लिए सक्षम है उनके बरे मैं ज्यादा कभी जानने की इच्छा ही नहीं हुयी मगर कोई है जो हमेशा मेरे लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है मेरी जिज्ञासा सबसे ज्यादा किसी शख्स के प्रति है वह है राजस्थानी भाषा के जाने-माने कवि कन्हेयालाल सेठिया। मैंने राजस्थानी को भाषा इसलिए कहा है की देश के क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़े राज्य मैं बोली जाने वाली बोली है।
जो कई सालों से जब हिन्दी का विकास नहीं हुआ था उससे पहले से ही आम लोगों के द्वारा प्रयोग की जाती रही थी स्वतंन्त्रता संग्राम में भी ये नहीं कहा जा सकता है कि राजस्थान के विभिन्न पत्रों से लेखन के माध्यम के द्वारा हुए प्रयास हुए वे हिन्दी में थे वे भी इसी भाषा में थे उसके पहले राजामहाराजाओं ने इस साहित्य को काफी समृद्ध किया है जाने-अनजाने में ही सही अपने बखान के लिए ही उन्होंने जैसे चारणों और भाटों से लेखन करवाया।
और इससे इस भाषा का आदर समृद्ध होता गया.
इस श्री भंडार का किस्सा वैसा ही थे जैसा सरस्वती के धन का होता है कहते है
सरस्वती के धन कि है बड़ी अपरं बात,

ज्यों खर्चे त्यों बढे ज्यों बचने घटी जाय.
राजस्थानी को समृद्ध करने में कई कवियों का बड़ा योगदान रहा. उनका लेखन स्वतंत्रता के बाद भी जारी रखा और जो आज भी जारी है.
पिछले दिनों राजस्थान में राजस्थानी को राज्य भाषा का दर्जा देने की मांग जोरों पर थी राजनीती इसी पर फोकस हो गई, हर पार्टी इसका फायदा लेने को आतुर थी और इसके चलते पता नहीं क्या-क्या होने लगा।
भाजपा के जसवंत सिंह ने कर्नल जेम्स टाड के इतिहास को नकारते हुए नया इतिहास लिखने की घोषणा की थीं। इसी तरह से राजस्थानी के कुछ कवियों ने भी राजस्थानी की मान्यता के लिए अपना अभियान आरंभ किया था मगर उनके इस अभियान से क्या हासिल हुआ किसी को मालूम नहीं है इसके विपक्ष वालों का तर्क है कि जब तक राजस्थानी का मानकीकरण नहीं होता इसे राज्य भाषा का दर्जा कैसे दिया जा सकता है?कुछ दिनों पहले की बात थी जब राजस्थान में इस बात को लेकर ही विवाद हो गया कि किसी अंग्ला विद्धवान ने किसी कवि को कुछ कह ही दिया था कि हो गई तूं-तूं मैं-मैं जो शायद किसी मतलब कि नहीं थी। मगर कभी किसी ने हमारी उस धरोहर की चिंता नहीं की जो बरसों से कूड़े के साथ फैक दी गई है अगर हम नए शीरे से इतिहास लिखते है तो किसके दम पर लिखेंगे उसी के दम पर जिसे हम ठुकरा चुके है।
एक उदाहरण है कविवर कन्हेया लाल जी सेठिया की 'पिथल और पाथल' जिसे कभी हमारे कोर्स से हटा दिया गया था और धीरे धीरे पुस्तकालयों ने भी रद्दी में फैक दिया ।
ऐसा नहीं है कि कोई उसको चाहने वाला नहीं है आज भी उसके कद्रदानों की कोई कमी नहीं है मगर कोई ये बताये तो सही की यह मिले कहाँ से? आज निसंदेह नेट बहुत बड़ा माध्यम है ज्ञान के संचरण का मगर यहाँ भी इसका कंगाल ही है आशा है ये कमी कोई शीघ्र पूरी कर देगा। कोई भी चीज एकदम नहीं बदल जाती है बदलने में वक्त लगता है हो सकता है कि रही राजस्थानी भी आने वाले समय में न रहे मगर फ़िर भी इससे कई गुना आशा इस बात कि है कि राजस्थानी के साथ साथ उनसभी कवियों और लेखकों पर भी काम होगा और हमारे इतिहास के साथ हम अपने महापुरुषों को भी पुनः मूल रूप में पेश करने में सफल होंगे ।

शुक्रवार, 6 जून 2008

महाराणा की भूमीं को प्रणाम

महाराणा प्रताप की धरती मेवाड़ से कुछ दूर,

इस नवाबों के शहर भोपाल से ही मेरा उस वीर भूमि को प्रणाम!

ये मेरा सौभाग्य है कि मेरा जन्म महाराणा प्रताप के जन्म स्थान कुम्भलगढ़ से महज साठ किलोमीटर पर है, जहाँ महाराणा प्रताप का राज्य रोहन हुआ था वह गोगुन्दा वह स्थान है जहाँ के कुछ इलाकों में मुझे एक एनजीओ के साथ काम करने का मौका मिला है. महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह की पहली राजधानी चित्तौड़गढ़ मेरे भोपाल आने के दौरान मिडवे की तरह पड़ता है और जिस शहर को अपनी पहली राजधानी को छोड़ने के बाद में महाराणा उदयसिंह ने बसाया था उसी उदयपुर शहर की गोद में मुझे अपने कोलेज के पांच साल गुजरने का मौका मिला जहाँ प्रताप ने हल्दीघाटी नामक स्थान पर अकबर की मानसिंह के नेतृत्व में आयीं सेना से युद्ध लड़ा था उस तीर्थ भूमीं के दर्शन का सौभाग्य मुझे अठारह बीस साल की उम्र में मिला जब में एक स्कूल ट्यूर में घूमने गया था वहीं महाराणा प्रताप के जीवन से विजय अभियान के लिए जाने जाने वाले दिवेर नामक स्थान पर मुझे ग्रेज्युएसन के आखिरी इयर में जाने का अवसर प्राप्त हुआ अब एक इच्छा ये है कि प्रताप के आखिरी दिनों की शरणस्थली चावंड देखने को जन चाहता हूँ उम्मीद है कि ये ख्वयिस जल्द ही पुरी होगी. तब शायद में उनको करीब से देख सकूँगा और उस जमीं को प्रणाम कर सकूं

माही एहडा पूत जण जेह्डा.........................

महाराणा प्रताप एक ऐसा नाम जिसके स्मरण मात्र से ही सारे दर्द दूर हो जाते है,
मन तेज़ से तरोताजा हो जाता है, और उत्साह चरम पर पहुँच जाता है। कभी कभार हमारे युवा ये उत्साह रचनात्मकता की बजाय तोड़फोड़ में ज्यादा लगाते है।
बस एक जरूरत है महाराणा प्रताप को पुनः समझने की और उसे अपने जीवन में उतरने की क्योंकि उन्होंने अपनी शान मैं कभी बादशाह अकबर की तरह अकबर नामा नहीं लिखवाया था और नहीं अपने पीछे अपने त्याग को याद रखवाने के लिए कोई ताज जैसा स्मारक बनवाया था।
उन्होंने जीवन भर जंगलों की ख़ाक छानी फ़िर भी दिल्ली की गुलामी स्वीकार नहीं की ये आसन काम नहीं था मगर उन्होंने इस नामुमकिन को मुमकिन बनाया और दूसरो को आत्मसम्मान के लिए जीने की प्रेरणा दी। वह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तब थी।

हिंदुआ सूरज कहे जाने वाले महाराणा प्रताप ने अकबर के खिलाफ हथियार उठाये थे इसका ये मतलब कतई नहीं है की वे हिंसा को श्रेष्ट मानते थे। वे तो बस अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए अपने विरासत में मिली परम्परा को निभा रहे थे।
उनके जीवन का हर पल हमारे लिए आदर्श हैं मगर सोचना ये हमको है कि क्या हम अपने जीवन में राणा प्रताप की तरह जीते है अपने दायित्वों को उतनी ही गंभीरता से निभाते है?
शायद इसका जवाब नहीं ही होगा।
तो बस दोस्तों आज ये प्राण हो ही जाए की कम से कम एक कोशिश तो की जा सकती है
महाराणा प्रताप की बताई राह पर कदम रखने की कोशिश करने की ....................... ।
आशा है कुछ भगत सिंह जैसे लोग के पद चिह्न जरूर दिखेंगे, जो मृत्यु की साधना में कहते थे -
इतिहास में महाराणा प्रताप ने मरने की साधना की थी एक तरफ़ थी दिल्ली के महा प्रतापी सम्राट अकबर की महाशक्ति जिसके साथ वे भी थे जिनको होना चाहिए था और वे भी थे जिनको नहीं होना चाहिए था बुद्धि कहती थी टक्कर असंभव है, गणित कहता था विजय असंभव है समज्दर कहते थे रुक जाओ, रिश्तेदार कहते थे झुक जाओ राणा प्रताप न बुद्धि को ग़लत मानते थे और न ही गणित के विरिधि थे, न समझदारों का प्रतिकार करते थे और न ही रिश्तेदारों को इनकार पर वे कहते थे - " जब तक मनुष्य की तरह सम्मान के साथ जीना असंभव हो,तब मनुष्य की तरह सम्मान से मर तो सकते है. बिना कहे शायद उनके मन में था कि मनुष्य की तरह से मरकर हम आने वाली पीढियों के लिए जीवन द्वार खुला छोडें, कुत्तों की तरह पूंछ हिलाकर जीते हुए बंद न कर जाएं.
-युग पुरूष भगत सिंह

सोमवार, 2 जून 2008

आरक्षण किसी का जन्मसिद्ध अधिकर है?

क्या हमारे नेताजी वैसे भी बोलने को लेकर काफी बडबोले मने जाते है फ़िर चाहे पाक में जाकर गला फाड़ने वाले लालकृष्ण आडवानी हो या फ़िर प्रवीण भाई तोगडिया हो सब एक से है। नेता ऐसे बोले जाते है और फंस जाते है जैसे नायक फ़िल्म में अमरीश पुरी बोलते है और फंस जाते है। मगर ये बात सच है कि नेता झूठ बोलने के मामले में बड़े माहीर होते है मगर ये जुबान है न इसमे कोई हड्डी तो होती ही नही है। इसी वजह से फिसल जाती है और लेने के देने पड़ जाते है।

सतयुग में एक परिकल्पना थी कि चोबिस घंटों में एकपल के लिए साधू लोगों की जुबान पर सरस्वती निवास करती थी और अनके द्वारा कहा गया सच हो जाता था और उनका दिया गया श्राप इसी वजह से कभी खाली नहीं जाता था । फ़िर वह मंथरा हो या फ़िर परम प्रतापी परशुराम का सूर्यपुत्र कर्ण या फ़िर हरिमुख से गुस्सा होकर देवर्षि नारद का विष्णु को दिया गया श्राप हो सबकुछ सच होने में तनिक भी देर नहीं लगी।

कल युग में वक्त बदल गया है अब इंसान बहूत सोच-समझ कर बोलने लगा है इसके मायने यह है इन्सान मन से कम दिमाग से ज्यादा बोलता है। इसी वजह से सच कम झूठ ज्यादा बोलता है फ़िर भी भगवान की माया देखो सच आ ही जाता है ,इस जुबान पर।

पिछले दिनों प्रदेश के सहकारिता और कृषि मंत्री गोपाल जी ने तैश में आकर मुख्यमंत्री से ये कह दिया कि ब्राहमणों को आरक्षण नहीं चाहेये, आरक्षण तो भिखारियों को चाहिए और जिनको गत पचास सालों से आरक्षण मिल रहा है उनकी दशा भी पहले जैसी ही है।

इसके बाद क्या होना था ये तो हम लोकतंत्र के इतिहास से देखते आ रहे है। वही तमाशा जिसे हमारे बाप दादा भी देखे थे, हो गई मारा-मारी,प्रदेश की ठंडी राजनीती की भट्टी में घी नहीं केरोसिन डाल दिया भार्गव ने।

नतीजतन सब और हड़कंप मच गया वे भार्गव जिनको कल तक कम लोग जानते थे सभी अखबारों कि फस्ट लीड बन गए। हमारे लोकतंत्र के नेताओ ने तो अपना जो सिद्धांत बना रखा है।

इस प्रकार लगता है इसे तुलसी और बिहारी के दो अलग अलग दोहो को मिला कर समझा जा सकता है

ऐसी बाणी बोलिए कि मन का आपा खोय -तुलसी

देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर- बिहारी

इसी नियम को अपनी सफलता की लकीर मान कर समय- समय पर कई गर्म लोगों ने अपना लोहा मनवाना चाहा है, फिलहाल वाणी का वाकयुद्ध जारी है मगर यहाँ बात जो समझने वाली है वो यह है कि क्या आरक्षण किसी भारतीय का जन्म सिद्ध अधिकार है क्या? ये हमारे मूल अधिकारों में शामिल है क्या ? शायद इसका जवाब कोई देने का इच्छुक नहीं होगा क्योंकि जिनको मिल रहा है वो इसे खोने के ख्वाब से भी डरते है। वहीं जिनको नहीं मिल रहा है वे इसे ग़लत और अन्याय कह कह हार चुके है, उनको अब इस पर बहस का कोई फायदा नजर नहीं आता है। उन्होंने इसे अपना भाग्य ही लिया है और किस्मत का रोना और सरकार को कोसना छोड़ दिया है।

अब ये बात अलग है कि इसे आप क्या संज्ञा देंगे हक़ या फ़िर भीख बस देखने का नजरिया है सिक्का एक ही है ।

शनिवार, 31 मई 2008

आजा वे माही तेरा रास्ता उडीक दिया ........

कल एक साल बाद वही दिन आ गया जब हम यहाँ आए थे ।
कल हमारे यहाँ यूनिवर्सिटी का एंट्रेंस टेस्ट है। इस परीक्षा में कई क्षेत्रों के विद्यार्थी प्रवेश के लिए अपना किस्मत आजमायेगे,
मेरी तरफ़ से उन सब को परीक्षा के लिए कहता हूँ
बेस्ट ऑफ़ लक
आपका दोस्त
scam24

गाँधी के हिंद स्वराज पर व्याख्यान चार को


महात्मा गाँधी की कृति हिंद स्वराज के सौ वें वर्ष के अवसर पर न्यू मार्केट स्थित अपेक्स बैंक परिसर में समन्वय भवन में राज बहादूर पाठक स्मृति व्याख्यान समिति की और से चार जून को एक व्याख्यान आयोजित किया जा रहा है।


गाँधी का हिंद स्वराज नाम का यह पन्द्रहवा व्याख्यान है इस सेमिनार में मीडिया हस्तियों के अलावा कई गणमान्य व्यक्ति शिरकत करेंगे जिनमें प्रवाष जोशी, वागीश शुक्ला, नन्द किशोर आचार्य के व्याख्यान आयोजित होंगे ।

गुरुवार, 29 मई 2008

राज ठाकरे का तमीज़ का ताबीज़

भइया आपने हरिशंकर परसाई जी की प्रसिद्ध रचना सदाचार का ताबीज तो जरूर पढी होगी मगर आज हम किसी लिखित रचना की नही मगर एक ऐसी ही रचनात्मकता का जिक्र करने जा रहे है उस कृति के रचनाकार है राज़ ठाकरे आपको शायद उनका परिचय देने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि उनका परिचय से तो शायद महाराष्ट के लोग अनभिज्ञ है उनको वे अपने बारे अटेंसन देने के लिए पापड़ बेल रहे है इस बार उन्होंने छात्रों को निशाना बनाया है और उन्हें मुम्बई में तमीज़ से रहने की हिदायत दी है भाई बड़े बुद्धिमान है राज़ आप ये बात तो माननी ही पड़ेगी तली दोनों हाथों से बजती है राज़ जब तक लकीर के फकीर के पीछे पड़े थे तो कुछ नही हुआ पहले बिग बी से बॉलीवुड में चमके शत्रुग्न सिन्हा,अमर और लालू की निन्दा करके राजनीती में दहाड़े/भोंके मगर किसी ने उनके मुंह लगने की जहमत नहीं उठायी किसी ने कुछ बोलना उचित नही समझा तो खामोश हो गए सब जानते थे कि शेर सोया रहे तो चूहा चाहे जितना नाटक करे कोई फर्क नहीं पड़ता है वैसे इस बात से वे भी वाकिफ थे कि शेर चूहे के खेल में रखा क्या है मुकाबला तो आमने सामने का हो मजा आएगा इसके लिए उन्होंने नया तरीका इजाद किया है नया मुकाबला शेर चूहे का नहीं चूहों और गिरगिटों का रोचक मुकाबला जो इस आई पी एल के बाद का सबसे बड़ा 'टूर्नामेंट' हो सकता है

राज ने पुणे के उच्च शिक्षण संस्थानो में पढने के लिए आने वाले उत्तर भारतीयों को राज्य में तमीज से रहने की चेतावनी दी है उन्होंने ये भी कहा कि उत्तर भारतीयों के दोनेसन देने कि वजह से योग्य मराठियों को जगह नहीं मिल पाती है इसके लिए आगमी प्रवेश प्रक्रिया पर कड़ी नजर रखेंगे ये बात समझ में नही आई कि आख़िर वे ऐसा करने वाले होते कौन है ? भारत में लोकतंत्र के आधार पर उनकी हेसियत ही क्या है ?राज़ ने महाराष्ट्र में होने वाली बदसलूकियों और छेड़खानियों के लिए उत्तर भारतीयों को जिम्मेदार ठहराया है इस के लिए वे उत्तर भारतीयों को सबक सिखायेंगे मुझे इस बात को लेकर ज्यादा तकलीफ नहीं होगी कि किसी उत्तर भारतीय को किसी लड़की को छेड़ने कि सज़ा मिले ऐसा तो होना ही चाहिए मगर मेरे राज़ से कुछ प्रश्न है कि :-- यह पता कैसे पता चलेगा कि आख़िर किसने छेड़ा है उत्तर भारतीय ने या मराठी ने?- उत्तर भारतीय के लिए सजा क्या मुक़र्रर है?- महाराष्ट्रियन को क्या रियायत है ?- लड़की उत्तर भारतीय हुयी तो कोई दिक्कत नही होगी ?- सज़ा कौन देगा,बेल फाईन जैसे सुविधा मिलेगी ? - अगर किसी मराठी लड़की ने किसी उत्तर भारतीय को छेड़ा तो क्या हर्जाना मिलेगा ? - खैर ये तो थी मेरी कुछ जिज्ञासा राज़ के इस नए कानून के सम्बन्ध में सोचता हूँ कि इनका जवाब मिलेगा तो कई उत्तर भारतीय छेडाकू रोमियो को ज्यादा तकलीफ नहीं होगी उनको पहले से सज़ा मालूम होगी सच तो ये है कि राज़ के पास अपनी पार्टी के लडाकों कि बड़ी पलटन है जिनके पास करने को कई काम-धाम नहीं है इनके बस में ये तो नहीं ही कि ये किसी अमिताभ जैसी सेलिब्रटी तक जाने कि तो औकात है ही नहीं इस हाल में राज़ चाँद पर धुल उड़ाने के सिवाय कर भी क्या सकते है

दूसरी तरफ़ ऑटो, सब्जी, टेक्सी , ठेला वाले किसी उत्तर भारतीय को अगर कोई मुम्बई में दो चार लापदे मर दे तो भी क्या फर्क पड़ता है उक्सी तो दिन में जब तक किसी न किसी से लड़ाई नहीं होती है तो घर आकर अपनी बीवी से झगड़ता है तब जाकर उसे रात को नींद आती है क्योकि लड़ना तो उसकी आदत और धंधे कि पहली क्वालिफिकेसन है उसे राज़ के कार्यकर्ता या गुंडे यार दो चार हाथ मर देगे तो क्या हो जाएगा वह थोडी देर हल्ला गुल्ला करगा और सो जाएगा वह बेचारा आर्तिक रूप से इतना सब कुछ झेल चुका है कि अगर कोई उसके हाथ पाँव तोड़ देगा तो भी वह अगले दिन अपने बच्चो का पेट भरने के खातिर काम-ध्न्धे के लिए चला जाएगा उस गरीब को फिल्मो से ज्यादा कुछ सिखने को नही मिला मगर ये जरूर सिख गया है कि कैसे हीरो कई गोलियां लगने के बाद भी विलैन को मरता है वैसे उसे भी अपनी जिन्दगी से गरीबी के खलनायक को ख़त्म करना है और वह दो दिन बाद काम पर लौट आएगा उसे जितना भी मारोगे फ़िर रक्तबीज की तरह नए दम के साथ उठेगा अपने काम को करने के लिए इसलिए इससे टकराना राज़ के लिए महंगा पड़ने वाला सौदा था वह तो हाथ भी नही उठाएगा क्योंकि उसके हाथ तो कमजोर हो गए है अपने कन्धों पर जिम्मेदारियों का जुआ ढोते-ढोते शायद ये बात राज़ के समझ में देर से ही सही आ तो गई है इसलिए यहाँ अपनी दाल गलती नहीं दिखी उसे तो सामने से बराबर ईंट से ईंट बजाने वालों की जरूरत थी इसके खातिर स्टूडेंट से बेहतर विकल्प कोई नही हो सकता है उनसे पंगा लोगे तो हंगामा होगा, ग्रुप बनेगा, तोड़फोड़ होगी,दंगा और बंद होगा,चक्काजाम,हड़ताल,फायरिंग व चुनाव और फ़िर होगी जीत जिसका उनको इंतजार है मगर देखने वाली बात ये होगी कि जीत किसकी होगी ? क्या ये लातों के भूत कहे जाने वाले छात्र इन बातों से ही डर जायेगे? और राज़ के सदाचार के ताबीज के बाद अपने मा बाप कि बात नहीं मानने वाले लड़कों पर इस ताबीज़ का क्या असर होगा ?

ओवर एज नहीं है इंडियन डेमोक्रेसी

अक्सर लोग चर्चा करते है कि हमारे देश के लोकतंत्र में ये हो रहा है, वो हो रहा है। हमारा लोकतंत्र बिखरता जा रहा है और ये ज्यादा दिन नहीं चलेगा। लोगों के इस तरह के तमाम बयान पुरी तरह से खोखले लगते है। जब हम लोगों की लोकतंत्र में गहरी श्रद्धा पाते है कभी कभी हमे ऐसी रौशनी दिखाई देती है जो हमको तमसो मा ज्योतिर्गमय का संकेत देती है।

आज मैं सत्ताईस मई का दैनिक ट्रिब्यून देखा रहा था उसके पहले पेज पर एक फोटो छपा था जिसने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था। यहाँ फर्स्ट लीड के स्थान पर समाचार था पंजाब चुनावों में हिंसा एक कि मौत कई घायल हालांकि ये एक निराशा पैदा करने वाला समाचार था मगर इसके साथ जो फोटो था वो देखकर मन प्रसन्न हो गया।

फोटो में तीन युवाओं को दिखाया गया है जो चुनाव के लिए मतदाताओ को ला रहे थे केप्सन था

सोमवार को अटारी मतदान केन्द्र पर निब्बे साल की प्रकाश कौर व पिछत्तर वर्षीय सुरजीत सिंह को मतदान केन्द्र पर लेट उनके परिजन -

यह फोटो विशाल कुमार का था जो लोकतंत्र में चुनाव की छवि को मानसपटल पर इंगित करता है। अगर किसी स्थान पर मात्र बीस से पच्चीस प्रतिशत मतदान हो और दुसरे स्थान पर साथ प्रतिशल मतदाता वोट डाले तो माना जाता है दुसरे स्थान के लोगो में लोकतंत्र के प्रति ज्यादा विश्वास है। ऐसी स्थिति न आए इसके लिए चुनाव वाले दिन नेताजी के घर के वाहनों के साथ-साथ उनके सारे रिश्तेदारों और सभी चुनावी पार्टियों के वहां लगा जाते है ताकि ज्यादा मतदान,लोकतंत्र में जनता की ज्यादा भागीदारी,ज्यादा जन जागरूकता का प्रमाण, जन सेवा की भावना तथा ज्यादा मतान्तर से जीतने की भूख सबकुछ आदि कई ऐसे तत्त्व है जो इसमे सक्रीय रहते है। चुनावों में सारे लोग लादकर लाये जाते है ताकि ये भी बताया जा सके की फलां सरकार के बनने में जनता का कितना बड़ा हस्तक्षेप रहा है। ये बात अलग है कि उन लोगो को लेन में स्याम,दाम,दंड और भेद जैसे सारे उपकरण काम में आते है।

इन सब के बावजूद भी इस फोटो से ये आशा जरूर दिखती है कि हमारे इस वर्तमान के लिए हम ही उत्तरदायी है और यही एकमात्र रास्ता है जहाँ से हम अपना वर्तमान और भविष्य दोनों को बदल सकते है। बस जरूरत इस बात की है कि आखिर कब तक हम यूं ही हनुमान तंद्रा में सोये रहेंगे और कौन जामवंत आकर हमे हमारी ताकत का ज्ञान कराएगा और हम मुश्किलों के जलधि को एक छलांग में लाँघ जायेंगे।

उम्मीद है तब तक हमारा भारत युवा हो चुका होगा और हमारा लोकतंत्र एवर ग्रीन बना रहेगा

खलिबली-खलीबलि 'खली' बली नहीं, महाबली

पंजाब दा गबरू पुत्तर अर डब्ल्यूडब्ल्यू ई के चैम्पियन दारा सिंह के रिमिक्स वर्जन दलीप सिंह राणा यानि कि महाबली खली ने इन दिनों दिल्ली से पटियाला और लुधियाना से चण्डीगढ़ दा इलाका विच खलबली मचाये रक्खी है। पुलिस की सेवा छोड़ कर बालीवुड में हीरो बनने नहीं अमेरिका भागे खली की खाल खींचने का ख्वाब देखने वाली पंजाब पुलिस की हसरतें अधूरी ही रह गई। जब उन्होंने ये देखा कि जब मीका के बोडीगार्ड की धमकी का खली पर कोई असर नहीं हुआ। जिसने दारा सिंह को अपना गुरु बना लिया, तमाम मुल्क के बच्चों से लगाकर बडों के लिए भी आइडल बन गया है। तो उससे पंगा लेना उचित नहीं समझा कभी पंजाब पुलिस से तडीपार घोषित खली को सम्मानों से नवाजने का फ़ैसला किया है। जालंधर पहुँचने पर खली का भव्य स्वागत किया गया और पंजाब पुलिस ने पी ऐ पी केम्पस के मरीज पेलेस में स्पोर्ट्स एक्सीलेंस अवार्ड का तमगा दे डाला यहाँ तक की उनके मेनेजर को भी ओबलाइज कर दिया है मगर अब लगता है की खली महाराज भी अमेरिका की हाथपांव तोड़ लड़ाई से तंग आ चुके है।
एक बार इंडिया क्या आए वापस जाने का नाम ही नहीं ले रहे है। बच्चों से मिलना उनके साथ डांस करना और फिल्मों में उछल-कूद करना पता नहीं खली भाई लगता है सठिया गए है।
अरे भाई यहाँ टाइम वेस्ट क्यों करते है। वैसे भी हम अमेरिका से काफी पीछे है। उनसे कई बार हारते है कम से कम हमारी सांत्वना के लिए अमेरिका के दो चार पहलवानों को पछाड़ देते तो मन प्रसन्न हो जाता है। हम लोगों का यहाँ एक चीज तो समझने वाली है कि एक फ्राई डे से अगले तक नहीं चलने वाली इस इंडियन फ़िल्म इंडस्ट्री का ग्लैमर कैसे मोहपाश में बाँध कर किसी अच्छे खासे व्यक्ति को बेकरार कर देता है।
इसी पर शायद किसी ने कहा भी है।
इश्क ने कर दिया बरबाद हमको वरना

हम भी इन्सान थे काम के

बड़े धोखे है इस राह में

पहले बेंगलूर रायल चेलेजर्स के मालिक विजय माल्या और राहुल द्रविड़ के बीच की तनातनी की खबरें और अब कोलकाता नाईटराइडर के फ्रेंचाईजी किंग खान और कप्तान सौरभ गांगुली के बीच की खट पट ।
किसी ने सोचा भी नही होगा कि अपनी टीम से ऐसेवे ही शाहरुकखान पेश आए जो कभी अपनी टीम पर नाज करते थे। उन्होंने अपने किसी निकटवर्ती को ये भी बताया है कि आई पी एल मुनाफे का सौदा नहीं है जिसमे उनके मोह भंग होने के संकेत नजर आ रहे है।
हालांकि दोनों पक्षों से किसी मतभेद से इंकार किया जा रहा है मगर राज़ छुपता नहीं ........ ।
शाहरुख भाई इस आई पी एल को आपसे कई साडी उम्मीदे है आप इसे कभी कभी अलविदा न कहना जैसी फिल्म भी ओंधे मुह गिर जाती है गम खाने कि कई बात नहीं लगे रहो हो सकता है कि आपकी आने वाली फ़िल्म आपको शान्ति देने वाली हो।
इस क्रिकेट में भी इसकी टोपी उसके सर होते देर नहीं लगती है इंटरवलतक तो आप भी फिल्मो में पकाते ही है मगर ओडीयनस हाल छोड़ कर थोड़े भाग जाता है आपके आयटम डांस भी नहीं चलते है तो गम क्या है। फ़िल्म अभी बाकि है जीवन हो या क्रिकेट, कभी खुशी-कभी गम तो चलता रहता है। इस पहले आई पी एल के ख़म होने के इंटरवल के बाद आपकी भी धमाकेदार एंट्री हो सकती है फ़िर देखियेगा कैसे ये ही ओडीयंस सीटी मर मर कर झूमती है और आपकी आने वाली फ़िल्म बॉक्स ऑफिस के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर देती है। आपको टिकिट विडो कैसे मालामाल कर देती है।
तब चक दे हो जाएगा बस कहना आप इस बिसिया किरकिट को कभी अलविदा मत कहना ।

क्या रिजल्ट मेल फिमेल देखकर आता है

हमारे यहाँ पिछले दिनों सीबीएसई की बारहवी का रिजल्ट घोषित हुआ जिसमे कोई फेल हुआ है और कई पास हुए है। चाय नास्ता, पार्टी, पूजा और पता नहीं क्या-क्या नहीं हुआ। इस सब खेलों से हटकर अखबारों ने जो समाचार छापे है उनमे सबसे तुच्छ बात है वह ये है की रिजल्ट को जब जनरल, एससी एसटी या ओ बी सी के आधार पर नहीं बांटा जा सका तो अखबारवालों के पास जो सबसे बेहतरीन तरीका था कि रिजल्ट में ट्विस्ट लाने के लिए उसे बोयस-गर्ल्स के आधारपर बाँट दिया जिससे समाचार में रोचकता कायम रही।
इस तरह कोई पेपर लिखता है बारहवी में लड़कों ने बाजी मारी तो कोई लिखता है लड़कियां इस साल भी लड़कों से आगे फ़िर आगे कोई बताता है की यहाँ परीक्षा में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स में इतनी लड़कियां थी और इतने लड़के थे जिसमे से ये पास हुए और इतने फ़ेल है।
मन की समज में सबको समानता का अधिकार है नारी को प्रोत्साहन आवश्यक है इसका मतलब ये नहीं की किसी इसी प्रथा को जन्म दिया जे जो लांछित करने वाली हो वैसे भी परिवारों में लड़कों को फक्कड़, नाकारा , नालायक , आवारा और लाफाडी जैसे उपमानों से नवाजा जाता है। वहीं लड़कियों को मेरी बच्ची , पुत्तर और राजाबेटा कहकर प्यार लुटाया जाता है। अगर कोई लड़की फरमाइश करे तो उसे पल भर मे पुरा कर दिया जाता है और बेचारे ये लड़के अगर चवन्नी मांगे तो भी फटकार के अलावा कुछ नहीं मिलता है। आफ डी रिकार्ड ये बात भी सच है की लड़कों के रिजल्ट बिगाड़ने में लड़कियों का बड़ा हाथ होता है।
और इस पर ये अखबार वाले तो रहम करें क्यो बच्चों की जान लेने को पीछे पड़े है ।

भोपाल पुलिस की धुल में लट्ठामारी

हमारे देश में यूं तो सभी विभागों के दावे वास्तविकता से परे होते है मगर पुलिस की दशा तो माह्शाल्लाह है। खिसियाई बिल्ली खम्बा नोचे जयपुर में विस्फोट हो गया और कभी कान पर जूं न रेंगने देने वाली पुलिस अब जग गई है और सांप तो चला गया है जोश में होश खोकर लकीर को पिटने के खातिर धुल में लट्ठ मारे जा रही है।
इस मामले में हमरे शहर भोपाल को ही ले लीजिए जहाँ पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनजर धारा एक सौ चोवालिश जारी कर दिया था जिसके तहत होटल, लाज,धर्मशाला के साथ-साथ किरायेदारों और होस्टल में रहने वाले छात्रों को भी अपना पहचान प्रमाण देना होगा। इस पर हमारा प्रशासन समय-समय पर इसे तुगलकी निर्णय लेता रहता है जो न सिर्फ़ अव्यावहारिक होते है बल्कि असंभव से होते है इसी वजह से कभी सफल भी नही होता है।
कई आम अन्ग्रिकों की तरह हम भी इस शहर में किसी किराये की कुतिया में रहते है हमारे यहाँ भी एक दादी है जो उस घर को और किरायेदारों को मेनेज करती है जब से हम इस शर में आए है हर रोज आकर 'भेजा 'चाट जाती है और हमे फार्म भरने का ऑर्डर दे जाती है। और अब तक जिन लोगों ने भर कर दिया है उसे भी किसी पुलिस को जमा नहीं करती है बस यूं ही आ आ कर डराती है। हमसे बड़ा भी कई नही है ............ ।
हमरे यहाँ के सरकारी नियम इतने अच्छे होते है जिन पर चला जे तो हमारा देश स्वर्ग बन जाए और आम आदमी जीते जी मर कर स्वर्ग में चला जाए मगर हम पब्लिक है सब जानते है।

रविवार, 25 मई 2008

भरा रहेगा पुलिस का पेट

मध्य प्रदेश में पुलिस कर्मचारियों के नसते और भत्ते में दोगुने वृद्धि की घोषणा की गई है। नए पुलिस हेड क्वाटर के उद्घाटन के दौरान सी एमजी ने कहा है की ये नियम शीघ्र लागु होंगे। अब तक पुलिस वाले बड़े परेशान थे। वो शायद जो कुछ भी करते थे उनकी मजबूरी रही होगी । उनको इससे पहले नसते के लिए चार रूपये और खाने के लिए आठ रूपये मिलते था जो बिल्कुल अपर्याप्त है। सच है किइस ईमानदारी के इस युग में इतने में गुजरा नहीं हो सकता है। अब इसे दुगना करने पर भी जो हालत पैदा हो रहे है ज्यादा अच्छे और जनता के हीत में नहीं कहे जा सकते है।
नास्ते के बढे दाम के आधार पर पुलिस वाले कों पांच का पोहा और एक तीन कि चाय से काम चलाना पड़ेगा। अगर किसी पुलिस वाले कों भोपाल के फ़ूड प्लाजा मे खाना खाना हो तो उसे इस हसरत को पुरा करने के लिए भी नौ रूपये अपनी जेब से देने पड़ेंगे और कभी आपने देखा है कि ये अनहोनी हो सकती है एक पुलिस वाला पैसा दे।

अब प्रश्न ये है कि ये नौ रूपये आख़िर आयेंगे कहाँ से ? भाई आपसे मेरी सलाह है कि यही नौ रुपया पाता नहीं क्या क्या कहर ढहायेगा इस के चक्कर मैं आप अप भी आफत आने कि नौबत आ सकती है तो आप नौ दो ग्यारह होने कि तेयारी मैं रहे वरना आपकी गाड़ी पकड़ी जाए या फ़िर किसी और तरीके से आपको परेशान किया जे तो आप ये नहीं कहे कि अरे इनके नास्ते के लिए पकड़ा है ..... या पार्टी करनी थी इस लिए चेक्किंग कर रहे है वगेरह वगेरह। इस सब के बाद जो भी मेरी सुन सके उससे इस शहर कि ही नहीं बाहर कि जनता कि तरफ़ से करबद्ध रूप से निवेदन है कि जब इतना बेहतर कम कर के नास्ते के भत्ते कों दुगुना किया है तो ये भी कर दिया जाय कि फ़िर किसी आम नागरिक कों न परेशान किया जाय इनका पेट भरा रहे हमारी जेब में भला कुछ न रहे।

बुधवार, 21 मई 2008

हबीब मिया का दुख

कल की बात है में कोई अख़बार पढ़ रहा था तो उसमे पढने को मिला की जयपुर के रहने वाले और अपनी उम्र की बदौलत लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवाने वाले हबीब मिया अपना इस बार का जन्मदिन जरा भी धूमधाम से नहीं मनायेगे।
अरे मनायेंगे भी कैसे जब उनका गुलाबी शहर खून से और आतंकियों के नापाक इरादों से लाल हो गया। उनका मानना है की जब उनके घर यानि कि जयपुर का ये हाल हो तो वे कैसे जश्न के बारे में सोच सकते है। हम सब को उनकी इस भावना कि कद्र करनी चाहिए कि आज इस उम्र में भी उनमे ये जज्बा है जो शायद हमारे पास है या नहीं हम जानते भी नहीं है ।
आज भी हमारे देश में कई सारे ऐसे युवा है जो अपनी भाग दौड़ भरी इस जिंदगी में इस देश को भुला देता है। हम हमारे देश के प्रति अपने दायित्वों को कितना निभाते है ये तो हमसे बेहतर और कोई नही जानता है।
इस दशा में हबीब मिया जैसे बुजुर्ग को देश के हालातों की चिंता होना स्वाभाविक और जायज दोनों है। अगर उनसे प्रेरणा लेकर अगर एक भी युवा अपने कर्तव्यों और दायित्वों की और मुदेगा तो ये उनकी हमारा सच्चा सम्मान होगा।और फ़िर धीरे धीरे ही हालात सुधरेंगे।

ढीसूम-ढीसूम का नया स्टाइल

एक समय था, जब फिल्मी लड़ाई में जब तक जोर-जोर से ढीसूम-ढीसूम की आवाज नही आती थी तो, टाकीज की पिछली सीटों से आवाज आती थी, अबे क्या औरतों की तरह मार रही है मर्दों की स्टाइल में पटक दे ....... और पता नहीं क्या-क्या सुनने को मिलता था, मगर जब से धर्मेन्द्र, मिथुन और एंग्री यंग मैन अमित जी वाला टाइम गया है। बेचारी पब्लिक ने अब फिल्म देखना जाना ही छोड़ दिया है । इसका कारण ये है कि आजकल के डायरेक्टर फिल्मो में हाथ पाँव से ज्यादा काम होठों से चलाने लगे है और फिल्मों से हड्डी-पसली तोड़ने वाला काम नदारद-सा होता जा रहा है। इसका अभिप्राय यह कतई नहीं है कि फिल्मो में हिंसात्मक दृश्यों का स्थान अश्लील दृश्य ले रहे है।

अब फिल्मो में से जब से हाथापाई बंद हुयी है फिल्मों के निर्देशकों से लगाकर हीरो, हिरोइन और विलेन सभी ने अपनी-अपनी आवश्यक्ताओं के मुताबिक लड़ने के नए तरीके ईजाद कर लिये है। अब कोई हीरो-हिरोइन पार्टी में मीका-राखी की तरह आमने-सामने होते है तो कोई सल्लू-कैटरीना की भांति तमाचामारी पर उतर आते है । इसी तरह हिरोइन से हिरोइन का मुकाबला भी अख़बारों के लिए बड़ा रोचक होता है।

हम सब जानते है कि अक्षय-सल्लू में ट्विंकल खन्ना को लेकर, विवेक-सलमान मे ऐश्वर्या को लेकर तो अजय देवगन-शाहरुख़ में व्यावसायिकता को लेकर विवाद काफी चर्चा में रहे है। इसी तरह नर्मदा को लेकर आमीर और शत्रुघ्न सिन्हा का झगडा भी जग जहीर है इन दिनों मीडिया से लगाकर बॉलीवुड के गलियारों तक जिस शीत युद्ध का डंका बज रहा है वह है आमीर, शाहरूख और अमिताभ के बीच के विवाद, जो आए दिन समाचार पत्रों के पहले पेज कि सुर्खी बन जाता है कभी अमिताभ का माफ़ी प्रस्ताव तो कभी शाहरूख की आई पी एल में कोल्कता टीम की वेब साईट पर दूसरी टीमों के कार्टून तो कभी आमीर की ये ख़बर जिसमे उनके कुत्ते का नाम शाहरूख नाम सर्व्जनीक करने की बात हो इन सभी के प्लेटफोर्म के लिए बड़े जोर शोर से ब्लोगिंग का उसे किया जा रहा है जिसका एक अप्रत्याशीत फायदा मीडिया वलों को ही हो रहा है बैठे बिठाये खबरें चल कर आ रही है आजकल कई नामी फ़िल्मी अभिनेता ब्लॉग पर अपनी टिप्पणियाँ लिख रहे हैं टिप्पणियां क्या एक दुसरे पर कीचड उछाल रहे है और इसका मजा आम आदमी या मीडिया ले रहा है कुछ फायदा निर्देशकों को भी मिल सकता है कहीं कहीं इसके उल्टे हालत भी है कुछ खास फैन लोगों को ये सब रस नहीं आ रहा है क्योंकि जिस देश में फ़िल्मी सितारों को भगवान के समान इज्जत होती है वहाँ ब्लॉग के ज़रिए एक-दूसरे पर भड़ास निकालने की आदत बुरी मानी जा रही है मुबंई फ़िल्मों के कुछ अभिनेता आजकल ब्लॉगिंग में मशगूल हैं और उनके बीच इसके ज़रिए वाक् युद्ध भी जोरों पर है. पहले अमिताभ ने किसी शो को फ्लाफ़ बताया तो शाहरूख ने जम कर भडास निकल दी हालांकि बाद में अमिताभ ने सार्वजनिक माफ़ी की पेशकश की मगर फ़िर क्या होना था भाई कहा भी गया है ना कि रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय टूटे से फ़िर न जुड़े जुरे गांठ पड़ जाय . इन सब एक्टर लोगों के ब्लाग के आने के समय उम्मीद कि जा रही थी कि अब तो उनके फैन लिगों को अपने आइडियल हीरो के अब्र में सही जानकारी मिल पायेगी मगर यहाँ का माजरा तो बिल्कुल उल्टा निकला इन ब्लोगों में जो लिखा गया है उससे तो सिनेमा के इन स्टारों में जरा सा भी ऐसा नहीं लगता है कि उनको किसी कि कोई फिक्र है इन सब हालातों को देख कर ये कबीर तो बड़ा उदास हो गया है और अपना तो कभी इस चटकीली दुनिया में कोई मोह नहीं था मगर एक जो छोटी मोटी जिज्ञासा थी वो भी दम तोड़ने लगी है माया नगरी कि माया का परदा कई पार्थ लोगों कई आंखों से उठने लगा है समस्या कई गंभीरता के मद्देनजर कुछ चिंतन के बाद मेरी समझ में जो हल आया वह ये था कि अब हमारे निर्देशकों को मारधाड़ और हिंसा से ओतप्रोत ढीसूम-ढीसूम वाली फिल्मों कि और आपना रूख कर देना चाहिए ताकि ये सुपर स्टार अपने को एक दुसरे से फिल्मी सेट पर लड़ता और जीतता देखा कर खुश होते रहे और इनकी ऑफ़ द स्क्रीन की ये वर्च्युअल जंग समाप्त हो सके ताकि अखबारों के फ्रंट पेज पर दूसरी ख़बरों को भी जगह मिल सके

मंगलवार, 20 मई 2008

कल रात शरहद पर कुछ गोलियां चली थीं

भोपाल
आज सवेरे जगा ही था कि अखबार वाला पेपर देकर चला गया, एक नजर डालकर सिराहने साइडमें रख कर सो गया फ़िर झपकी लगी ही थी कि एक ख़याल आया और में जग गया उसी पेपर को उठाया और तल्लीनता से पढने लगा आख़िर उस पेपर के पहले पेज पर समाचार ही कुछ ऐसे थे स्टीमर में स्टोरी लगा रखी थी अब कुंवारे सैनिकों कि शादी कराएगी वायुसेना । भाई क्या चोखी ख़बर थी मन राजी हो गया कि चलो अब कोई कुंवारा ये जिद तो नहीं करेगा जेसे भी हो मेरा चक्कर चलवाओ मेरी शादी करवाओ ......... ।
इस काम को करने के लिए एक वेबसाइट भी बनवाई गई है ये और भी अच्छी बात है कि सैनिकों को शादी के लफड़े में किसी मैरिज ब्यूरो के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे बस बायोडाटा दो और लग जाओ सात फेरों की तैयारी में। ये है न मजे वाली बात,
खैर मेरी यह खुशी ज्यादा समय तक कायम नही रह सकी जब में न्यूज़ पेपर की लीड स्टोरी पढी तो मेरी सारी कल्पनाएँ छूमंतर हो गई । लीड स्टोरी में जयपुर के हमलों को नजरंदाज करते हुए पाकिस्तान स बात करने का सही समय करार दिया अभी दो दिनों पहले की ही बात थी की पाकिस्तान के रेंजरों ने शान्ति के माहौल को तोड़ते हुए रात भर बॉर्डर पर बंदूकों से बरात जैसा जसना मनाया था और आज के पेपर में ही ख़बर थी की पाकिस्तानी फायरिंग में एक भारतीय जवान शहीद हो गया है । सीमा पर बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर भारत ने भी सीमा पर कुछ और सैनिकों की तैनाती कर दी थी जो जरूरी भी थी ।
अब जब बॉर्डर पर ऐसा माहौल हो , तो गोलाबारी के सामने शादियों की शहनाइयों के सुर दब से जाते है सभी को बस यही याद आता है हम जियेंगे और मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए .............. ।
और सिपाही भी यहीं सोचते होंगे बंसी से बंदूक बनाते हम है प्रेम पुजारी ............ताकत वतन की ........... ।

सोमवार, 19 मई 2008

शाहरुख़ प्रीति की प्रीत पर रोक

भोपाल
अभी शाहरुख खान को आई पी एल मैच के दौरान कोलकाता नाईट राइडर के ड्रेसिंग रूम में जाने की रोक का मामला जरा भी ठंडा नहीं हुआ था कि कल खेले गए मैच के दौरान प्रीति जिंटाको टीम के खिलाड़ियों के करीब से हटाया गया। भाई कल्पना करें वो कितना इमोशनल पल होगा जब आई पी एल के मैचों में करोड़ों रूपये निवेश करने वाले निवेशकों से इस तरह निराश कर दिया है। आई सी सी आई के नियमों कि कड़ाई से सिने स्टारों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है जो उनको नागवारा गुजर रहा है।
बात इनकी ही नहीं कई और लोगों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ा है इस मैच में प्रीति जिंटा को डगआउट से अलग बैठने को कहा गया कुछ ऐसा ही अनुभव दिल्ली टीम के सी ई ओ को उठाना पड़ा उनको भी अलग चैयरपर बैठने को कहा गया।
इन सब पर प्रीति का क्या रूख होगा ये तो बाद में देखने को मिलेगा मगर किंग खान से तो नहीं रहा गया और उन्होंने आयोजकों से दो टूक शब्दों में कह दिया है कि वे किसी भी हाल में अपनी टीम के प्लेयरों से मिलने से नहीं रुकेंगे इसके पूछे उनका तर्क ये था कि वे सिर्फ़ कठपुतली नहीं है वे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ने के लिए हमेशा उनके साथ रहेंगें।
जनाब बिल्कुल वाजिब बात है अरे भाई किसी ने इन्वेस्ट किया है ये कोई सरकारी काम थोड़े है जो एक बार फंड पास करके अपना फंड ले लेने के बाद मुड़कर के नहीं देखे। ये मामला सिने जगत जैसा है मुहूर्त से लगाकर ऑस्कर तक प्रोडूसर पीछा नहीं छोड़ता है और आई पी एल कि कहानी भी किसी पिक्चर से ज्यादा अलग नहीं है
शाहरुख़ इस प्रोड्क्सन के प्रोजेक्ट को अधूरा कैसे छोड़ सकते है।

रविवार, 18 मई 2008

चक दिया इंडिया

इसे गिल साहब की किस्मत कहें या फ़िर इंडियन नेशनल गेम का गेम एक आशा की रौशनी इस रूप में देखने को मिला है कि तेरह साल के बाद भारत की हाकी टीम ने अजलान्शाह टूर्नामेंट के फायनल में स्थान बनाया है । ये समय लगभग उतना ही है जितना की हाकी के सिहासन पर गिल साहब कुंडली मारे बैठे थे । आज शाम को पता चला की हमारी टीम फायनल में हार गए है मगर फ़िर भी कोई गम नहीं है क्योकि आज नहीं तो कल हमारा जलवा कायम होगा । बस मेहनतकरो इंडिया बस लगे रहो इंडिया लगे रहो इस बार न सही अगली बार तो हम ही चक देंगे ।

समीक्षा मतलबों का गणित बदल देता है

भोपाल
एक दो दिन पहले कोई समाचार पत्र पढ़ा रहा था तो पता चला कि माधुरी का मतलब माँ अधूरी भी हो सकता है । अरे भाई में उसी रिपोर्ट का जिक्र कर रहा हूँ जिसमे संवाददाता ने हल ही में विदेश यात्रा से लौटे एक कलाकार के हवाले से जाहीरकिया है कि जब अपने प्रवास के दौरान वे भारत से निष्कासित कलाकार मकबूल फ़िदा हुसैन से मिले तो उन्होंने बताया कि उनकी माधुरी कि परिभाषा ग़लत कि जाती है उनकी इस माधुरी की परिभाषा तो उनकी माँ की याद से जुड़ी है। जिस कमी को वे आज भी काफी महसूस करते है । तो भइया या जब ये ख़बर अखबार में आई है तो हम भी भारत के उस साठ प्रतिशत जनमानस की तरह आंखें मीच कर भरोसा कर लेते है की ये सच ही होगा मगर फ़िर भी मेरे मन में कुछ विचारों के बुलबुले उठा है अगर उनका निवारण नहीं किया गया तो वे कल तक दाग बन जायेंगे और मेरे पास इतनी हिम्मत नहीं है की लगा चुनरी में दाग को रिन सुप्रिन से धो सके।
चलो इस बयानके आधार पर उनको माधुरी की पंटिंग बनाकर लाखों युवाओं के दिलों को तोड़ने की खतासे बरी कर दिया जा सकता है मगर हिंदू देवी देवताओं की पेंटिंग के बरे में उनका क्या बचाव है । इसी तरह उनके उस कम पर क्या कहना जिसमे पिछले दिनों उन्होंने नई नवेली विवाह फेम हिरोइन अमृता रावके बारे में बड़बोलापन दिखाया और ऐश अभिषेक की शादी के अवसर पर बाबुल मोरा नेहर छूटो जाय बनाई थी जिस पर काफी बवाल मचा था।
एक बात तो तय है किअब मकबूल साहब कई देशवासियों के दिलों से कलाकार का वो दर्जा खो चुके है जिसे वापस पा पाना आसान नहीं है। उस पर समय समय पर उनके नित नए स्टंट उनकी बची खुची इज्जत को भी मटियामेट करने वाले होते है।
मैं उन कलाकार से माफ़ी मांगना चाहूँगा और ये स्मरण भी करना चाहता हूँ कि समीक्षा से किसी के गुण-अवगुण का विवेचन किया जा सकता है वहीं आलोचना से अवगुणों की और दयां केंद्रित कराया जा सकता है मगर उन कलाकार का ये काम इन दोनों कार्यों से दूर वकालत कि श्रेणी में आता है और जब तक किसी के कर्म उम्दा नहीं हो कोई कम का नहीं होती है। वकालत से किसी व्यक्ति को एक पल के लिए महिमा मंडित किया जा सकता है साचा पर परदा डाला जा सकता है मगर ये सब कागज के फूलों से खुशबू आने जैसा है अगर कोई कहे कि अब ये परफ्यूम से सम्भव है तो उसमे कोमलता कहाँ से लाओगे।
इस लिए उन संदेशवाहक कलाकार और मकबूल साहब के समीक्षक से कहना है कि उन्होंने माधुरी का मतलब तो माँ अधूरी बता दिया है मगर फ़िदा साहब की अमृता का अर्थ भी पुंछते आते ।
शायद इसी बहाने हमे भी कुछ नया सिखने को मिल जाता ।

शनिवार, 17 मई 2008

अनिल गुलाटी को भावी पत्रकारों की विदाई

भोपाल
हमारे विभाग के द्वारा आज यूनेस्को के स्टेट संचार अधिकारी श्री अनिल गुलाटी जी को विदाई दी गई । इसके पूरे समाचार के लिए आप हिन्दी हेतु विभाग और इंग्लिश में स्केम देख सकते है ।
असुविधा के लिए खेद है

उद्धव का नया स्टंट

मुझे उम्मीद है की सर्कस तो आप सभी ने अपने अपने बचपन में देखा ही होगा ना ? और नहीं देखा हो तो भी चिंता करने की कोई बात नहीं क्योंकि अब हाईटेक सर्कस देखने को मिलेगा सबको।
अरे भाई भोपाल में कोई नया सर्कस नहीं आया है कि जिसकी सूचना में आपको दे रहा हूँ । बल्कि मेरा तो ये मानना है कि अगर आपकी जरा सी भी सर्कस में रूचि हो तो आपके लिए निसंदेह महाराष्ट्र और मुम्बई कि राजधानी बड़े काम की जगह है। वहां के हालत मुझे तो कम से कम किसी सर्कस से कम नहीं लगता है।
जैसे सर्कस में एक के बाद एक नया तमाशा आता रहता है उसी प्रकार इस मुम्बाइया सर्कस में भी एक के बाद एक नित नए खेल होते जा रहे है। कभी उत्तर भारतीयों को मुम्बई से निकलने के नाटक तो का कभी बोम्बे के नाम पर बोम्बे नाम के संस्थानों में तोड़ फोड़।
ये सारी कलाबाजियाँ सर्कस से भी ज्यादा रोचक है। भाई पिटने वाले भले पिटते हो मगर मारने वाले उनसे भी ज्यादा डरे हुए है।
आपने सर्कस में देखा होगा कि बड़े जोकर के साथ खेल में छोटा जोकर भी होता है और छोटा जोकर हमेशा ही करतब करने से पहले तो डरता है । इसी बीच उसका उत्साह बढ़ने के लिए बड़ा जोकर स्टंट दिखता है वो करतब बड़ी खूबसूरत कलाबजियों के साथ दिखता है और सबकी तालियाँ प्राप्त करता है ये सब कुछ देखकर छोटा जोकर भी जोश में आकर स्टंट करने को रिंग में उतर जाता है और वास्तव में कर कुछ नहीं कर सकता है उल्टे दर्शकों कि हँसी का पात्र बन जाता है।
ये तो थी सर्कस कि बात मगर मुम्बई में भी हालत कुछ ज्यादा अलग नहीं है वहां भी अब उद्धव अपने बड़े राज की देखादेखी करने में लगे है। जो कहते है कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आई पी एल में खेलने का कोई हक नहीं है। साथ ही उन्होंने शरद पंवार को भी निशाना बनाया है।
अब उन्हें कोई समझाए इन स्टंट से कुछ नहीं होगा बस ये जरुर होगा कि लोग जरा सी देर जोरों से तालियाँ ही बजायेंगे ।

पिंक सिटी को आई पी एल छाप मरहम

भोपाल
जयपुर के विस्फोट के पीडितों को राहात के लिए कई लोगों ने हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया है कभी दैनिक भास्कर के द्वारा मदद के बाद अब आई पी एल भी मदद के लिए आगे आया है।
आई पी एल की आठ टीमों ने मुख्यमंत्री राहत कोष में पचास पचास लाख रूपये देने की घोषणा की है। साथ ही उनका ये कदम बड़ा अच्छा रहा है जिसमे उन्होंने जयपुर में ही अगला मैच आयोजित कराने का साहस किया है यह काबिले तारीफ कदम है। और इसमे बेहद साहस और भरोसे का कम भी है जिसमे खतरा कम नहीं है।
इस से दूसरी और बात करे केन्द्र सरकार की तो उनकी राजनीती बड़ी ओछी है , जयपुर जैसे शहर में ब्लास्ट होने पर भी हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने यहाँ आना भी उचित नही समझा है । सोनिया जी आयीं तो वो भी बस इतना कह कर चली गई कि सतर्कता होती तो ये नही होता भाई इतनी बड़ी घटना पर वे जयपुर कि सहन शक्ति कि प्रसंसा के अलावा कुछ नहीं कर सकी । ये हमारी वाही सरकार है जो म्यांमार में या भूटान कि मदद के लिए तो बड़ा बड़ा चन्दा दानवीर कर्ण की तरह कर देते है मगर यहाँ उनकी जेब कंगाल हो जाती है ।

शुक्रवार, 16 मई 2008

क्या इंसानियत अब भी जिंदा है ?

कहते है कि आप भले तो जग भला, राजस्थान हमेशा से ही लोगों के आंसू पोछने में आगे रहा है उसी का नतिजा है कि अब यहाँ पर भी सेवा के हाथ बताने वालों की कमी नहीं है । आज कही पढने को मिला जहाँ एक तरफ़ हमारे हाथ तो हमारी सेवा मैं है ही साथियों ने हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया है।
जयपुर के नजरों को देखने आए पर्यटकों से भी नही रहा जा रहा है और वे दिन रात लोगों की मदद कर रहे है। जहाँ एक और मेडिकल होस्टल के डॉक्टर और मेडिकल स्टूडेंट्स और नर्सिंग के बच्चे जुटे है रहत देने के इस प्रयास में ।
समाचार से ज्ञात हुआ कि जो भारत के रंग और जयपुर के दृश्यों को देखने के लिए आए और यहाँ का ये हाल देखा तो, खुद भी जुट गए एक त्रासदी से बचाव करने मे । अपनी पसंद के शहर को जब मुश्किल में देखा तो होटल में छिपने के बजाय, दो अमेरिकी पर्यटकों रक्तदान करने के लिए और उन घायल हुए लोगों की सहायता के लिए हॉस्पिटल जा पहुचे, समाचार पत्र में भी जब पढ़ा की कर्फ्यू के बावजूद रक्तदान करने वालों की लाईन कम नही थी तो लगा कि अभी भी हमारे खून में उबाल बचा है ।
उन सभी हाथों को मेरा प्रणाम उन कन्धों को मेरा धन्यवाद ।

एरिक और उसके दोस्त को इंडिया आए हुए चार पांच दिन ही हुए थे और जिस दिन ब्लास्ट हुआ वे किसी काम के सिलसिले में जयपुर से बाहर सयद किसी शादी में गए थे मगेर विस्फोट के बाद अगले दिन पता चला कि साठ लोग मरे है दो सौ सोलह घायल है और ब्लड डोनेट करने वालों कि जरूरत है और उन्होंने मरीजों की मदद की
अब एक बात उन लोगों की भी कर ली जाय जो इस तरह के हालात में भी अपने हितों के पीछे पड़े रहते है। मैं बात कर रहा हूँ उन दवाईयों के दूकानदारों की जिन्होंने घटना वाली रात अपनी दवाओं को जम कर ऊँची कीमत पर बेंचा। इस पर शिकायत का भी कोई असर नहीं हुआ समझ में नहीं आया।
ये घर में धंधा आड़ा कब से आने लगा है ये बात शायद किसी कलयुगी बनिए से छुपी हुयी नहीं थी कि तब हालात क्या थे और वेसे भी इन मेडिकल वालों कि कमायी कम होती ही कहाँ हैं फ़िर कुछ मौकों पर तो सब्र रखा जा सकता है और सरकार की नीद क्यो नहीं उड़ती है होना ये चाहिए की उन सभी मेडिकल वालों के लायसेंस केंसल कर देने चाहिए जो ना सिर्फ़ उपभोक्क्ताओ को ब्लैक मेल करते है बल्कि देश के दुश्मन होने जैसा काम करता है।

गुरुवार, 15 मई 2008

इसे कहते है ...................

भोपाल
आज से कुछ सालों पहले जब मैं सेकंडरी में पढ़ा था की राजस्थान में कई स्थानों के विस्थापितों और शरणार्थियों को शरण दी गई है जो यहाँ की जनसंख्या बड़ा देते है । तब मुझे गर्व होता था किहम अपने पुरखों रंथाम्भोर के हमीर कि भांति शरण दे रहे है । मगर आब जब उनका ही नाम आता है कई विस्फोटों में तो अपने से ही ....................

सोमवार, 12 मई 2008

व्यंग्य के लिए थोड़ा-सा नॉन सेंस होना पड़ता है

भोपाल

व्यंग्य संवेदना की जमीं पर अनुभव के बीजों को कल्पनाशीलता से सींचने के जैसा है ये कहना है जाने-माने आर्थिक विश्लेषक और व्यंग्य कर श्री आलोक पुराणिक जी का , जो इन दिनों पत्रकारिता विभाग के छात्रों से रूबरू हो रहे है इस मसले पर बाकि बातें ब्रेक के बाद ........................................... ।

चीयर लीदेर्स नेक्स्ट टाइम इन साडी में दिखेंगी

भाई कहा गया है की जिन्दगी में शान्ति के लिए ये जरुरी है कि जितना हो सके विवादों से बचा जाय तो स्वाभाविक है की इसका फायदा ही होगा अब अपने आई पी एल सिरीस को ही ले लीजिये क्या जरुरत है नवरे झंझटों में पड़ने बस अपने को तो मैच खलने से काम मगर नहीं भारतीय जो ठहरे बस चले तो रास्ते में सोये शेर की भी पूंछ मरोड़ने का मजा उठाना नहीं भूलेंगे जब ये टूर्नामेंट शुरू हुआ था तो सभी को जनता को अपनी और खीचना था नतीजतन शुरू हो गई कभी ख़त्म न होने वाली खीचतान कभी हरभजन का झापड़ तो कभी चीयर लीडर्स को लेकर बवाल यहाँ तक कि इस मुद्दे पर संसद मे ये स्थिति हो गई कि कई जनप्रतिनिधियों के नाम शिस्ताचार कमेटी के सामने रखे गए फ़िर भी चीयर लीडर्स का मटकना जारी रहा राजस्थान मे उनपर बोटल मरने कि शिकायत भी आई मगर भइया ये किरकिट है किसकी सुनता है सबकुछ एक मेक हो गया तो अब हालात से शर्मा कर मुंबई और चेन्नई के बाद राजनीतिक दलों के दबाव की वजह से अब हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन ने आईपीएल मैचों के दौरान चीयरलीडर्स की ड्रेस में बदलने का फैसला किया है नए ड्रेस कोड के कारण कोलकाता नाइट राइडर्स और डेक्कन चार्जर्स के बीच हुए मैच में चीयरलीडर्स पूरे कपड़ों में नजर आई।दोस्त ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू यहाँ अच्छे अच्छे आकर सुधर जाते है तो इन बेचारी न्रित्यांगानाओ कि क्या बिसात और रही बात बाकि लोगों कि तो उनको भी तो अपनी कम्पनी को कम कर देना है और पब्लिक के डिमांड के मुताबिक काम नहीं किया तो सब नाटक किया धरा रह जाएगा इस लिए अगर जनता इसी तरह चीयर लीडर्स से कन्नी काटती रही तो पता चला अगले साल ये ही बालाएं साडी मे नाचती दिखई पड़े ।

अब एड के भी सिक्वल बनने लगे है

भोपाल
बात कल की है जब मैं टीवी पर कोई प्रोग्राम देख रहा था तब मुझे इंडिया की ओये बबली का एक एड देखने का सौभाग्य मिला। अरे क्या हुआ ओये बबली से कुछ याद नहीं आया, बबली बोले तो पेप्सी। उसे देख कर मुझे याद आया की कुछ दिनों पहले तो पेप्सी का दूसरा एड आता था जिसमे सांवरिया फेम रणबीर ओम शान्ति ओम से चर्चा मैं आई दीपिका को घर छोड़ने जाता है तो उसको दीपिका का भाई यानि कि शाहरुख़ देख लेता है तो बचने के लिए अपने एक हाथ मैं टूटा हुआ डी टी एच लेकर कह देता है कि मैं यंगिस्तान से आया हूँ।

जब पूछा जाता है कि यहाँ क्यो आए हो ? तो बताता है कि तुम्हारी बहन का बोडी गार्ड बनने के लिए फ़िर क्या हो जाती है उसकी वहां उसकी जगह।

इसके कुछ समय बाद ही जब आई पी एल में जब किंग खान कोल्कता टीम,दादा , चीयर लीडर्स में व्यस्त थे तो कम्पनी ने उनकी गैर मौजूदगी में बचे दोनों मॉडल के साथ एक नया एड बनाया है जिसमे दोस्त रणबीर से कहते है कि क्या आईडिया दिया है बॉस लड़की के घर में जाने का। और लेक्चर देने के बहाने रणबीर किसी और का पेप्सी पी लेता है।

अब ये तो थी एड कि बात पहले किताबों के , फ़िर फिल्मों के और अब इस दौर में एड के भी सिक्वल आने लगे है। अब देखने वाली बात ये होगी की इनको कितनी सफलता मिलती है और नही मिलेगी तो क्या फ़िर कोई नया सिक्वल एड बना देंगे।

हम उसे देखेंगे और दोस्तों के बीच उसी स्टाइल मे पेप्सी पीकर कहेगे ......................

ये यांगिस्तान मेरी जान ।

बड़े काम की चीज है सायकल

रहिमन देखा बदें को लघु दीजिये डारी
जहाँ काम आए सुई , का करे तलवारी
भाई साहब ये तो थी मेरी मन की बात।
अब आप पूछेंगे की इस सायकल का रहीम दास जी क्या लेना देना है, तो मैं बताता हूँ, कुछ दिनों पहले की बात है हमारे एक सनीयर हमसे मिलने आए हम भी नेट खबरें पढ़ रहे थे और हमने अपनी एक सहपाठी जो एक अख़बार मैं काम करती है उससे कहा कि अबे स्टील के रेट बढ़ने से सायकल बन्नने वाली कम्पनियों ने सायकल के दाम ज्यदा कर दिए है जिससे आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ जायेगी इस पर तुम स्टोरी कर सकते हो।
हमारा बस ये कहना ही हुआ था की अग्रज हमे शिक्षा देने लग गए की आज कितने लोग है जो साईकिल चलते है हमारे पेपर का रीडर साईकिल पर चलने वाला नहीं है हम इलीट क्लास के लिए लिखते है।
खेर इनका उपदेश भी समाप्त हो गया वे ही महाशय अगले दिन उस अखबार के दफ्तर के सामने दिखे जो ठेले और खमचों वालों का अख़बार ही माना जाता है।

मुझे एक बात ये समझ मे नहीं आई की हम सब सच जानते है तो फ़िर ये झूठा आवरण क्यो ? सच ये है की आज हमारे देश में आधे से ज्यादा लोग गाँव में रहते है जहाँ आपकी फटफटिया से कई गुना ज्यादा लोग साइकिलों से सफर तय करते है। इस पर अगर यदि हम गाँव के लोग को मूर्ख और सायकिल को घृणा की नजर से देखने लगे तो फ़िर वो गया कल्याण आज जितना पेट्रोल खपत होता है उसका कई गुना तेल चाहियेगा , और जब आज की डिमांड को हम पुरा नहीं कर पा रहे है तो फ़िर हमारा भविष्य तो राम भरोसे होगा।

फ़िर तो सारा झंझट ही खत्म हो जाएगा आप भी साईकिल से चलेंगे और गांवों मे रहने वाला गवार भी साईकिल से सवारी करेगा शान से ,और आप मजबूरी से ।

है न मजे वाली बात ।

गुरुवार, 8 मई 2008

कहाँ छूटेगा ये ब्रह्मास्त्र

भईया अब हम तनिक भोजपुरी इस्टाइल मे आ जाते है
कारण के ई बक्त हम हमारा नाहि हमार भोलू भइया याने के परवीन का बारे में बात कर रहे हैं । हमारे वरिष्ट परवीन जी से हम नन्हें मुन्ने बच्चों की हँसी ठिठोली देखि नाहि गई और उन्होंने भी इस ढलती उमरिया मैं अखबारों को पढ़ना छोड़ के अब ब्लॉग लिखने का फ़ैसला किया है ।
जनाब यहाँ तक टू कोई बात नहीं मगर इससे आगे की जो बात हमे आज के न्यूज़ पता चली है कि उन्होंने बच्चों को सही दिशा निर्देशन देने के लिए अपना ब्लॉग बनाया है ।
जिसके द्वारा वे हमारे विभाग के साथ साथ जो भी ब्लॉग मिलेगा उसमे मीन-मेख निकलने का कर्म करेंगे और इस दौरान वे गीता के कर्मन्येवाधिकारास्तू मां फलेषु कदचिने के आदर्श पर कार्य करेंगे ।
आपको बताना तो नहीं चाहिए लेकिन हम बता देते है कि उन्होंने अपने ब्लॉग को बड़ी मेहनत से बनाया दूसरो कि तरह ए सी कमरों में बैठ के नहीं बनाया है, उन्होंने अपनी जेब से पैसे काट कर सायबर केफे में जाकर अपना ब्लॉग लॉन्च किया है । अरे भाई जहाँ एक और भारत और पाकिस्तान चाहे कैसे भी हथियार बना रहे हों मगर जरा सोचे कि क्या हम इस शक्तिशाली मीडिया मध्यम का अंधेरे को मिटने मे कर पा रहे है या नहीं । शायद हम तो जरा भी नहीं । आखिर हम ब्लोग्गिंग को लेकर गम्भीर कब होंगे । मुझे नहीं पता फ़िर भी उम्मीद है कि उम्र के साथ साथ जैसे लड़कपन चला जाता है और गंभीरता आ जाती है उसी तरह हमारे ब्लॉग भी बड़े होने पर गंभीर हो जायेंगे , मगर ये सब इतना आसन नहीं होगा क्योंकि जब तक किसी बच्चा गिरता नहीं है चलना नहीं सीखता है बिना तानो के सबक नहीं मिलता है । आज हम प्रवीण जी की तरह हमारे सभी बडों को ये निमंत्रण देते है कि वे आए तो सही हंस कर या झल्ला कर ही सही , निंदा या फटकर किसी भी बहाने हमे रास्ता तो दिखाए । और दिखाए एक राह जिस पर चल कर हम कुछ कर सके मगर कोई हो तो सही ना । जो हमे चलना सिखा सके हमारी अंगुली पकड़ कर चलना सिखा सके समझा सके निन्दा कर सके हमारी ताकि हम
आपही होत सुहाय जैसे बन सके ।
चलते-चलते आपको भी बता देते है । उनके ब्लॉग का नाम है ब्रह्मास्त्र अभिव्यक्ति का
भाई यू आर एल तो उनको याद नहीं रहा जब वो बता देंगे तो हम आपकी सेवा मैं पेश कर देंगे फ़िर भी खैर अब आप जरा संभल के क्योंकि पता नहीं ये ब्रम्हास्त्र कहाँ जा रहा है कहीं आप से न टकरा जाए ये दिशा हीन अस्त्र जिसे ब्लॉग कहते है

सब पड़े है सरकार के राज़ के पीछे


भोपाल
भैसों की कतार के बीच में काम करते चार पांच लोगों को ताबड़ तौब आर्डर देता हुआ भइया,
मजदूर दोड-दौड़ कर काम कर रहे है ।
कैमरा को अपने करीब आता देख घूरती आँखों से देख कर अपनी क्लोस अप स्माइल के साथ भैंस, जब कैमरा दूर जाता है तो कैमरा मैन को अपने को फोकस करने का आर्डर देती हुयी सी लड़ती है। वह भैंस हमेशा की तरफ़ बीन की बजाय लेटेस्ट ज़माने के म्यूजिक डायरेक्टरों के चोरी-चकारी के हालीवुड के बेक ग्राउंड म्यूजिक पर भी पगुराती हुयी-सी भैंस जो अब तक जरा भी नहीं बदली है ।
पास ही में एक लकड़ी की आराम फरमाने वाली कुर्सी पर बैठा एक युवक जिसके हाथों में एक कप और प्याली है चीनी मिटटी की जिसमे वह बार बार चाय निकल निकल कर पिता रहता है।
सामने आंखों से दो कदम भर की दूरी पर रखा है एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी जिस पर वह सरकार फ़िल्म देख रहा है उस युवक की पीठ से सट कर एक खम्भा है जिस पर अमिताभ बच्चन का सरकार फ़िल्म का फूल साइज़ का पोस्टर लगा है ।
तभी पीछे से अपना लाफ्टर फेम रतन नूरा जो नौकर होता है कहता है क्या भइया आप दिन भर आप इस फ़िल्म को क्यों देखते रहते है सुबह से आप इस फ़िल्म को चार बार देख चुके है
ठिगने कद का वह युवक अपना यू पी का राजपाल खड़े होकर कहता है
हमका सरकार बनना है पूरे मुम्बई के साथ साथ अंडरवर्ल्ड पर राज़ करना है
मेरे भाई ये तो थी कुछ दिनों पहले मेरे द्वारा देखी गई फ़िल्म अपना सपना मनी मनी का एक कॉमेडी का शोट जिसमें राजपाल को दोन बनने की बड़ी हसरत रहती है । उसके लिए वह क्या क्या करता है ये में तो आपको बाद में कभी बताऊंगा । उससे पहले शायद ये फ़िल्म देख लेंगें अब तो दूरदर्शन पर भी ऐसी फिल्म बड़ी जल्दी बता दी जाती है खेइर ये बात अलग है की उनमे विज्ञापन प्राईवेट चेनलों से भी ज्यादा होते है हमारे सिनेमा का तो कम ही जनता को कामेडी से हँसाना होता ही है मगर पिछले कुछ दिनों से जो चल रहा है वो भी कम मजेदार नहीं है ।

बाला साहब ठाकरे की स्टाइल से प्रभावित होकर रामू एक ऐसी फ़िल्म बना बैठे जो रामू की कम्पनी को आर्थिक, तो सदी के सुपर स्टार बिग बी को राजनैतिक समस्या में डाल गई । हुआ यूं कि इस फ़िल्म से राजपाल जैसे कई युवा इतने प्रभावित हुए कि एंग्री यांग मन कि इमेज के साथ सिने जगत में आने वाले बच्चन साहब के लिए भी तकलीफ दायक बन गए उन जोशीले जवानों ने समझा कि सत्ता के लिए सिनेमा के लिए दो-दो हाथ हो जाए तो क्या कहना ।

अरे भई वैसे भी अब पॉलिटिकल बीट में अब इतना स्कोप ही कहाँ बचा है । इस बीट के पत्रकारों को फ्री के गिफ्ट देने का भी कोई फायदा नहीं है , जब एडिटर राजनीती के हर समाचार को सिंगल कॉलम में लगाने का फतवा जरी कर देता है

भाई जैसा फायदा राजपाल ने कॉमेडी के जरिये फिल्मों में उठाया वैसा ही कुछ मिलता-झूलता लाभ नए ठाकरे साहब ने लेना चाहा है अमिताभ बच्चन को कोन नहीं जनता है देश के हर गाँव में पेप्सी को लॉन्च करना हो तो अमिताभ , झंडू के प्रचार के लिए अमीत जी , यहाँ तक कि प्लस पोलियो तक के जन जन तक पहुँचने के लिए अमिताभ का सहारा लिया जाता है समाजवादी पार्टी का चुनाव प्रचार उनके दम पर चलता है विदेशों में होने वाले आइफा अवार्ड तक जब अमिताभ के नाम आने साथ ही घर घर में देखे जाते है यहाँ तक कि मल्टी स्टारर फ़िल्म ओम शान्ति औम भी उनके बिना नहीं रिलीज होती है तो राज़ ठाकरे को तो मुम्बई के घर घर में ही पहुचना था किसके लिए ? अरे भाई चुनाव आने वाले है और इनको भी एकछत्र सरकार बनने का सा सपना लगता है ।

दूसरी और ये अमिताभ जी है कि इनको भी न जाने इस सरकार बनने कि क्या तलब लग गई है जो छुटाए नहीं छूटती है । जहाँ एक तरफ़ राज़ सरकार बनने के पीछे पड़े हुए है तो अमिताभ जी भी हाथ धोकर सरकार राज़ के पीछे पड़ गए है ।

अब इस उमर में क्या जरूरत है सरकार-वरकार के नवरे चक्कर में पड़ने की मेरी माने तो अब सरकार की छाया के पास भी मत जाइये इसके लिए रामू जी को पुरी तरह से नो थैंक्स कह दीजिये क्योंकि बहुत कठिन है डगर ..................................की ।

अब अमिताभ जी इंडस्ट्री में एक संवेदनशील कलाकार के रूप में स्थापित हो चुके हैं उनके ऊपर से अब वो पुराना वाला एंग्री यांग मेन का लेबल हट चुका है मगर राजनीती के साथ उनकी करीबियों का फायदा लिया है छोटे ठाकरे ने ।

वैसे कहा भ जाता है कि जब शेर सोया होता है तो हर कोई उस पर गुर्रा सकता है मगर राज साहब ये पब्लिक है जो सब कुछ जानती है कितने लोग है आपके साथ जरा गिन कर बता देना मगर एक जो आपको भी पता होना चहिये वह ये कि सच किसी से छुपाये नहीं छुपता है ।

आज देश के हर कोने में बच्चे बच्चे अमिताभ को जानते है और इसी तरह उन तक ये खबर भी पहुँच गई है कि आप क्या कर रहे है अब आप ही सोचिये क्या आप पांचवी पास से ज्यादा ......................नहीं है

बुधवार, 7 मई 2008

अमीरों के चोंचले

भाई साहब सात मई एक ऐसा दिन जिसका कई बार इन्तजार सा रहता है ।
पता नहीं क्यो मिडिल क्लास से है तो कई बार हम जैसे लोगों को लगता है कि सबकुछ आसानी से हो जाए मगर ये सबकुछ लाइट कैमरा एक्शन जैसा नही है ना भाई सात मई को हमारा भी बर्थ डे होता है ना भाई जैसे जैसे हम बड़े होते जा रहे है तो हमारे हाल भी सुधारते जा रहे है ।
भई याद नहीं आता है कि बचपन में कहाँ पर हमारा बर्थ डे मानता था भई हमारे बापूजी गाँव के रहने वाले वहां न तो मोमबत्ती मिलती थी और न ही केक मगर अब हालात बदल गए है वहां भी कुछ कुछ तो मिलने लगा है ये बात हमे शहर आकर पता चली है।
पांचवी तक पढ़ने के बाद हम नवोदय में चले गए वहां गिर्ल्स हॉस्टल में तो भूल-चुक से बर्थ डे कि क्लेपींग कि आवाज सुनाई दे देती थी मगर बोय्स हॉस्टल मैं एसे मौके बहुत कम आते था और कभी लड़को बोले तो कड्को की बस्ती मैं भी रोनक आती थी । नवोदय के बाद फ़िर वाही चार दिन कि चांदनी वाली बात लेकिन वक्त गुजरा और इस तारीख के साथ एक और रिश्ता जुड़ गया वह थे मेरे सबसे प्यारे दोस्त रतन कुमावत की की वेडिंग अनिवेर्सेरी थी ।
इसके बाद हम उदयपुर आ गए कॉलेज में पढने को मेरे साथ बड़े भाई भी थे वो एम ऐ कर रहे थे तो मैं बी ऐ . यहाँ भी हमारी दोस्ती का दायरा काफी सीमित था फ़िर आगे चलकर ये दिन एक और याद जुड़ गई मेरी मौसी की लड़की सुधा और कविता की शादी भी इसी दिन को हुयी थी इसी प्रकार जब डिप्लोमा कर रहे थे तो हमारे बैच मैं नंदू भइया और सना थी तो उन्होंने भी धीरे से सारी तैयारियां कर ली और फ़िर बताया पत्रिका में काम करने के दोरान पिछले साल इस दिन नरेश भाई और दिनेश नही माने तो उन्होंने भी जमकर मजा उठाया ।
इस साल भी हमारा तो ऐसा कोई इरादा नही था मगर जब सबको उनके बर्थ डे पर हमारी लात पड़ी हो तो कई कैसे मौका चुक सकता है और हुआ भी वही शांतनु और प्रवीन ने पुरा मजा लिया और सुबह नेताजी ने बची खुची कसार पुरी कर दी ।
खैर शाम को केक वेक सबकुछ हुआ मगर आब जब मैं इस के बारें में सोचता हूँ तो लगता है की उसका क्या मतलब है आपको सभी लोग फ़ोन करते है अपना टाइम निकल कर आपके लिए परेशान होते है और ये केक वेक सब बकवास है बात पैसे की नहीं है मगर इन सब चोंचलों की जरूरत ही क्या है ।
जब आप किसी के लिए प्रेम स्नेह और सम्मान रखते है तो ये सब महत्वहीन से प्रतीत होते है मेरा कहने का मतलब भाव बिन सब सून अब जब हम जो है सो रहें तो ही अच्छा है हमारा तो एक ही सिद्धांत है जो बचपन मैं मेरी तरह पढे तो हम सभी होंगे मगर शायद आज कहीं भूलते जा रहे है किसी ने कहाँ था कि सादा जीवन उच्च विचार फ़िर भी वक्त के साथ बदलना जरूरी है मगर इतना भी नही बदल जाए कि देशी छोरी परदेशी चाल वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है ।
सो भाई मेरे इन अमीरों के चोचलों में कुछ भी नहीं रखा है इन मुखुतों के सहारे अपना असली चेहरा छुपाया नहीं जा सकता है कभी न कभी वो सामने तो आ ही जाएगा फ़िर इन मूखौटों का बोझ क्यो तौका जाय