गुरुवार, 28 अगस्त 2008

उडीसा में बढ़ते 'बजरंगी'

उडीसा के सुंदरगढ़ जिले से राउरकेला में अभी भगवान हनुमान की एक भव्य प्रतिमा बनाई जा रही है इस प्रतिमा का निर्माण हरिद्वार में बनी भगवान् शिव की प्रतिमा के सामान ही भव्य होगा जिसे सुंदर वन में स्थापित किया जायगा जहाँ पर बारह एकड़ में उद्यान का निर्माण कराया जा रहा है इसकी उचाइ चोहत्तर फीट की होगी.
भाई इस पर हमें रामायण की वह चौपाई याद आ गई जिसमे कहा गया है कि "जस जस सूरमा बदन बढ़ावा तासु दुगुन कपि रूप दिखावा" हमें तो भाई आज के ये हाल भी बिलकूल वैसे ही लग रहे है जैसे रामायण के लंका के युद्ध में थे. भाई आज भी तो जहाँ कई लोगों की संकीर्ण मानसिकता लोकतंत्र को चलने का प्रयास करते है तो उनसे भी बड़े रूप में हमारा भाईचारा सामने आता है.
मगर क्यो एक दूसरे के खिलाफ हथियार उठाने कि नौबत आती है? आखिर क्यो कोई ज्यादती इस हद तक पहुँच जाती है जहाँ से कोई भी व्यक्ति सिर्फ़ एक ही राह पर जाता है और वो राह होती है हथियार उठाने की. आज हमारे सामने आज़ादी से लगाकर अज तक के कई उदहारण है जहाँ हमारे देश कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के बाद भी एक दी नहीं बड़े जन समूहों को अपने हक़ की जंग लड़ने के लिए हथियारों का सहारा लेना पड़ा है.
इसके बावजूद जो लोग इस दशा का फायदा बखूबी उठा लेते है वे लोग इतने शातिर होते है कि वे परेशानियों से ट्रस्ट और हमारी व्यवस्था से परेशान जनता से वह सबकुछ करा लेते है जो वो चाहते है और जब उनका स्वत पूरा हो जाए तो उन्हें अपने स्वाथों के हवं में स्वाहा करने से नहीं चुकते है.
एसा करने में कई लोग बड़े महीर थे जो पहले देश की जनता का प्रयोग करके उन्हें देश की रक्षा करने वाली बंदूकों के सामने खड़ा कर देते है इस काम को करने में मज़हबों का जम कर सहारा लिया जाता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति धरम और परिवार के नाम पर ही सबसे ज्यादा हिंसक बन जाता है यदि उसे किसी से खतरा हो तो वो धरम युद्ध से लगाकर जेहाद तक कर लेता है.
इसी आधार पर पहले सिक्खों को खालिस्तान के नाम पर बहलाया गया इसी क्रम में कुछ नए प्रयोग शिवसेना ने महारास्त्र में, भाजपा ने राम मन्दिर, गुजरात के गोधरा के अलावा कई मामले में मुस्लिमो ने भी किया है. गुजरात की हिंदू प्रयोगशाला के अस्तित्व को हम मानते है तो कश्मीर में पिछले दो दशको से चलने वाले कोहराम को भी नकारा नहीं जा सकता है. वहीं समय समय पर ईसाई मिशनरियों के पवित्र उद्देश्य के दूसरे पक्ष धर्मान्तरण से इंकार नहीं किया जा सकता है. वहीं सिमी के शक के बाद कानपूर के धमाके भी हमने सुने है.
कहना बस यही है कि भाई हिंद देश के निवासी सभी जन एक है तो फ़िर क्यो हम समय समय पर बहक जाते है आखिर क्या हो जाता है कि हम हैवानियत पर उतर आते है और सबकुछ भूल जाते है बस हम सभी चाहे जिस किसी भी धर्म या मज़हब के हो अपने दायरों को समझाना चाहिए और दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं मरने चाहिए क्यो कि उनके भी हाथ है और पत्थर मरना तो मानव ने आदि काल से ही सिख लिया है तो सामने वाला भी पत्थर मार सकता है तब हमारा जो खून निकलेगा वह भी सामने वाले की तरह लाल ही होगा.

बुधवार, 27 अगस्त 2008

अब 'शिवराज' को 'नरेन्द्र' का गांडीव भी चाहिए होगा

भारत में लोकतंत्र की स्थापना के बाद यूँ तो कई सारी पार्टियों ने समय-समय पर कई यादगार जीत हासिल की होगी मगर फ़िर भी कई इसी जीते रही है जो हमेशा लोगो के साथ साथ राजनेताओ को याद आती रही है.
इनमे से एक ख़ास जीत थी पिछले चुनावों में गुजरात में मुख्यमंत्री नरेद्र भाई मोदी की एतिहासिक जीत जिसने नरेन्द्र मोदी के कद को भाजपा के समकक्ष लाकर खड़ा कर दिया. कहा तो यह भी जाने लगा की नरेन्द्र मोदी कहीं पार्टी से भी बड़े ना बन जाए मगर मोदी ने कहा था की माँ तो माँ होती है और उसका बेटा कितना भी बड़ा ही जाए हमेशा उसके आगे छोटा ही रहता है. यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है की नरेन्द्र मोदी ने यह जीत गुजरात में विरोधी पार्टियों, मुस्लिम समुदायों और कही कही पर तो मिडिया के चरम विरोध के बावजूद भी मैदान जीता था
और वह जीत भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र में हार के बाद की यह बड़ी जीत थी जो सभी की आंखों में बस गई पार्टी के इतिहास में मानक जीत का नवीनतम दर्जा प्राप्त कर चुकी है इससे पूर्व जीत का मानक अयोध्या के बाद मिली जीत को माना जाता रहा था.
इसके बाद आगामी चुनावो के लिए भाजपा ने न सिर्फ़ दुसरे स्थानों पर जीत के लिए नरेन्द्र मोदी को तुरुप के इक्के की भांति इस्तेमाल किया वरन उन्हें पार्टी का बाद "प्रोफेसर" माना गया. अब मध्य प्रदेश में भी आगामी चुनावों में भाजपा शायद कोई कमी नहीं रखना चाहती है इसी के मद्देनज़र भाजपा ने प्रदेश में आशीर्वाद यात्रा के लिए नरेन्द्रभाई मोदी का वाही रथ मंगाया है जिस पर सवार होकर उन्होंने पूरे गुजरात में यात्रा की और अपने विरोधियों के चक्रव्यूह को तोड़ दिया दिखाया.
अब उन्ही की तर्ज़ पर यह रथ मध्य प्रदेश मंगाया गया है जहाँ आज से मुख्यमंत्री को लालकृष्ण अडवाणी यात्रा का आरम्भ कराने वाले है. मगर यहाँ यह बात सोचने वाली है कि रथ यात्रा के मामले में अडवाणी जी की भारत उदय यात्रा का असर उल्टा ही रहा है. अबकी बार अडवाणी के शुकून और नारेद्रभई मोदी के रथ के सहारे शिवराज सिंह को प्रदेश के महाभारत में जीत मिलेगी या नहीं इसका पता तो जनता के बीच चुनावों के बाद ही हो सकेगा

सोमवार, 25 अगस्त 2008

चाय वाले की तो दादी मर गई...............


अरे भाई मैं किसी का मजाक कहाँ बना रहा हूँ मैं तो सच बता रहा हूँ ।


जब से भोपाल मैं आकर बसा हूँ कुछ गिने चुने स्टालों पर ही चाय पीता


हूँ उनमे से ही एक है हमारे ख़ास चाय वाले जिनकी चाय की दूकान कह दो या थडी कह दो या फ़िर जो जी मैं आए सो कह दो वह भोपाल के प्राइम लोकेशन पर है। शहर के आई एस ओ मान्यता प्राप्त रेलवे स्टेसन हबीबगंज के ठीक सामने के चंद दुकानों मैं से ख़ास है हमारे खास की होटल। सर्दियों में जब अक्सर देर से घर जन होता था या फ़िर रात को घूमने का मन करता तो यहाँ की चुस्कियों से भला कहाँ चूका जाता था. कभी कभार हमारे एक सीनियर सर थे उनको भी चाय की तलब लगती थी या फ़िर जब उन्हें अपनी बड़े होने के कर्तव्य का लिहाज़ आ जाता था तो इस क़र्ज़ को चुकाने के लिए हमें चाय पिलाने ले जाते थे.



ये तो थी तब की बात जब हम छोटे बोले तो बच्चे नहीं जूनियर हुआ करते थे जिसे बाद मैं न किसी ने याद दिलाया,


और न ही हमें भी याद आया ........................


और इसके एक अरसे बाद कल शाम को हम फ़िर उसी सड़क से गुजर रहे थे कि रूक गए मन किया चलो फ़िर वह बचपन वाली चाय पी जाय। गाड़ी रोकी और होटल पर पहुचे तो होटल वाला एक पल तक देखता रहा गया हम भी उसकी शक्ल में कुछ ढूँढने लगे चंद ही पल बाद उन्होने कहा कि अरे आप यहाँ ? कैसे आना हुआ ?


हमने भी कह दिया बस यूँ ही आ गए है. हमारे मन मैं मौजूद प्रश्न को भी हमने दाग दिया कि आपके सिर को क्या हुआ ? उसने बड़ी गम्भिरता के साथ जवाब दिया कि दादीजी नहीं रही है।



खेर मैं उनसे उम्र मैं काफी छोटा और अश्वासन के लिए मेरे पास कुछ नहीं था। मगर इसके चंद समय पहले मेरे मन में था कि कहीं एसा तो नहीं कि ये भी आमिर खान से प्रभावित हो गए हो जैसा इन दिनो कई युवा लगते है. जनाब क्या कहे सर मुंडवा के अपने आप को गज़नी समझने लगते है.



उनको पता नहीं आमिर की तरह हर कोई कामयाब नहीं होता, उनके भी क्या कहने जब फ़ैसला पब्लिक को करना हो तो कुछ भी हो सकता है जैसा मंगल पाण्डेय के साथ हुआ था



गुरुवार, 21 अगस्त 2008

आख़िर उनको आ ही गया, खुदा का बुलावा

लिम्का बुक में सबसे बडी उम्र के व्यक्ति के रूप में दर्जा प्राप्त हबीब मियां भारत के ज्ञात सबसे बुजुर्ग है सफ़ेदकुर्ते पायजामे में साधारण रूप से रहने वाले अपने आप में अद्वितीय है. जो दो बार हज जा चुके है और छह पुश्तों को देख चुके है उनका भी कहना था "खुदा के घर भी नहीं जायेंगे बिन बुलावे के"
और दो दिन पहले वो मुक्कम्मल वक्त आ ही गया जब खुदा को उनको बुलावा भेजना था और उन्होंने बिना किसी देर के इस मुस्किल और तकलीफों से भरी इस दुनिया जिसमे आतंकियों ने जीना मुहाल कर रखा था पल भर में छोड़ दी.
जिंदगी को वे एक पाठ मानते थे, हर साल अपने जन्मदिन को बड़ी धूमधाम से मानते थे, मगर इस बार जब से जयपुर में इस साल के आरम्भ में मई माह में जगह जगह पर ब्लास्ट हुए तो वो टूट से गए.

इस दौरान जयपुर के चांदपोल, छोटी चौपर, त्रिपोलिया बाज़ार, हवा महल, बड़ी चौपर , जोहरी बाज़ार और हनुमान मन्दिर में जो ब्लास्ट हुए वे हबीब साहब को सदमा लगा. उन्हें लगने लगा था की शांत से रहने वाले उनके शहर भोपाल को ये किसकी नज़र लगी है. शायद गुलाबी नगर को किसी की बुरी नज़र लग गई है उन्होंने अपने जम्दीन के जश्न से बचते हुए कहा था जब मेरे शहर का ये हाल हो तो कैसा जश्न? यही हाल उनका अहमदाबाद और दूसरी जगह के ब्लास्ट के बाद हुआ था और वे शायद अन्दर ही अन्दर इन सभी जख्मों से टूटते जा रहे थे.

उम्र के उस पड़ाव में भी उनके दांत बिल्कुल सही थे और उनको कोई बड़ी बीमार नहीं थी संयमित जीवन के मामले में उनका जीवन बड़ा सादा था. उनकी जिन्दगी का सबसे बड़ा पल वह था जब जयपुर में राजस्थान दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में आने पर पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे कलाम उनसे व्यक्तिगत तौर पर आकर मिले थे, हबीब मियां का जीवन कूल मिला हम सभी लोगों के लिए एक उदहारण है कि उम्र के इस पड़ाव में भी उन्हें देश कि इतनी फिक्र थी जब कई लोग देश में भ्रष्टाचार और आतंकवाद जैसे कुकृत्यों में संलग्न है उनके लिए हबीब मियां का जीवन काफी कुछ सबक देने वाला है..............

बुधवार, 20 अगस्त 2008

ग्लोबल शिल्पा इन ग्रेट इंडियन बिग बोस मिस्ट्री


वो आई तो दिल वालों के दिल का करार और
यूपी बिहार लूटने मगर वह यहीं नहीं रुकी ?
चंद सालों में बॉलीवुड में कुछ सफल और ज्यादातर असफल फिल्म करने के बाद वो हॉलीवुड का ख्वाब देखने लगी और जल्द ही उन्हें ये मौका भी मिल गया और उसने इस मौके को इसे भुनाया कि सारा मुल्क एक स्वर में उसके साथ खड़ा हो गया है और जब उसे पता चला कोई कुछ भी नहीं कर पाया और वो बेवजह ही तब तक वो एक ग्लोबल एक्ट्रेस का दर्जा पा चूकी थी।
शायद आप जान गए होंगे कि

मैं किस की बात कर रहा हूँ फ़िर भी बता देता हूँ कि यहाँ तारीफ शिल्पा शेट्टी के हो रही है. और उनके बिग बॉस से लगा कर गैरी रिचर्ड्स के साथ चुम्बन प्रकरण से लगाकर बाबा रामदेव की शिष्य बनकर योग को और प्रोत्साहीत करने की रही हो, उनसे एक बात तो सभी को समझ लेना चाहिए कि मौके को कैसे भूनना है यह जानना हो तो उनसे सीखें।
पिछले दिनों नेटवर्क एटीन के नए चेंनेल "कलर" का जोर शोर से आरम्भ हुआ और देखते ही देखते उसके कार्यक्रम अपना जादू करने लगे है. उन सभी कार्यक्रमों से एक कदम आगे का कार्यक्रम लेकर लौटी शिल्पा शेट्टी।
उनके इस कार्यक्रम में प्रोग्राम् से ज्यादा उनकी काया दिखाई देती है।

अगर बात शो के कायदे कानून की करें तो देश के बड़े वर्ग की समझ से परे है, यहाँ तक कि सास बहु के सीरियल में महारथ प्राप्त महिलाएं भी इस मामले में पानी भरती नजर आ रही है।
खैर फ़िर भी कॉमेडी किंग फेम अहसान कुरैशी अब हँसाने के बाद दुसरे रोल में आए है और पुरे देश की नजरों में कभी किरकिरी बन चुकी जेड गुड्डी को इस बार शिल्पा शेट्टी समेत सभी आयोजको ने गेस्ट रोल के लिए बुलाया है इनके आलावा एक बड़ी शख्सियत भी इस शो के जरिये अपने एक्टिंग के करियर की दूसरी परी शुरू करने जा रही है हालाँकि उसने पहले ही शो में पुलिस और प्रशासन की मुस्किले बढ़ा दी है अबू सलेम की प्रेमिका मोनिका बेदी भी इस शो में शिरकत कर रही है।

बटोर इससे चनेल को टीआरपी advertisment, पब्लिक को entartenment, मिडिया को exitment, शिल्पा को compliment मिल जाएगा।
अब देखना ये है कि इस ग्लोबल शिल्पा को ज्यादातर बोले तो रुरल इंडिया क्या रेस्पोंस देता है।

मनमोहन को भारी पड़ सकती है ये गांधीगिरी

इन दिनों मौसम के हाल बड़े बुरे है। भारत से लगाकर पाकिस्तान सभी जगह मारामारी मची हुयी है। लाहौर से लगाकर दिल्ली और कश्मीर तक सब जगहों पर बरसात तो हो रही है लेकिन पानी की बजाय किसी और चीज की ?

और उधर सरहद पार के जिन्ना के दिन भी अमन से नहीं कट रहे है . पडौसी की क्या बात करीं अपने घर को ही ले लो तो अहमदाबाद से लगाकर सुरह सभी जगह रह रह कर जख्म मिलते जा रहे है और तो और इन सब की परेशानी ख़त्म ही नहीं हुयी थी कि कशमीर में अमरनाथ स्रांयन बोर्ड को जमीन देकर नया शिगूफा शुरू कर दिया इसके पहले नोट के बदले वोट हिट स्टोरी बना हुआ था
इसी हीत स्टोरी के क्लायमेक्स से एक नई कहानी का जन्मा हुआ जो आगे चल कर अमरनाथ के नाम पर कशमीर में परेशानी का सबब बनी.
मनमोहन सरकार ने अपनी कुर्सी बचने के लिए जो किया उस महान घटना का एक हिस्सा यह भी था कि कशमीर के राजनीती के पहरेदारों ने इसको प्रोत्साहन दिया था और समर्थन दिया. मगर किस कीमत पर ? क्या उसी कीमत पर जो अब हमारे सामने कश्मीर में दिखाई दे रही है?
मनमोहन सरकर को समर्थन देने के बाद कश्मीर में अमरनाथ मुद्दे ने अपना रंग दिखाना शुरू किया और देखते ही देखते सारा का सारा कश्मीर जलने लगा कई लोग मारे गए शान्ति के लिए सेना का सहारा लिए गया तो सेना की कार्यवाही का नतीजा उनके मुखिया को भुगतना पड़ा.
जब तक हालात पुरे नहीं बिगड़ गए और ये जमीन का मसला ज़मीर का नहीं बन गया तब तक वहां की सारी पार्टियाँ इस आग में भाड़ झोंकते रहे. और जा ये आग वहां की जनता में कौम और ज़मीर तक नहीं पहुची सब लोग लगे रहे इस आग को हवा देने में .

केन्द्र सरकार शुरू से लगाकर इस मुद्दे से दूर रही है ऐसा लगता है कि मानो न्यूक्लियर डील के मामले में मनमोहन सरकार इतनी ज्यादा खो गई कि उसे इस मुद्दे की घम्भिरता जरा भी समझ में नहीं आई. इस सम्बन्ध में या तो सरकार मुगालते में है कि यह ज्यादा बड़ी समस्या नहीं है या फ़िर इस मामले में मनमोहन सिंह गांधीगिरी दिखा रहे है.
इसके बीच बीच सुरक्षा एजेंसियां ये कहती रही है कि इससे आन्तरिक सुरक्षा को खतरा बढ़ रहा है मगर उनकी सुने कौन? अल्गाव्वावी इन दिनों अपने चरम पर है उनके एक नेता सैय्यद अली शाह गिलानी ने जम्मू कश्मीर को पाक में मिलाने की जरूरत तक बता दी. पीडीपी के हवाले से महबूबा मुफ्ती भी कहे तो कुछ नहीं है मगर मुज़फ्फराबाद मार्च का समर्थन करते है और तो और पुलिश फायरिंग में मरे गए हुर्रियत के एक नेता के जनाजे में हिंदुस्तान में पकिस्तान के जयकारे लगते है और .......................
इस नज़ारे को सारा देश कातर नजरों से देखता रहता है . आख़िर हम कर भी क्या सकते है हम तो एक बार चुन कर भेजते है चाहे पॉँच साल तक रहे या चले जायें. परमाणु समझौता करें या फ़िर परमाणु परीक्षण हमें कौन पूंछता है? आजाद देश में भी हमसे पूछता कौन है न नेहरू और न ही मन मोहन. खेर नेहरू के समत पर कोई तो सरदार पटेल थे जिन्होंने पूरे देश को एक सूत्र में बंधे रखा मगर अब तो दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आता है और इसे में अगर कोई बेचारा 'सरदार' की तर्ज़ पर बात करें तो लालू जैसे कई नेता है जो उसे "असरदार" होने ही नहीं देते है.

बुधवार, 13 अगस्त 2008

अभिनव उवाच

दोस्तों और पाठकों


इन दिनों देश में हर तरफ़ एक ही नाम का चर्चा हो रहा है। जो बीजिंग से लगाकर देश के हर कोने में छाया हुआ है।

रातों-रात सफलता के नए कीर्तिमान कायम करने वाले अभिनव बिंद्रा को जानने का एक और मौका आपके लिए हम ढूंढ़ लाया हूँ अभिनव को जानने के लिए क्लिक करें.



मंगलवार, 12 अगस्त 2008

'खिलाड़ी' बोला बिंद्रा इज किंग

इस बार के ओलंपिक शुरूआती दौर में तो हमारे खिलाड़ी भी टीम इंडिया की तरह ही ढहते जा रहे है ऐसे में अभिनव बिंद्रा ने पहली बार इतिहास की गल्पों के से खिलाफत करते हुए जो नई कहानी लिखी है वह सभी भारतियों के दिलों में नया जोश पैदा करने वाली है।





इसके बाद जो हुआ वह किसी से भी छुपा हुआ नहीं है। महंगा माना जाने वाला ये खेल कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठोर के बाद एक बार फ़िर सुर्खियों में आ गया. पहले बात रजत पदक की थी मगर पहली मर्तबा इस बार बिंद्रा ने सोने पर निशाना साधा और उसे अर्जुन की तरह भेद दिखाया. सभी समाचार चैनलों के साथ अखबरों के पहले पन्ने इसी की चर्चा से पते थे पता नहीं इस समय वे लोग कहाँ गए जो अक्सर इस बात का रोना रोते रहते है कि मीडिया क्रिकेट के आगे अन्य खेलों को प्राथमिकता नहीं देते है. हर मीडिया में बस एक ही नाम था अभिनव . और यह अभिनव हर न्यूज़ पर भारी पड़ रहा था कोटा में मन्दिर की सीडियां धसने, श्रीनगर में गोलाबारी, परमाणु करार और वोट के बदले नोट सभी अभिनव के अभिनव इतिहास के आगे काफी हल्के थे





राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री समेत सभी आला हस्तियों ने अभिनव को बधाइयाँ दी. खेर राजनेता ऐसे मौके चुकते ही कब है जब नेशनल मीडिया में उनकी बाइट आए.
जरा बात अब हमारे नेताजी की कर लेते है
हर खेल के नाम पर झंडा लिए खड़े हो जाते है. जो बात बेबात अक्सर अपना गला फाड़ने से कभी नहीं चुकते है और ऐसे मौकों पर जहाँ से उनको जरा सा भी क्रेडिट मिलने वाला हो तो लपक के हर बार गर्व से अपना सीना चौडा कर देते है जैसे कि उन्होंने कोई बड़ा तीर मार लिया हो. चाहे मुद्दा उन्हें पता हो या ना भी हो.
बेचारा 'रिपोर्टर' उसे ख़ुद बताना पड़ता है कि अक्सर मामला क्या है?




एक बात और भी हुयी इसी दौरान कि सिंह इज किंग की रिलीज के बाद आरंभिक सफलता के सेलेब्रेसन के अवसर पर खिलाड़ीयों के खिलाड़ी कहे या फ़िर हालिया रिलीज शो खतरों के खिलाड़ी अक्षय कुमार ने खुशियों की शाम में ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीते अभिनव बिन्द्रा के नाम कर दी। उन्होंने कहा कि रीयल किंग इज अभिनव बिंद्रा, जिनकी वजह से 28 सालों के बाद देश को स्वर्ण पदक मिला है । एक्टर तो पर्दे पर ही किंग होते हैं, मगर अभिनव ने अपनी मेहनत और लगन साबित किया कि वे ही रियल किंग हैं।
अब जनाब राज्यवर्धन साहब तो इस बार खास नहीं कर पाए मगर फ़िर भी

उम्मीदों पर दुनिया टिकी है जल्द ही किसी अच्छी ख़बर कि आशा की जा सकती है.

सोमवार, 11 अगस्त 2008

लिबास कहें हम एक है

ड्रेस का विवाद
ओलंपिक के आरम्भ के अवसर पर बीजिंग में आयोजित मार्च पस्त में जब कर्नल राज्यवर्धन सिंह तिरंगा थामे आगे आगे चल रहे थे तो हर किसी हिन्दुस्तानी का सीना गर्व से चौडा हो गया होगा. मगर इसके बाद की खबर सभी भारतियों को ठेस पहुँचने वाली रही जिसमे ये बताया गया की इस परेड में शामिल होने वाले सभी खिलाडियों को विशेष वेशभूषा के लिए कहा गया था मगर वैसा उन्होंने किया ही नहीं था. और बात हम महिला खिलाडियों की करीं तो सानिया मिर्जा और सुनीता राव ने किसी भी नियम का ख्याल नहीं रखा. उन्हें साडी पहनने के लिए कहा गया था मगर वे वहां जींस में मार्च कर रही थी .
इस मामले के बाद कलमाडी साहब को आगे आकर ये दलील देनी पड़ी कि खिलाड़ियों के पास प्रेक्टिस के बाद समय नहीं था कि वे साडी पहन सके वहीं नेहा अग्रवाल की साडी का रंग भी फेशनेबल था. और अब बात उन महाशयों की भी हो जाए जो पूरी तरह से इस समारोह से गायब ही थे जैसे प्रार्थना से ड्रेस के चक्कर में कई बच्चे बंक मार देते है.
जनाब ये हालत बिल्कुल हमारे डिपार्टमेन्ट के जैसे ही है और यही देश के भी. दरअसल बात ये है न की अब हम इतने मोर्डन हो चुके है कि अब चड़े न दूजो रंग वाले हालत है
हम जो है वो बनना नहीं चाहते है और जो नहीं है वह ख़ुद को बताना चाहते है.
अरे भाई हमारे लिबास तो ऐसे इसलिए रखे गए थे कि हम दुनिया को ये दिखा सके कि
हम हिंद देश के निवासी सभी जन एक है, रंग रूप वेश भाषा चाहे अनेक है
वहां से लगाकर यहाँ तक हम तो यही चाहते है कि हर उस शक्श के पास ये सदेश जायें कि हम एक है और ये बात हमें चिल्ला कर नहीं कहनी पड़े बल्कि ये बात हमारे कपड़े ख़ुद बोले कि हम एक है .