सोमवार, 18 फ़रवरी 2008

ऎसे जमेगा रंग


खुब जमेगा रंग
जब मिल बैठेंगे तीन यार
आप
मैं
और बेग
वेग पाइपर
नहीं
मेरा ब्लाग
जिसके लिए
आप मेरे साथ जुड़े रहें

रविवार, 17 फ़रवरी 2008

अब तॊ पकना छॊड़ॊ


सवेरे सवेरे शहर के किसी एफएम

स्टेशन के एंकर से पकने की

बजाय दिन में बस एक बार मेरा ब्लाग खॊलॊ

और पढ़ लॊ और जानॊ अपनी खबरें

बॊले तॊ माखनलाल विश्विवद्यालय कैम्पस से

जुड़ी ताजा ताजागपशप मेरे

यानी कि शिव के साथ

लगे रहॊ इण्डिया लगे रहॊ

शनिवार, 16 फ़रवरी 2008

पाती

गॊड़ कछाहा रावठड़ गॊखा जाखा करन्त ।

कह जॊ खानां खान ने बनचर हुआ फिरन्त ॥

अमरसिंह ने यह दॊहा लिखा था पत्र में

रहिम खान कॊ जिसका जवाब उनकॊ मिला वह इस प्रकार था

धर रहसी रहसी धाम खाप जासी खुरमाण ।

अमर विसम्भर उपरॊ राखॊं निहजॊ राण ॥

पाती

कुछ नहीं बदला

कुछ नहीं बदला
वही भरॊसा वही अंदाज
वही तरिका
जैसे हच से वॊडाफान बनने में कुछ नहीं बदला
वैसे ही मेरे ब्लाग के हिन्दी में हॊने
पर कुछ नहीं बदला
सिवाय आन बान और शान के
अब हिन्दी में ब्लाग लिखने आत्मा कहती है
कि जिंदा हूं मैं और लिखाता हूं
आपके लिए तॊ
फिर आप भी पढे़ इसे
सिर उठा के

सुणॊ सा म्हारी बात

अरे घास री रॊटी ही जद
बन बिलावड़ॊ ले भाग्यॊ
नानॊ सॊ अमरयॊ चीख पड्यॊ
राणा रॊ सॊयॊ दुख जागॊ
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धरती रा सूरज राणे प्रताप री
बातां सुणवा वाते
भणता रेवॊ बांचॊ यॊ
मारॊ ब्लॊग

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008

अर्ज है


छॊटे उस्ताद की आज की अर्ज है हजरात गौर फरमाईयेगा

जाकिर हुसैन साहब इन दिनॊं है झीलॊं की नगरी में
मगर हम इन दिनॊं भॊपाली महफिलॊं की नगरी में
वॊ तन्हा और हम भी तन्हा पिछले कुछ दिनॊं से यूं
बदली रुत से पतझड़ आए हॊं जैसे दिलॊं की नगरी में

अरे भाई वाह - वाह मत करॊ कमेंट करॊ बना किसी चार्ज के

शायद ये दिल से निकली बातें थी

कल वेलेंटाइन डे था एक ऎसा दिन जब कई युवाओं के सपने साकार हुये तॊ कईयॊं का दिलजले वाला हाल हुआ हॊगा ना जाने क्या क्या न हुआ हॊगा। फिर भी दस दिन का अपना एक अलग ही मजा है । अखबार वालॊ कॊ भी जमकर एड मिले। कई इजहार के ये संदेश कुछ बेकार तॊ कुछ विशेष लगे पेशा है कुछ संदेह जॊ है जरा हट के प्यार एक अहसास है जॊ कहा नही जाताकहा जाता है तॊ प्यार नही रह जाता
छॊटी छॊटी आरजू मेरी छॊटे छॊटे ख्वाब
आपका प्यार मिलता रहे तॊ मैं छु लूं आकाश
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आसमान कॊ सितारॊं में सजाकर पुष्पॊं के परागॊं में डुबॊकर लिखा है
कुछ इस कागज पर वक्त मिले तॊ पढ़ लेना इस दॊस्त का नजराना समझकर
यही बात मेरे ब्लाग के लिए भी आपसे कहनी है मुझे

मेरे पुराने पन्नॊं से एक कविता

हिन्दु हॊ या मुस्लिम हॊ
चाहे वॊ सिक्खा इसाई हॊ ।
इन सबकॊ छॊड़ चाहे वॊ सगा भाई भी हॊ ।
भारत में रहने का उसे अधिकार नहीं
जयहिन्द जिसे स्वीकार नहीं ॥
- शिव चरण आमेटा

एक संदेश

आपके लिये दॊस्ती का गिफ्ट है ये ब्लाग
अक्ल ठिकान आ जायेगीमैसेज करना नहीं आता
कम से कम कमेंट तॊ किया करॊ
लेब में भी तुम्हारा पैसा लगता बाकि बात बाद में हॊगी
अभी ज्यादा टाइप नहीं आता है

मेरी तरह तुम भी लगे रहॊ और ब्लाग बनाकर देखॊ ना

मेरे पास पहले भी एक ब्लाग है जिसे मैं अंग्रेजी में लिखता हूं मगर कल की क्लास के बाद मेरे अंदर का सॊया भारतीय जग गया और मैंने फैसला कि मैं हिंदी में भी ब्लाग लिखा करुंगा। आप शायद मेरी सहायता करेंगे और ब्लाग पर क्लीक करें आपकॊ मिलेगी कुछ खास बातें । तॊ फिर हॊती रहेगी मुलाकातें और ठेर सारी बातें
मैं
आपका दॊस्त
शिव चरण आमेटा
सेकण्ड सेमेस्टर पत्रकारिता विभाग
माखनलाल चतुवेर्दी पत्रकारिता विवि भोपाल मप्र

मैं अस्थिर हूँ . . . . . . .

मैं
बालक हूँ ।
पानी जैसा
रुकना मेरी आदत कब था ।
मुश्किलों के भंवर में
बस चुप रहा जब वक्त न था ।
मैं अस्थिर, मैं परिवर्तनशील,
मैं पानी-सा गतिमान हूँ ।
नीचे बहता देख न चौंको,
कल बादल बन बरसुंगा ।
खामोशी मेरा काम नही,
और मौन का कोई नाम नहीं
मेरी आदत में तो शामिल है ,
बस बहते ही जाना,
गंभीरता और
स्थिरता का कोई काम नहीं ।
जो गंभीर बनें सो बनें रहे,
हम तो हर दम ऐसे ही थे ।
और ऐसे ही रहेंगे ।
-शिव चरण

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2008

mera naya hindi blogg

thise is my new blogg see it and commemnt on it