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गुरुवार, 26 मार्च 2009

जैसे दूर देश के टावर मे


भाई क्या कहना
पिछले दिनों एक फिल्म आई है गुलाल नाम से तो ये फिल्म होली के हुडदंगी माहौल के जैसी लगती है मगर इसको स्टोरी भी बहुत सारे ट्विस्ट वाली है इस फिल्म में राजस्थान का काफी उम्दा तरीके से चित्रित किया है इसमें एक और जहाँ देश के स्वतान्र्ता संग्राम के साथ रजवाडो की आपसी कलह को बखूबी पेश किया है वाकई में हमारे यहाँ आपसी तकरार नहीं होती तो शायद हम काफी पहले आजाद हो जाते.
इस फिल्म मे डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने सैट साल तक फिल्म को डब्बे में रखकर पकाया है इससे पहले भी उन्होंने ऐसा छौंक मारा है जिसका तड़का सब तरफ महक रहा है अनुराग ने एक तरफ जहाँ इस फिल्म में नए चेहरों को स्थान दिया है वहीँ दूसरी और उन्होंने राजस्थानी परिवेश का चित्रण करके में सभी फ़िल्मी मसालों का उपयोग किया है
इस फिल्म में एक और जहाँ राजस्थानी रजवाडों की परम्पराओं को स्क्रीन पर उतरा है वहीँ दूसरी और उन्होंने देश के सभी कोनो की वर्सेटाइल गालियों और द्विअर्थी संवादों को भरपूर उपयोग किया है इनसे एक अलग ही आसार पैदा करना चाहा है जैसा ओमकारा में विशाल भारद्वाज ने करना चाहा है ओमकारा और गुलाल में एक और समानता है की गुलाल में भी गानों का वाही स्टाइल है जो ओमकारा में है दो एक जैसी फिल्मों मे दो अलग अलग प्रदेशों के राजनीती के रूपों को प्रतूत किया है बस जो फिल्म पहले बनी वो देर से डब्बे से बाहर आई और बाद वाली पहले आ गयी
ओमकारा और गुलाल दोनों में मनोरजन के लिए दो पदेशों के दो तरीकों को बताया है ओमकारा में जहाँ वहां की बाहुबली राजनीती और नाच गाने की परम्परा को बिपाशा ने बखूबी निभाया है वहीँ गुलाल में भी एक ऐसे ही गाने के जरिये राजस्थान की उस परम्परा को छूने का प्रयास किया है जो किसी भी घटना को अंधेड़ की तरह अपने मे समाहित करने की क्षमता रखती है

इस फिल्म में राजस्थान के लोकरंगों और संस्कृति को जिस कदर छुआ है वाकई मैं देखने लायक है इसमें राजस्थान मैं जिस तरह से किसी भी सुख दुःख के क्षण को गीत संगीत मैं पिरोने की क्षमता को दर्शया गया है अमेरिका के वायुयान के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकराने की घटना को भी गीत दूर बखूबी बांध किया है तो दूसरी तरफ इराक में जाकर बुश का टिक जाना भी इस गीत में व्यंग्य के लिए रखा है वास्तव में अगर कोई ठेट राजस्थानी इस गीत को सुने तो वह भी चटकारे के साथ में देश विदेश के घटनाक्रम को संसमरण कर सकेगा यही खासियत इस फिल्म को ठेट राजस्थानी के मरुदेश से करीब से जोड़ती है जो एक उम्दा बनती है राजस्थान को एक बार फिर करीब से देखने और दिखने के लिए निर्माता निर्देशक और लिरिक्स लेखको को धन्यवाद