मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

लगे रहो इंडिया लगे रहो

जनाब इन दिनों खबरें तो बड़ी चोखी चोखी सुनने को मिल रही है। आज की ही बात कर रहा हूँ किसी अख़बार मे पढ़ा था दो हजार सत्रह तक भारत मे सर्वाधिक अरबपति होंगे। वह भई सुनकर ही आनंद आ गया, शायद हमारे आस पास भी कोई न कोई तो होगा हमारे गाव , शहर , जिले का भी होगा। अरे भाई कोई हमारा पुराना क्लास मेट भी तो हो सकता है। चाहे कुछ भी हो हमने तो सोच लिया है कि जब लोकतंत्र मे सबको समानता का अधिकार है तो हमे भी कई अरबपति चाहिए ताकि हमारा जीवन भी आराम से गुजर सकें। अभी नवीनतम सूचि के मुताबिक भारत में तिरेपन तो अमेरिका मे चार सौ उन्सत्तर अरबपति रहते है अमेरिका मे अरबपति घट रहे है। स्थिति यह है कि संसार के सबसे धनी लोगों मे कई अरबपति भारत से है। अमेरिका मे एक प्रतिशत कि दर से अरबपति घट रहे है और भारत में पचास प्रतिशत की दर से बढ़ रहे है। उम्म्मीदे है की आपकी और हमारी दुआओं से ये बढ़कर पांच सौ तक हो जायेगी और हमारा देश नम्बर वन हो जाएगा। वाह भाई क्या कहना तब तो बल्ले-बल्ले हो जायेगी हमारी सारी मेहनत और विकसित देश बनने का सपना सच हो जाएगा।

वैसे भी आप जानते नही हम क्या-क्या नही कर रहे है। अपने देश को आगे ले जाने के लिए। किसान, मजदुर के साथ-साथ हर बच्चा-बच्चा जी जान से लगा हुआ है जन प्रतिनिधि तो सबकुछ भूल-भूला कर लगे हुए है। नेताजी क्या हमारे देश के अंडरवर्ल्ड के डान लोगों को भी चैन नही है। पिछले दिनों फोर्ब्स पत्रिका के द्वारा जारी दुनिया भर के मोस्ट वांटेड लोगों फोर्थ स्थान पर भारतीय मूल के जाने मने डान दौड़ दादा है। हाँ जनाब हमारी तरक्की एकतरफा नही है। हमारा विकास चहुंमुखी हो रहा है। पहला मुख पोपुलेशन , दूसरा मुख सबसे धनी व्यक्ति , तीसरा मुख किरकेट और चौथा मुख अपराध हर मुख पर हम आगे ही आगे है। आशा है इसी तरह आगे बढ़ते रहे तो आने वाले टाइम मे हम धन , जन के साथ साथ हर मामले में दुनिया में पहले स्थान पर होंगे।

सोमवार, 28 अप्रैल 2008

का तमाशा है भाई ?

आज के दैनिक भास्कर में जयप्रकाश चौकसे जी का कालम परदे के पीछे में एक नई बात पढने को मिली के जब सभी लोग नो मोर चीयर लीडर के नारे लगा रहे है तो इन जनाब की धारा के विपरीत राय पढने को मिली। ख़बर का हेडिंग था तमाशे की जान, तमाशे की आन। उन्होंने लिखा कि सांस्कृतिक आक्रमण की थोथी दलील में कोई दम नही है क्योंकि संस्कृतियाँ तरल होकर एक दुसरे में मिल जाती है। कुछ लोगों को आपत्ति है की चीयर लीडर की तरह नाच गाना हमारी परम्परा नही है वे भूल जाते है की इस क्रिकेट का जन्म भी विदेश में ही हुआ है।

जनाब मजा आ गया क्या कहना क्या लिखा। वाकई मे आज के ज़माने में किसी का असली चेहरा पहचान पाना आसन नही है। जब नेताजी के चुनावी प्रचार मे शराब और शबाब का बोलबाला होता है तो किसी को आपति नही होती है। अगर इस पर भी उनका मत ये हो की हम तो भारतीय को नाचते है तो इससे भी बुरी बात और क्या होगी। जश्न तब भी होता है और यहाँ भी हो रहा है बुरा है। नेताजी अक्सर दूसरो को प्रवचन देने के दौरान ये भूल जाते है कि उनका कुर्ता अभी भले ही साफ दिख रहा हो दाग उन पर भी है। बस नेताजी सस्ते मे काम चलते है और इन किरकेट वालों के पास पैसा ही पैसा है और इन आई पी अल वालों के पास कोई कमी नही है फ़िर कोई सस्ते मे कम क्यो चलाए अब नेताजी के लिए चेलेंगे तो यह भो होगा कि नेता इतना कोस्ट एफ्फोर्ट कर पते है या नही। नेता जी कुछ करो ये इन्डिया के क्रिकेट के चक्कर में इंडियन वोटर भी अब फोर्गिन वालियों कि डिमांड करने लगेंगे। आगे एलेक्टिन जितना हो तो व्यवस्था तो करनी ही होगी वरना अगली बार सरकार आने के चांस नही के बराबर है

रविवार, 27 अप्रैल 2008

लेखकों का बुरा हाल

पिछले दिनों पढने को मिला की वयोवृद्ध लेखक अमरकांत बीमार चल रहे हैं। अपने समय में किताबों की बिक्री के बादशाह रहे लेखक अमरकांत जी के लिए इन दिनों परिवार का गुजारा करना भी मुश्किल हो गया है बीमारी ने उन्हें बिल्कुल इतना तोड़ दिया है कि वह अपने पुरस्कार तक बेचने को तैयार हैं। उनकी इस खराब हालत की एक वजह प्रकाशक भी मन जा रहा है, जिन्होंने उनकी रायल्टीनही दी है
भारतीय और खासकर हिंदी लेखकों की हालत पर हिंदी की प्रसिद्ध रचनाकार चित्रा मुद्गल का यह कहना है कि साहित्य एवं कला-संस्कृति ही एक देश की पहचान हैं। लेकिन आज जब ऐसी बातें सामने आती हैं जो भयानक लगती है। साहित्य और सांस्कृतिक उत्थान ही देश की अस्मिता की पहचान है। इसीलिए आजादी के बाद साहित्य कला परिषद, साहित्य अकादमी और संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की बात उठी। यह बात भी उठी कि अलग-अलग प्रदेशों की अपनी अलग भाषा/साहित्य अकादमी होनी चाहिए। अकादमियां बनीं भी, लेकिन उनके प्रचार-प्रसार पर ध्यान नहीं दिया गया। आज भी
प्रेमचंद स्थापित नहीं हो सके। भारतीय भाषाओं की रचनाओं को बाजार नहीं मिला, तो लेखकों को रायल्टी। केंद्रीय साहित्य अकादमी ने भी उतनी लगन से काम नहीं किया कि लेखकों का 'ग्लैमर' बन पाता।
हकीकत यह है कि सरकार की ओर से प्रकाशकों को आज भी पूरा सहयोग मिल रहा है। विडंबना है कि प्रकाशक अपनी किताबें लाइब्रेरी में लगाने के लिए नौकरशाहों को तो पैसा खिलाते हैं, मगर लेखकों को नहीं देते। उन्हें जनता के बीच किताबों के प्रचार-प्रसार पर भी ध्यान देना चाहिए। इसीलिए आज अमरकांत की स्थिति इतनी दयनीय है। करें भी क्या.. लेखकों को पेंशन तो मिलती नहीं। गिने-चुने प्रकाशक ही ईमानदारी से रायल्टी देते हैं। प्रेमचंद ने कहा था, 'लेखक राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है और उसे रास्ता दिखाती है।' कहने का अर्थ यह कि लेखक राष्ट्र की अस्मिता का प्रतीक है। लिहाजा, सरकार को लेखकों के लिए पेंशन ही नहीं, चिकित्सा और रहन-सहन की व्यवस्था भी करनी चाहिए।
यह तो था भाई उनका मत मगर मेरा मानना है कि क्यो आज भी लेखक का नाम सुनते ही हमारे जेहन मे किसी झोला छाप व्यक्ति की तस्वीर उभर आती है ? क्यों कोई आदमी अपने बच्चे को बड़ा लेखक नही बनाना चाहता है ?
इस सवाल का जवाब मेरे पास तो यही है के हमारे लेखक बदलते वक्त के साथ अपने आप को बदल नही पाए। सच मे जिन लोगों ने अपने को वक्त के साथ मिला लिया वो जमने के साथ आगे बढ़ता गया। जो रुक गया सो पीछे ही रह गया। अब यह मत कहना की हम क्या कर सकते है।
मेरा मत है
कुछ तुम बदलो कुछ हम बदलते है
फ़िर कल देखेंगे कैसे वक्त नही बदलता है

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008

प्रतिभा मे बिखरें रंग

प्रतिभा में पत्रकारिता विभाग के छात्रों ने जम कर मजे किए । कुछ बातें शिव पर देखें । या इस पते पर क्लिक करें
k http://scam24।blogspot.com/2008/04/blog-post_25.html

बुधवार, 23 अप्रैल 2008

है कोई ऐसी अदालत .....



भाई साहब आपको ये मेम तो याद ही होगी
अरेभई कही न कही किसी किताब से तो पढ़ा होगा
भारत की पहली पुलिश आई पी एस अधिकारी कौन थी ?
जनाब हमने तो पढ़ा है डंके की चौट पर कहते है की पढ़ा नही
रत्ता मारा है मास्टर जी के डंडे के आगे सब याद हो जाता था
अब न जाने मास्टर जी भी कहाँ गए और उन्ही की कृपा से प्राप्त हमारी यादस्त भी गायब हो गई ।

तो हम बात कर रहे थे उन मेम कि जिनको हम किरण बेदी कहते है जिन्हें आज भी भारतीय कल्पना चावला के बाद दुसरे नम्बर का आदर्श मानते है ।


फ़िर भी पिछले दिनों जिस तरह से उन्होंने सिस्टम से परेशान होकर अपने को अलग कर लिया वह सब भारतीयों को जरूर सोचने पर मजबूर करना चहिये ।


भाई इस बात को लेकर मुझे तो यही कहना है की उनके साथ सही नहीं हुआ । कल मुझे कही से कागज का ये टुकडा मिल गया जिसने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया सिस्टम को बदल पाना आसन नही है ।


मुझे तो कम से कम उनसे इस दशा की उम्मीद नही थी । इस ख़बर मे लिखा था के समस्या सुलझाने का मंच बनेगा आपकी कचहरी ,सीरियल । अब मेरा आप से पूछना यह है की क्या कोई ऐसी जगह है जहाँ उनके साथ न्याय होगा । उनकी परेशानी किस अदालत मे आवाज पायेगी, या फ़िर उन की उन तक घुट कर रह जायेगी । ये प्रश्न मेरा किरण जी से है , उन रिपोर्टर महोदय उषा श्रीवास्तव जी से है , आप से है आप के दोस्तों से है, उनके दोस्तों से भी है ? हम सभी से ये प्रश्न है ?

सवेरे वाली गाड़ी से

मेहरबान कदरदान हजरात गौर फरमाएं हमर बाबा कल सवेरे वाली गाड़ी से आ रहे है ।
जिनको भी आना हो नाटक वालों को छोड़ कर जा सकते है ।

सोमवार, 21 अप्रैल 2008

गुजराती बान्चो जी भर के

भइयों आप के लिए एक छोटी सी बात है

कि मैंने गुजराती का ब्लाग बनाया है देखने का कष्ट करें ।

स्कैम२४इन गुजराती.कॉम

मजो आ गायों

आपका ना जाने क्या हाल होगा म्हारा यूनिवर्सिटी का फंक्शन मे तो भाई मजो आई गयो । आप भी देखलो म्हणे ।

मेरा विकल्प निकल चुका है

भोपाल ,
दोस्तों मेरा विकल्प का कम कहने ने को तोकभी का हो चुका है
अब आप भी उसको देखना चाहते हो तो बड़ी कृपा होगी ।
स्कम२४.ब्लागस्पाट.कॉम पर देखें ।

गुरुवार, 17 अप्रैल 2008

हम तो है भई जैसे वैसे ही रहेंगे



भोपाल ।
लोकतंत्र है भई हमारे देश मे । आज से नही आज़ादी से ही । हमे तो बचपन मे सिखाया ही यही गया था कभी नेताजी ने तो कभी मास्टरजी ने कि बेटा तिलक जी ने कहा था स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है इसे मे लेकर ही रहूगा । तो दूसरी तरफ़ नेताजी ने बताया कि वोट आपका अधिकार है किसी के बहकावे मे आकर वोट मत देना । ये बात और है कि गाव मे बहकाने वालो मे नेताजी का पहला नम्बर था।
मगर ये नेता जिनको हम ही चुन कर संसद मे जाकर करते क्या है कभी अन्दर रहे तो शोर शराबा करते है कभी कभी तो जुटा मार भी आ जाते है ये जनाब कुर्सी पर बैठते ही कम है । तभी तो ऐसे ही ड्रामा चलता रहता है ।

बुधवार, 16 अप्रैल 2008

माई एडा पुत जन जेड़ा राणा प्रताप
अकबर सुतो ओझके जान सिराने साँप

देहु तेज मोही हे शिवा शुभ कर्मन ते कबहू न डरों

तुम वीर हो , हे वीरों निश्चय दज अपनी जीत करों

क्या लिखु समझ मे नही आता

भोपाल
मेरे प्यारे दोस्तों और साथियों में लिखने के मामले में बड़ा ही आलसी हू । तो फ़िर आप कहेंगे कि ब्लॉग बनाया ही क्यों जानब हमे क्या पता था कि रोज कुआ खोद कर पानी पीना पड़ेगा । हम तो समझे थे एक के सहारे पुरी जिन्दगी गुजर जायेगी ।
अब जमने का ऊसूल हो कुछ ऐसा ही कुछ किया ही नही जा सकता । अब कल कि ही बात है । हमारी मुलाकात कुछ बड़े बड़े ब्लोगरों से हो गई । जनाब जानबूझकर नही, बस अनजाने में , तो पता चला में तो काफी पीछे हूँ । तब मैंने भी सोचा कि कुछ भी करो बेटा
फास्ट ड्राइव करना सीखो ।


दोस्तों आपके लिए मेरे पास गुड न्यूज़ ये है की जो लोग शादियों मे जम कर नाचते है उनको मजा आएगा ।
अब कारण मत पूछना । ऊपर वाले कार्ड को देखो सब समझ मे आ जाएगा ।

सोमवार, 14 अप्रैल 2008

कन्हेया लाल जी नही मिले

दोस्तो कहते है कि इंटरनेट आज के ज़माने कि सबसे बड़ी लायब्रेरी है । इसमे कुछ भी बुरी बात नही है
मगर अफ़सोस कभी कभी ये काफी कम पड़ जाता है पूरे गूगल पर सर्च के दोरान मुझे जाने माने राजस्थानी कवि कन्हेया लाल सेठिया जी और उनकी कविता पिथल और पाताल नही मिली। सिर्फ़ गीता कविता वेबसाइट पर किसी का इस कविता के लिए अपडेट करने का कमेंट ही था । आशा है कि जल्द ही कही मिलेगी
मेरी तलाश जारी है ।

गुरु का एक ओर प्रेसंटेशन












भोपाल



भाइयो में बात कर रहा हू हमारे सेनियर स्कन्द सर की जो अपने पावर पॉइंट प्रेसंटेशन के लिए भोपाल से लेकर दिल्ली और अहमदाबाद से लेकर वर्धा तक जाने जाते है उन्होंने यह तक की राकेश सर और कुछ दूसरो के नॉन वेग खाने तक का पिपिटी बनाया था । इस बार उन्होंने इस से भी बढ़कर काम किया है महाशय जी ने राजस्थान पत्रिका के बिजनेस पेज का पिपिटी बनाया है



रविवार, 13 अप्रैल 2008

रीयली स्काई अनलिमिटेड


भोपाल
हमारे सीनियर गगन नायर सर का पिछले दिनों दैनिक भास्कर मे एक फोटो पब्लिश हुआ था
वह फोटो वाकई काबिल एतारीफ था मगर अफ़सोस की मुझे वह फोटो मिल नही सका ।
भोपाल मे आने से पहले जब में उदयपुर में था तो मेरी उन दिनों कई फोटोग्रफेरों से मेरी जन पहचान थी ।
ऋषभ जैन , ताराचंद गवरिया और

प्रमोद सोनी सभी से बढ़िया जन पहचान थी सर से मिलने के बाद काफी सिखने को मिला। उन्होंने अपने फोटो में मीडिया की संभावनाओ की तरफ़ संकेत किया है ।


गगन सर के कुछ फोटो पेश है


अगर आपकी हसरत गगन सर को देखने की हो तो मेरे इंग्लिश के ब्लॉग पर लोगिन करें


प्रतिभा में झलक कैप्शन वाला फोटो सर का ही है


यू आर एल तो याद होगा न आपको


खेर बता देता हू


स्केम२४ ,ब्लागस्पाट.कॉम



सम्मान



माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय, भोपाल के पत्रकारिता विभाग के विभागाद्यक्ष पुष्पेन्द्र पाल सिंह को ठाकुर वेद राम प्रिंट मीडिया एंव पत्रकारिता शिक्षा पुरस्‍कार से समानित किए जाने का निर्णय किया गया है। पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए 21 अप्रैल को श्री सिंह को यह पुरस्कार दिया जाएगा। यह पुरस्कार दुनिया भर में कुल्‍लू के शॉल को नई पहचान दिलाने वाले ठाकुर वेद राम के जन्‍म दिवस पर आयोजित एक समारोह में प्रदान किए जाएगा।

स्रोत सर का बोल हल्ला

शनिवार, 12 अप्रैल 2008











बुधवार, 2 अप्रैल 2008

१८७७ में प्रकाशित पहला राजनैतिक पत्र ''हिन्दी प्रदीप'' बंग-भंग आन्दोलन के समय में यह कविता छपने के कारण १९१५ में बंद हो गया।

कुछ डरो, न इसमे केवल इसमे बुद्धि भरम है,

सोचो यह क्या है जो कहलाता बम है।

यह नही स्वदेशी आन्दोलन का फल है,

नही बायकाट अथवा स्वराज्य को कल है।

जब-जब नृप अत्याचार करा करते,

और प्रजा दुखी चिल्लाते ही रहते हैं,

नही दीनों की जब कहीं सुनाई होती,

तब इतिहासों की बात सत्य ही होती।

माधव कहता यह किसका बुरा करम है,

सोचो यह क्या है जो कहलाता बम है।

हमे यह कविता मंगला अनुजा मेडम सप्रे मुसियम वाली ने बताई थी