मंगलवार, 24 मार्च 2009

कुछ बदल जाने दो

आपसे मिलकर बात करना अच्छा लगता है मगर अब वो बात नहीं रही रही पिछले कुछ दिनों मैं बहुत कुछ बड़ा तेजी से बदला है. और अब सभी इसी में लगे है कि सबकुछ बदल जाये और हम भी पूरा बदल जाये मगर जैसे कि पके घडे कि तरह है जिस पर न कोई मिटटी टिकने वाली है. और अपनी चुनरिया पर किसी और का रंग क्या टिकेगा अपना तो रंग ही ब्लॉग की तरह कला है बस दिल साफ है उसी का नुकसान उठाना पड़ता है अब देखते है कब तक ये बदलने का सिलसिला चलता है जब यह रुकेगा तो आपसे तसल्ली से होगी बात होगी

1 टिप्पणी:

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

कभी कभी मौत भी
जब एक किताब लिखती है
तो जिंदगी से
एक भूमिका लिखवाने के लिए आती है