मंगलवार, 29 जुलाई 2008

हम तो झोला उठा के चले

दोस्तों जयपुर शहर में अब काफी समय हो गया है और वाही समत इतनी इजाजत नहीं देता है कि अब यहाँ रूका जा सके. सो भइया हम तो यहाँ से झोला उठाके चलने वाले ही है. चल शिवा घर आपने बोले भोपाल .

रविवार, 27 जुलाई 2008

घणो चौखो लागो जैपुर

धोरां री धरती रो ताज, अर राजस्थानी री माटी री महक रा साथै मौजोद जैपुर शहर भाई मने तो घणो चौखो लागो । राजस्थान रा वेता खातर पेला जैपुर में ज्यादा रेवा रो तेम कोणी लागो , पण अबके अठे दस दान रेवा रो मोलो मल्यो तो जैपुर ने देखवा रो लाभ लेई लियो है। आमेर ,नाहर गढ़ ,जंतर मंतर अर सिटी पेलेस ने छोड़ ने पुरो शहर देख्यो तो है आमेर अर गलत फेर कदी देखाला बाकि रो काम कर लेवा।
यह तो थी घुमने फिरने की बात भइया अपना पत्रिका डॉट कॉम का कम भी दनादन चल रहा है। बिया अपने को समझ में आ गया है की ब्लॉग नाम के बेटे की माँ है वेबसाइट और पोर्टल उसका बाप है और किसे उसे मेनेज करना है ।
मेरे दोस्तों और पाठकों मिलते है छूटे से ब्रेक के बाद बोले तो सत्ताईस आज है और तीस को हमें यहाँ से उड़ना है ।

गुरुवार, 3 जुलाई 2008

दिल मैं मेरे है दर्दे दिल्ली

इस ब्लॉग के पाठकों,सबसे पहले तो माफ़ करदेना कई दिनों से आपसे मिल नहीं पा रहा हूँ कारण आजकल हम अपने सेकेण्ड सेमेस्टर के एग्जाम के बाद अब हम जरा दिल्ली आ गए आप जरा भी ये मत समझना की गुमने फिरने के लिए अरे भाई अपनी इलेक्ट्रोनिक इंटर्नशिप के लिए बस फ़िर क्या होना था यहाँ अब इतने उलझ गए है की सुलझाने को टाइम ही नहीं है फ़िर भी ये एक कोशिश है शायद इसी बहाने आपको याद आता तो रहूँ फ़िर मिलते है आपसे जब भी मिला मौका