शनिवार, 31 मई 2008

आजा वे माही तेरा रास्ता उडीक दिया ........

कल एक साल बाद वही दिन आ गया जब हम यहाँ आए थे ।
कल हमारे यहाँ यूनिवर्सिटी का एंट्रेंस टेस्ट है। इस परीक्षा में कई क्षेत्रों के विद्यार्थी प्रवेश के लिए अपना किस्मत आजमायेगे,
मेरी तरफ़ से उन सब को परीक्षा के लिए कहता हूँ
बेस्ट ऑफ़ लक
आपका दोस्त
scam24

गाँधी के हिंद स्वराज पर व्याख्यान चार को


महात्मा गाँधी की कृति हिंद स्वराज के सौ वें वर्ष के अवसर पर न्यू मार्केट स्थित अपेक्स बैंक परिसर में समन्वय भवन में राज बहादूर पाठक स्मृति व्याख्यान समिति की और से चार जून को एक व्याख्यान आयोजित किया जा रहा है।


गाँधी का हिंद स्वराज नाम का यह पन्द्रहवा व्याख्यान है इस सेमिनार में मीडिया हस्तियों के अलावा कई गणमान्य व्यक्ति शिरकत करेंगे जिनमें प्रवाष जोशी, वागीश शुक्ला, नन्द किशोर आचार्य के व्याख्यान आयोजित होंगे ।

गुरुवार, 29 मई 2008

राज ठाकरे का तमीज़ का ताबीज़

भइया आपने हरिशंकर परसाई जी की प्रसिद्ध रचना सदाचार का ताबीज तो जरूर पढी होगी मगर आज हम किसी लिखित रचना की नही मगर एक ऐसी ही रचनात्मकता का जिक्र करने जा रहे है उस कृति के रचनाकार है राज़ ठाकरे आपको शायद उनका परिचय देने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि उनका परिचय से तो शायद महाराष्ट के लोग अनभिज्ञ है उनको वे अपने बारे अटेंसन देने के लिए पापड़ बेल रहे है इस बार उन्होंने छात्रों को निशाना बनाया है और उन्हें मुम्बई में तमीज़ से रहने की हिदायत दी है भाई बड़े बुद्धिमान है राज़ आप ये बात तो माननी ही पड़ेगी तली दोनों हाथों से बजती है राज़ जब तक लकीर के फकीर के पीछे पड़े थे तो कुछ नही हुआ पहले बिग बी से बॉलीवुड में चमके शत्रुग्न सिन्हा,अमर और लालू की निन्दा करके राजनीती में दहाड़े/भोंके मगर किसी ने उनके मुंह लगने की जहमत नहीं उठायी किसी ने कुछ बोलना उचित नही समझा तो खामोश हो गए सब जानते थे कि शेर सोया रहे तो चूहा चाहे जितना नाटक करे कोई फर्क नहीं पड़ता है वैसे इस बात से वे भी वाकिफ थे कि शेर चूहे के खेल में रखा क्या है मुकाबला तो आमने सामने का हो मजा आएगा इसके लिए उन्होंने नया तरीका इजाद किया है नया मुकाबला शेर चूहे का नहीं चूहों और गिरगिटों का रोचक मुकाबला जो इस आई पी एल के बाद का सबसे बड़ा 'टूर्नामेंट' हो सकता है

राज ने पुणे के उच्च शिक्षण संस्थानो में पढने के लिए आने वाले उत्तर भारतीयों को राज्य में तमीज से रहने की चेतावनी दी है उन्होंने ये भी कहा कि उत्तर भारतीयों के दोनेसन देने कि वजह से योग्य मराठियों को जगह नहीं मिल पाती है इसके लिए आगमी प्रवेश प्रक्रिया पर कड़ी नजर रखेंगे ये बात समझ में नही आई कि आख़िर वे ऐसा करने वाले होते कौन है ? भारत में लोकतंत्र के आधार पर उनकी हेसियत ही क्या है ?राज़ ने महाराष्ट्र में होने वाली बदसलूकियों और छेड़खानियों के लिए उत्तर भारतीयों को जिम्मेदार ठहराया है इस के लिए वे उत्तर भारतीयों को सबक सिखायेंगे मुझे इस बात को लेकर ज्यादा तकलीफ नहीं होगी कि किसी उत्तर भारतीय को किसी लड़की को छेड़ने कि सज़ा मिले ऐसा तो होना ही चाहिए मगर मेरे राज़ से कुछ प्रश्न है कि :-- यह पता कैसे पता चलेगा कि आख़िर किसने छेड़ा है उत्तर भारतीय ने या मराठी ने?- उत्तर भारतीय के लिए सजा क्या मुक़र्रर है?- महाराष्ट्रियन को क्या रियायत है ?- लड़की उत्तर भारतीय हुयी तो कोई दिक्कत नही होगी ?- सज़ा कौन देगा,बेल फाईन जैसे सुविधा मिलेगी ? - अगर किसी मराठी लड़की ने किसी उत्तर भारतीय को छेड़ा तो क्या हर्जाना मिलेगा ? - खैर ये तो थी मेरी कुछ जिज्ञासा राज़ के इस नए कानून के सम्बन्ध में सोचता हूँ कि इनका जवाब मिलेगा तो कई उत्तर भारतीय छेडाकू रोमियो को ज्यादा तकलीफ नहीं होगी उनको पहले से सज़ा मालूम होगी सच तो ये है कि राज़ के पास अपनी पार्टी के लडाकों कि बड़ी पलटन है जिनके पास करने को कई काम-धाम नहीं है इनके बस में ये तो नहीं ही कि ये किसी अमिताभ जैसी सेलिब्रटी तक जाने कि तो औकात है ही नहीं इस हाल में राज़ चाँद पर धुल उड़ाने के सिवाय कर भी क्या सकते है

दूसरी तरफ़ ऑटो, सब्जी, टेक्सी , ठेला वाले किसी उत्तर भारतीय को अगर कोई मुम्बई में दो चार लापदे मर दे तो भी क्या फर्क पड़ता है उक्सी तो दिन में जब तक किसी न किसी से लड़ाई नहीं होती है तो घर आकर अपनी बीवी से झगड़ता है तब जाकर उसे रात को नींद आती है क्योकि लड़ना तो उसकी आदत और धंधे कि पहली क्वालिफिकेसन है उसे राज़ के कार्यकर्ता या गुंडे यार दो चार हाथ मर देगे तो क्या हो जाएगा वह थोडी देर हल्ला गुल्ला करगा और सो जाएगा वह बेचारा आर्तिक रूप से इतना सब कुछ झेल चुका है कि अगर कोई उसके हाथ पाँव तोड़ देगा तो भी वह अगले दिन अपने बच्चो का पेट भरने के खातिर काम-ध्न्धे के लिए चला जाएगा उस गरीब को फिल्मो से ज्यादा कुछ सिखने को नही मिला मगर ये जरूर सिख गया है कि कैसे हीरो कई गोलियां लगने के बाद भी विलैन को मरता है वैसे उसे भी अपनी जिन्दगी से गरीबी के खलनायक को ख़त्म करना है और वह दो दिन बाद काम पर लौट आएगा उसे जितना भी मारोगे फ़िर रक्तबीज की तरह नए दम के साथ उठेगा अपने काम को करने के लिए इसलिए इससे टकराना राज़ के लिए महंगा पड़ने वाला सौदा था वह तो हाथ भी नही उठाएगा क्योंकि उसके हाथ तो कमजोर हो गए है अपने कन्धों पर जिम्मेदारियों का जुआ ढोते-ढोते शायद ये बात राज़ के समझ में देर से ही सही आ तो गई है इसलिए यहाँ अपनी दाल गलती नहीं दिखी उसे तो सामने से बराबर ईंट से ईंट बजाने वालों की जरूरत थी इसके खातिर स्टूडेंट से बेहतर विकल्प कोई नही हो सकता है उनसे पंगा लोगे तो हंगामा होगा, ग्रुप बनेगा, तोड़फोड़ होगी,दंगा और बंद होगा,चक्काजाम,हड़ताल,फायरिंग व चुनाव और फ़िर होगी जीत जिसका उनको इंतजार है मगर देखने वाली बात ये होगी कि जीत किसकी होगी ? क्या ये लातों के भूत कहे जाने वाले छात्र इन बातों से ही डर जायेगे? और राज़ के सदाचार के ताबीज के बाद अपने मा बाप कि बात नहीं मानने वाले लड़कों पर इस ताबीज़ का क्या असर होगा ?

ओवर एज नहीं है इंडियन डेमोक्रेसी

अक्सर लोग चर्चा करते है कि हमारे देश के लोकतंत्र में ये हो रहा है, वो हो रहा है। हमारा लोकतंत्र बिखरता जा रहा है और ये ज्यादा दिन नहीं चलेगा। लोगों के इस तरह के तमाम बयान पुरी तरह से खोखले लगते है। जब हम लोगों की लोकतंत्र में गहरी श्रद्धा पाते है कभी कभी हमे ऐसी रौशनी दिखाई देती है जो हमको तमसो मा ज्योतिर्गमय का संकेत देती है।

आज मैं सत्ताईस मई का दैनिक ट्रिब्यून देखा रहा था उसके पहले पेज पर एक फोटो छपा था जिसने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था। यहाँ फर्स्ट लीड के स्थान पर समाचार था पंजाब चुनावों में हिंसा एक कि मौत कई घायल हालांकि ये एक निराशा पैदा करने वाला समाचार था मगर इसके साथ जो फोटो था वो देखकर मन प्रसन्न हो गया।

फोटो में तीन युवाओं को दिखाया गया है जो चुनाव के लिए मतदाताओ को ला रहे थे केप्सन था

सोमवार को अटारी मतदान केन्द्र पर निब्बे साल की प्रकाश कौर व पिछत्तर वर्षीय सुरजीत सिंह को मतदान केन्द्र पर लेट उनके परिजन -

यह फोटो विशाल कुमार का था जो लोकतंत्र में चुनाव की छवि को मानसपटल पर इंगित करता है। अगर किसी स्थान पर मात्र बीस से पच्चीस प्रतिशत मतदान हो और दुसरे स्थान पर साथ प्रतिशल मतदाता वोट डाले तो माना जाता है दुसरे स्थान के लोगो में लोकतंत्र के प्रति ज्यादा विश्वास है। ऐसी स्थिति न आए इसके लिए चुनाव वाले दिन नेताजी के घर के वाहनों के साथ-साथ उनके सारे रिश्तेदारों और सभी चुनावी पार्टियों के वहां लगा जाते है ताकि ज्यादा मतदान,लोकतंत्र में जनता की ज्यादा भागीदारी,ज्यादा जन जागरूकता का प्रमाण, जन सेवा की भावना तथा ज्यादा मतान्तर से जीतने की भूख सबकुछ आदि कई ऐसे तत्त्व है जो इसमे सक्रीय रहते है। चुनावों में सारे लोग लादकर लाये जाते है ताकि ये भी बताया जा सके की फलां सरकार के बनने में जनता का कितना बड़ा हस्तक्षेप रहा है। ये बात अलग है कि उन लोगो को लेन में स्याम,दाम,दंड और भेद जैसे सारे उपकरण काम में आते है।

इन सब के बावजूद भी इस फोटो से ये आशा जरूर दिखती है कि हमारे इस वर्तमान के लिए हम ही उत्तरदायी है और यही एकमात्र रास्ता है जहाँ से हम अपना वर्तमान और भविष्य दोनों को बदल सकते है। बस जरूरत इस बात की है कि आखिर कब तक हम यूं ही हनुमान तंद्रा में सोये रहेंगे और कौन जामवंत आकर हमे हमारी ताकत का ज्ञान कराएगा और हम मुश्किलों के जलधि को एक छलांग में लाँघ जायेंगे।

उम्मीद है तब तक हमारा भारत युवा हो चुका होगा और हमारा लोकतंत्र एवर ग्रीन बना रहेगा

खलिबली-खलीबलि 'खली' बली नहीं, महाबली

पंजाब दा गबरू पुत्तर अर डब्ल्यूडब्ल्यू ई के चैम्पियन दारा सिंह के रिमिक्स वर्जन दलीप सिंह राणा यानि कि महाबली खली ने इन दिनों दिल्ली से पटियाला और लुधियाना से चण्डीगढ़ दा इलाका विच खलबली मचाये रक्खी है। पुलिस की सेवा छोड़ कर बालीवुड में हीरो बनने नहीं अमेरिका भागे खली की खाल खींचने का ख्वाब देखने वाली पंजाब पुलिस की हसरतें अधूरी ही रह गई। जब उन्होंने ये देखा कि जब मीका के बोडीगार्ड की धमकी का खली पर कोई असर नहीं हुआ। जिसने दारा सिंह को अपना गुरु बना लिया, तमाम मुल्क के बच्चों से लगाकर बडों के लिए भी आइडल बन गया है। तो उससे पंगा लेना उचित नहीं समझा कभी पंजाब पुलिस से तडीपार घोषित खली को सम्मानों से नवाजने का फ़ैसला किया है। जालंधर पहुँचने पर खली का भव्य स्वागत किया गया और पंजाब पुलिस ने पी ऐ पी केम्पस के मरीज पेलेस में स्पोर्ट्स एक्सीलेंस अवार्ड का तमगा दे डाला यहाँ तक की उनके मेनेजर को भी ओबलाइज कर दिया है मगर अब लगता है की खली महाराज भी अमेरिका की हाथपांव तोड़ लड़ाई से तंग आ चुके है।
एक बार इंडिया क्या आए वापस जाने का नाम ही नहीं ले रहे है। बच्चों से मिलना उनके साथ डांस करना और फिल्मों में उछल-कूद करना पता नहीं खली भाई लगता है सठिया गए है।
अरे भाई यहाँ टाइम वेस्ट क्यों करते है। वैसे भी हम अमेरिका से काफी पीछे है। उनसे कई बार हारते है कम से कम हमारी सांत्वना के लिए अमेरिका के दो चार पहलवानों को पछाड़ देते तो मन प्रसन्न हो जाता है। हम लोगों का यहाँ एक चीज तो समझने वाली है कि एक फ्राई डे से अगले तक नहीं चलने वाली इस इंडियन फ़िल्म इंडस्ट्री का ग्लैमर कैसे मोहपाश में बाँध कर किसी अच्छे खासे व्यक्ति को बेकरार कर देता है।
इसी पर शायद किसी ने कहा भी है।
इश्क ने कर दिया बरबाद हमको वरना

हम भी इन्सान थे काम के

बड़े धोखे है इस राह में

पहले बेंगलूर रायल चेलेजर्स के मालिक विजय माल्या और राहुल द्रविड़ के बीच की तनातनी की खबरें और अब कोलकाता नाईटराइडर के फ्रेंचाईजी किंग खान और कप्तान सौरभ गांगुली के बीच की खट पट ।
किसी ने सोचा भी नही होगा कि अपनी टीम से ऐसेवे ही शाहरुकखान पेश आए जो कभी अपनी टीम पर नाज करते थे। उन्होंने अपने किसी निकटवर्ती को ये भी बताया है कि आई पी एल मुनाफे का सौदा नहीं है जिसमे उनके मोह भंग होने के संकेत नजर आ रहे है।
हालांकि दोनों पक्षों से किसी मतभेद से इंकार किया जा रहा है मगर राज़ छुपता नहीं ........ ।
शाहरुख भाई इस आई पी एल को आपसे कई साडी उम्मीदे है आप इसे कभी कभी अलविदा न कहना जैसी फिल्म भी ओंधे मुह गिर जाती है गम खाने कि कई बात नहीं लगे रहो हो सकता है कि आपकी आने वाली फ़िल्म आपको शान्ति देने वाली हो।
इस क्रिकेट में भी इसकी टोपी उसके सर होते देर नहीं लगती है इंटरवलतक तो आप भी फिल्मो में पकाते ही है मगर ओडीयनस हाल छोड़ कर थोड़े भाग जाता है आपके आयटम डांस भी नहीं चलते है तो गम क्या है। फ़िल्म अभी बाकि है जीवन हो या क्रिकेट, कभी खुशी-कभी गम तो चलता रहता है। इस पहले आई पी एल के ख़म होने के इंटरवल के बाद आपकी भी धमाकेदार एंट्री हो सकती है फ़िर देखियेगा कैसे ये ही ओडीयंस सीटी मर मर कर झूमती है और आपकी आने वाली फ़िल्म बॉक्स ऑफिस के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर देती है। आपको टिकिट विडो कैसे मालामाल कर देती है।
तब चक दे हो जाएगा बस कहना आप इस बिसिया किरकिट को कभी अलविदा मत कहना ।

क्या रिजल्ट मेल फिमेल देखकर आता है

हमारे यहाँ पिछले दिनों सीबीएसई की बारहवी का रिजल्ट घोषित हुआ जिसमे कोई फेल हुआ है और कई पास हुए है। चाय नास्ता, पार्टी, पूजा और पता नहीं क्या-क्या नहीं हुआ। इस सब खेलों से हटकर अखबारों ने जो समाचार छापे है उनमे सबसे तुच्छ बात है वह ये है की रिजल्ट को जब जनरल, एससी एसटी या ओ बी सी के आधार पर नहीं बांटा जा सका तो अखबारवालों के पास जो सबसे बेहतरीन तरीका था कि रिजल्ट में ट्विस्ट लाने के लिए उसे बोयस-गर्ल्स के आधारपर बाँट दिया जिससे समाचार में रोचकता कायम रही।
इस तरह कोई पेपर लिखता है बारहवी में लड़कों ने बाजी मारी तो कोई लिखता है लड़कियां इस साल भी लड़कों से आगे फ़िर आगे कोई बताता है की यहाँ परीक्षा में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स में इतनी लड़कियां थी और इतने लड़के थे जिसमे से ये पास हुए और इतने फ़ेल है।
मन की समज में सबको समानता का अधिकार है नारी को प्रोत्साहन आवश्यक है इसका मतलब ये नहीं की किसी इसी प्रथा को जन्म दिया जे जो लांछित करने वाली हो वैसे भी परिवारों में लड़कों को फक्कड़, नाकारा , नालायक , आवारा और लाफाडी जैसे उपमानों से नवाजा जाता है। वहीं लड़कियों को मेरी बच्ची , पुत्तर और राजाबेटा कहकर प्यार लुटाया जाता है। अगर कोई लड़की फरमाइश करे तो उसे पल भर मे पुरा कर दिया जाता है और बेचारे ये लड़के अगर चवन्नी मांगे तो भी फटकार के अलावा कुछ नहीं मिलता है। आफ डी रिकार्ड ये बात भी सच है की लड़कों के रिजल्ट बिगाड़ने में लड़कियों का बड़ा हाथ होता है।
और इस पर ये अखबार वाले तो रहम करें क्यो बच्चों की जान लेने को पीछे पड़े है ।

भोपाल पुलिस की धुल में लट्ठामारी

हमारे देश में यूं तो सभी विभागों के दावे वास्तविकता से परे होते है मगर पुलिस की दशा तो माह्शाल्लाह है। खिसियाई बिल्ली खम्बा नोचे जयपुर में विस्फोट हो गया और कभी कान पर जूं न रेंगने देने वाली पुलिस अब जग गई है और सांप तो चला गया है जोश में होश खोकर लकीर को पिटने के खातिर धुल में लट्ठ मारे जा रही है।
इस मामले में हमरे शहर भोपाल को ही ले लीजिए जहाँ पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनजर धारा एक सौ चोवालिश जारी कर दिया था जिसके तहत होटल, लाज,धर्मशाला के साथ-साथ किरायेदारों और होस्टल में रहने वाले छात्रों को भी अपना पहचान प्रमाण देना होगा। इस पर हमारा प्रशासन समय-समय पर इसे तुगलकी निर्णय लेता रहता है जो न सिर्फ़ अव्यावहारिक होते है बल्कि असंभव से होते है इसी वजह से कभी सफल भी नही होता है।
कई आम अन्ग्रिकों की तरह हम भी इस शहर में किसी किराये की कुतिया में रहते है हमारे यहाँ भी एक दादी है जो उस घर को और किरायेदारों को मेनेज करती है जब से हम इस शर में आए है हर रोज आकर 'भेजा 'चाट जाती है और हमे फार्म भरने का ऑर्डर दे जाती है। और अब तक जिन लोगों ने भर कर दिया है उसे भी किसी पुलिस को जमा नहीं करती है बस यूं ही आ आ कर डराती है। हमसे बड़ा भी कई नही है ............ ।
हमरे यहाँ के सरकारी नियम इतने अच्छे होते है जिन पर चला जे तो हमारा देश स्वर्ग बन जाए और आम आदमी जीते जी मर कर स्वर्ग में चला जाए मगर हम पब्लिक है सब जानते है।

रविवार, 25 मई 2008

भरा रहेगा पुलिस का पेट

मध्य प्रदेश में पुलिस कर्मचारियों के नसते और भत्ते में दोगुने वृद्धि की घोषणा की गई है। नए पुलिस हेड क्वाटर के उद्घाटन के दौरान सी एमजी ने कहा है की ये नियम शीघ्र लागु होंगे। अब तक पुलिस वाले बड़े परेशान थे। वो शायद जो कुछ भी करते थे उनकी मजबूरी रही होगी । उनको इससे पहले नसते के लिए चार रूपये और खाने के लिए आठ रूपये मिलते था जो बिल्कुल अपर्याप्त है। सच है किइस ईमानदारी के इस युग में इतने में गुजरा नहीं हो सकता है। अब इसे दुगना करने पर भी जो हालत पैदा हो रहे है ज्यादा अच्छे और जनता के हीत में नहीं कहे जा सकते है।
नास्ते के बढे दाम के आधार पर पुलिस वाले कों पांच का पोहा और एक तीन कि चाय से काम चलाना पड़ेगा। अगर किसी पुलिस वाले कों भोपाल के फ़ूड प्लाजा मे खाना खाना हो तो उसे इस हसरत को पुरा करने के लिए भी नौ रूपये अपनी जेब से देने पड़ेंगे और कभी आपने देखा है कि ये अनहोनी हो सकती है एक पुलिस वाला पैसा दे।

अब प्रश्न ये है कि ये नौ रूपये आख़िर आयेंगे कहाँ से ? भाई आपसे मेरी सलाह है कि यही नौ रुपया पाता नहीं क्या क्या कहर ढहायेगा इस के चक्कर मैं आप अप भी आफत आने कि नौबत आ सकती है तो आप नौ दो ग्यारह होने कि तेयारी मैं रहे वरना आपकी गाड़ी पकड़ी जाए या फ़िर किसी और तरीके से आपको परेशान किया जे तो आप ये नहीं कहे कि अरे इनके नास्ते के लिए पकड़ा है ..... या पार्टी करनी थी इस लिए चेक्किंग कर रहे है वगेरह वगेरह। इस सब के बाद जो भी मेरी सुन सके उससे इस शहर कि ही नहीं बाहर कि जनता कि तरफ़ से करबद्ध रूप से निवेदन है कि जब इतना बेहतर कम कर के नास्ते के भत्ते कों दुगुना किया है तो ये भी कर दिया जाय कि फ़िर किसी आम नागरिक कों न परेशान किया जाय इनका पेट भरा रहे हमारी जेब में भला कुछ न रहे।

बुधवार, 21 मई 2008

हबीब मिया का दुख

कल की बात है में कोई अख़बार पढ़ रहा था तो उसमे पढने को मिला की जयपुर के रहने वाले और अपनी उम्र की बदौलत लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करवाने वाले हबीब मिया अपना इस बार का जन्मदिन जरा भी धूमधाम से नहीं मनायेगे।
अरे मनायेंगे भी कैसे जब उनका गुलाबी शहर खून से और आतंकियों के नापाक इरादों से लाल हो गया। उनका मानना है की जब उनके घर यानि कि जयपुर का ये हाल हो तो वे कैसे जश्न के बारे में सोच सकते है। हम सब को उनकी इस भावना कि कद्र करनी चाहिए कि आज इस उम्र में भी उनमे ये जज्बा है जो शायद हमारे पास है या नहीं हम जानते भी नहीं है ।
आज भी हमारे देश में कई सारे ऐसे युवा है जो अपनी भाग दौड़ भरी इस जिंदगी में इस देश को भुला देता है। हम हमारे देश के प्रति अपने दायित्वों को कितना निभाते है ये तो हमसे बेहतर और कोई नही जानता है।
इस दशा में हबीब मिया जैसे बुजुर्ग को देश के हालातों की चिंता होना स्वाभाविक और जायज दोनों है। अगर उनसे प्रेरणा लेकर अगर एक भी युवा अपने कर्तव्यों और दायित्वों की और मुदेगा तो ये उनकी हमारा सच्चा सम्मान होगा।और फ़िर धीरे धीरे ही हालात सुधरेंगे।

ढीसूम-ढीसूम का नया स्टाइल

एक समय था, जब फिल्मी लड़ाई में जब तक जोर-जोर से ढीसूम-ढीसूम की आवाज नही आती थी तो, टाकीज की पिछली सीटों से आवाज आती थी, अबे क्या औरतों की तरह मार रही है मर्दों की स्टाइल में पटक दे ....... और पता नहीं क्या-क्या सुनने को मिलता था, मगर जब से धर्मेन्द्र, मिथुन और एंग्री यंग मैन अमित जी वाला टाइम गया है। बेचारी पब्लिक ने अब फिल्म देखना जाना ही छोड़ दिया है । इसका कारण ये है कि आजकल के डायरेक्टर फिल्मो में हाथ पाँव से ज्यादा काम होठों से चलाने लगे है और फिल्मों से हड्डी-पसली तोड़ने वाला काम नदारद-सा होता जा रहा है। इसका अभिप्राय यह कतई नहीं है कि फिल्मो में हिंसात्मक दृश्यों का स्थान अश्लील दृश्य ले रहे है।

अब फिल्मो में से जब से हाथापाई बंद हुयी है फिल्मों के निर्देशकों से लगाकर हीरो, हिरोइन और विलेन सभी ने अपनी-अपनी आवश्यक्ताओं के मुताबिक लड़ने के नए तरीके ईजाद कर लिये है। अब कोई हीरो-हिरोइन पार्टी में मीका-राखी की तरह आमने-सामने होते है तो कोई सल्लू-कैटरीना की भांति तमाचामारी पर उतर आते है । इसी तरह हिरोइन से हिरोइन का मुकाबला भी अख़बारों के लिए बड़ा रोचक होता है।

हम सब जानते है कि अक्षय-सल्लू में ट्विंकल खन्ना को लेकर, विवेक-सलमान मे ऐश्वर्या को लेकर तो अजय देवगन-शाहरुख़ में व्यावसायिकता को लेकर विवाद काफी चर्चा में रहे है। इसी तरह नर्मदा को लेकर आमीर और शत्रुघ्न सिन्हा का झगडा भी जग जहीर है इन दिनों मीडिया से लगाकर बॉलीवुड के गलियारों तक जिस शीत युद्ध का डंका बज रहा है वह है आमीर, शाहरूख और अमिताभ के बीच के विवाद, जो आए दिन समाचार पत्रों के पहले पेज कि सुर्खी बन जाता है कभी अमिताभ का माफ़ी प्रस्ताव तो कभी शाहरूख की आई पी एल में कोल्कता टीम की वेब साईट पर दूसरी टीमों के कार्टून तो कभी आमीर की ये ख़बर जिसमे उनके कुत्ते का नाम शाहरूख नाम सर्व्जनीक करने की बात हो इन सभी के प्लेटफोर्म के लिए बड़े जोर शोर से ब्लोगिंग का उसे किया जा रहा है जिसका एक अप्रत्याशीत फायदा मीडिया वलों को ही हो रहा है बैठे बिठाये खबरें चल कर आ रही है आजकल कई नामी फ़िल्मी अभिनेता ब्लॉग पर अपनी टिप्पणियाँ लिख रहे हैं टिप्पणियां क्या एक दुसरे पर कीचड उछाल रहे है और इसका मजा आम आदमी या मीडिया ले रहा है कुछ फायदा निर्देशकों को भी मिल सकता है कहीं कहीं इसके उल्टे हालत भी है कुछ खास फैन लोगों को ये सब रस नहीं आ रहा है क्योंकि जिस देश में फ़िल्मी सितारों को भगवान के समान इज्जत होती है वहाँ ब्लॉग के ज़रिए एक-दूसरे पर भड़ास निकालने की आदत बुरी मानी जा रही है मुबंई फ़िल्मों के कुछ अभिनेता आजकल ब्लॉगिंग में मशगूल हैं और उनके बीच इसके ज़रिए वाक् युद्ध भी जोरों पर है. पहले अमिताभ ने किसी शो को फ्लाफ़ बताया तो शाहरूख ने जम कर भडास निकल दी हालांकि बाद में अमिताभ ने सार्वजनिक माफ़ी की पेशकश की मगर फ़िर क्या होना था भाई कहा भी गया है ना कि रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय टूटे से फ़िर न जुड़े जुरे गांठ पड़ जाय . इन सब एक्टर लोगों के ब्लाग के आने के समय उम्मीद कि जा रही थी कि अब तो उनके फैन लिगों को अपने आइडियल हीरो के अब्र में सही जानकारी मिल पायेगी मगर यहाँ का माजरा तो बिल्कुल उल्टा निकला इन ब्लोगों में जो लिखा गया है उससे तो सिनेमा के इन स्टारों में जरा सा भी ऐसा नहीं लगता है कि उनको किसी कि कोई फिक्र है इन सब हालातों को देख कर ये कबीर तो बड़ा उदास हो गया है और अपना तो कभी इस चटकीली दुनिया में कोई मोह नहीं था मगर एक जो छोटी मोटी जिज्ञासा थी वो भी दम तोड़ने लगी है माया नगरी कि माया का परदा कई पार्थ लोगों कई आंखों से उठने लगा है समस्या कई गंभीरता के मद्देनजर कुछ चिंतन के बाद मेरी समझ में जो हल आया वह ये था कि अब हमारे निर्देशकों को मारधाड़ और हिंसा से ओतप्रोत ढीसूम-ढीसूम वाली फिल्मों कि और आपना रूख कर देना चाहिए ताकि ये सुपर स्टार अपने को एक दुसरे से फिल्मी सेट पर लड़ता और जीतता देखा कर खुश होते रहे और इनकी ऑफ़ द स्क्रीन की ये वर्च्युअल जंग समाप्त हो सके ताकि अखबारों के फ्रंट पेज पर दूसरी ख़बरों को भी जगह मिल सके

मंगलवार, 20 मई 2008

कल रात शरहद पर कुछ गोलियां चली थीं

भोपाल
आज सवेरे जगा ही था कि अखबार वाला पेपर देकर चला गया, एक नजर डालकर सिराहने साइडमें रख कर सो गया फ़िर झपकी लगी ही थी कि एक ख़याल आया और में जग गया उसी पेपर को उठाया और तल्लीनता से पढने लगा आख़िर उस पेपर के पहले पेज पर समाचार ही कुछ ऐसे थे स्टीमर में स्टोरी लगा रखी थी अब कुंवारे सैनिकों कि शादी कराएगी वायुसेना । भाई क्या चोखी ख़बर थी मन राजी हो गया कि चलो अब कोई कुंवारा ये जिद तो नहीं करेगा जेसे भी हो मेरा चक्कर चलवाओ मेरी शादी करवाओ ......... ।
इस काम को करने के लिए एक वेबसाइट भी बनवाई गई है ये और भी अच्छी बात है कि सैनिकों को शादी के लफड़े में किसी मैरिज ब्यूरो के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे बस बायोडाटा दो और लग जाओ सात फेरों की तैयारी में। ये है न मजे वाली बात,
खैर मेरी यह खुशी ज्यादा समय तक कायम नही रह सकी जब में न्यूज़ पेपर की लीड स्टोरी पढी तो मेरी सारी कल्पनाएँ छूमंतर हो गई । लीड स्टोरी में जयपुर के हमलों को नजरंदाज करते हुए पाकिस्तान स बात करने का सही समय करार दिया अभी दो दिनों पहले की ही बात थी की पाकिस्तान के रेंजरों ने शान्ति के माहौल को तोड़ते हुए रात भर बॉर्डर पर बंदूकों से बरात जैसा जसना मनाया था और आज के पेपर में ही ख़बर थी की पाकिस्तानी फायरिंग में एक भारतीय जवान शहीद हो गया है । सीमा पर बढ़ती गतिविधियों के मद्देनजर भारत ने भी सीमा पर कुछ और सैनिकों की तैनाती कर दी थी जो जरूरी भी थी ।
अब जब बॉर्डर पर ऐसा माहौल हो , तो गोलाबारी के सामने शादियों की शहनाइयों के सुर दब से जाते है सभी को बस यही याद आता है हम जियेंगे और मरेंगे ऐ वतन तेरे लिए .............. ।
और सिपाही भी यहीं सोचते होंगे बंसी से बंदूक बनाते हम है प्रेम पुजारी ............ताकत वतन की ........... ।

सोमवार, 19 मई 2008

शाहरुख़ प्रीति की प्रीत पर रोक

भोपाल
अभी शाहरुख खान को आई पी एल मैच के दौरान कोलकाता नाईट राइडर के ड्रेसिंग रूम में जाने की रोक का मामला जरा भी ठंडा नहीं हुआ था कि कल खेले गए मैच के दौरान प्रीति जिंटाको टीम के खिलाड़ियों के करीब से हटाया गया। भाई कल्पना करें वो कितना इमोशनल पल होगा जब आई पी एल के मैचों में करोड़ों रूपये निवेश करने वाले निवेशकों से इस तरह निराश कर दिया है। आई सी सी आई के नियमों कि कड़ाई से सिने स्टारों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है जो उनको नागवारा गुजर रहा है।
बात इनकी ही नहीं कई और लोगों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ा है इस मैच में प्रीति जिंटा को डगआउट से अलग बैठने को कहा गया कुछ ऐसा ही अनुभव दिल्ली टीम के सी ई ओ को उठाना पड़ा उनको भी अलग चैयरपर बैठने को कहा गया।
इन सब पर प्रीति का क्या रूख होगा ये तो बाद में देखने को मिलेगा मगर किंग खान से तो नहीं रहा गया और उन्होंने आयोजकों से दो टूक शब्दों में कह दिया है कि वे किसी भी हाल में अपनी टीम के प्लेयरों से मिलने से नहीं रुकेंगे इसके पूछे उनका तर्क ये था कि वे सिर्फ़ कठपुतली नहीं है वे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ने के लिए हमेशा उनके साथ रहेंगें।
जनाब बिल्कुल वाजिब बात है अरे भाई किसी ने इन्वेस्ट किया है ये कोई सरकारी काम थोड़े है जो एक बार फंड पास करके अपना फंड ले लेने के बाद मुड़कर के नहीं देखे। ये मामला सिने जगत जैसा है मुहूर्त से लगाकर ऑस्कर तक प्रोडूसर पीछा नहीं छोड़ता है और आई पी एल कि कहानी भी किसी पिक्चर से ज्यादा अलग नहीं है
शाहरुख़ इस प्रोड्क्सन के प्रोजेक्ट को अधूरा कैसे छोड़ सकते है।

रविवार, 18 मई 2008

चक दिया इंडिया

इसे गिल साहब की किस्मत कहें या फ़िर इंडियन नेशनल गेम का गेम एक आशा की रौशनी इस रूप में देखने को मिला है कि तेरह साल के बाद भारत की हाकी टीम ने अजलान्शाह टूर्नामेंट के फायनल में स्थान बनाया है । ये समय लगभग उतना ही है जितना की हाकी के सिहासन पर गिल साहब कुंडली मारे बैठे थे । आज शाम को पता चला की हमारी टीम फायनल में हार गए है मगर फ़िर भी कोई गम नहीं है क्योकि आज नहीं तो कल हमारा जलवा कायम होगा । बस मेहनतकरो इंडिया बस लगे रहो इंडिया लगे रहो इस बार न सही अगली बार तो हम ही चक देंगे ।

समीक्षा मतलबों का गणित बदल देता है

भोपाल
एक दो दिन पहले कोई समाचार पत्र पढ़ा रहा था तो पता चला कि माधुरी का मतलब माँ अधूरी भी हो सकता है । अरे भाई में उसी रिपोर्ट का जिक्र कर रहा हूँ जिसमे संवाददाता ने हल ही में विदेश यात्रा से लौटे एक कलाकार के हवाले से जाहीरकिया है कि जब अपने प्रवास के दौरान वे भारत से निष्कासित कलाकार मकबूल फ़िदा हुसैन से मिले तो उन्होंने बताया कि उनकी माधुरी कि परिभाषा ग़लत कि जाती है उनकी इस माधुरी की परिभाषा तो उनकी माँ की याद से जुड़ी है। जिस कमी को वे आज भी काफी महसूस करते है । तो भइया या जब ये ख़बर अखबार में आई है तो हम भी भारत के उस साठ प्रतिशत जनमानस की तरह आंखें मीच कर भरोसा कर लेते है की ये सच ही होगा मगर फ़िर भी मेरे मन में कुछ विचारों के बुलबुले उठा है अगर उनका निवारण नहीं किया गया तो वे कल तक दाग बन जायेंगे और मेरे पास इतनी हिम्मत नहीं है की लगा चुनरी में दाग को रिन सुप्रिन से धो सके।
चलो इस बयानके आधार पर उनको माधुरी की पंटिंग बनाकर लाखों युवाओं के दिलों को तोड़ने की खतासे बरी कर दिया जा सकता है मगर हिंदू देवी देवताओं की पेंटिंग के बरे में उनका क्या बचाव है । इसी तरह उनके उस कम पर क्या कहना जिसमे पिछले दिनों उन्होंने नई नवेली विवाह फेम हिरोइन अमृता रावके बारे में बड़बोलापन दिखाया और ऐश अभिषेक की शादी के अवसर पर बाबुल मोरा नेहर छूटो जाय बनाई थी जिस पर काफी बवाल मचा था।
एक बात तो तय है किअब मकबूल साहब कई देशवासियों के दिलों से कलाकार का वो दर्जा खो चुके है जिसे वापस पा पाना आसान नहीं है। उस पर समय समय पर उनके नित नए स्टंट उनकी बची खुची इज्जत को भी मटियामेट करने वाले होते है।
मैं उन कलाकार से माफ़ी मांगना चाहूँगा और ये स्मरण भी करना चाहता हूँ कि समीक्षा से किसी के गुण-अवगुण का विवेचन किया जा सकता है वहीं आलोचना से अवगुणों की और दयां केंद्रित कराया जा सकता है मगर उन कलाकार का ये काम इन दोनों कार्यों से दूर वकालत कि श्रेणी में आता है और जब तक किसी के कर्म उम्दा नहीं हो कोई कम का नहीं होती है। वकालत से किसी व्यक्ति को एक पल के लिए महिमा मंडित किया जा सकता है साचा पर परदा डाला जा सकता है मगर ये सब कागज के फूलों से खुशबू आने जैसा है अगर कोई कहे कि अब ये परफ्यूम से सम्भव है तो उसमे कोमलता कहाँ से लाओगे।
इस लिए उन संदेशवाहक कलाकार और मकबूल साहब के समीक्षक से कहना है कि उन्होंने माधुरी का मतलब तो माँ अधूरी बता दिया है मगर फ़िदा साहब की अमृता का अर्थ भी पुंछते आते ।
शायद इसी बहाने हमे भी कुछ नया सिखने को मिल जाता ।

शनिवार, 17 मई 2008

अनिल गुलाटी को भावी पत्रकारों की विदाई

भोपाल
हमारे विभाग के द्वारा आज यूनेस्को के स्टेट संचार अधिकारी श्री अनिल गुलाटी जी को विदाई दी गई । इसके पूरे समाचार के लिए आप हिन्दी हेतु विभाग और इंग्लिश में स्केम देख सकते है ।
असुविधा के लिए खेद है

उद्धव का नया स्टंट

मुझे उम्मीद है की सर्कस तो आप सभी ने अपने अपने बचपन में देखा ही होगा ना ? और नहीं देखा हो तो भी चिंता करने की कोई बात नहीं क्योंकि अब हाईटेक सर्कस देखने को मिलेगा सबको।
अरे भाई भोपाल में कोई नया सर्कस नहीं आया है कि जिसकी सूचना में आपको दे रहा हूँ । बल्कि मेरा तो ये मानना है कि अगर आपकी जरा सी भी सर्कस में रूचि हो तो आपके लिए निसंदेह महाराष्ट्र और मुम्बई कि राजधानी बड़े काम की जगह है। वहां के हालत मुझे तो कम से कम किसी सर्कस से कम नहीं लगता है।
जैसे सर्कस में एक के बाद एक नया तमाशा आता रहता है उसी प्रकार इस मुम्बाइया सर्कस में भी एक के बाद एक नित नए खेल होते जा रहे है। कभी उत्तर भारतीयों को मुम्बई से निकलने के नाटक तो का कभी बोम्बे के नाम पर बोम्बे नाम के संस्थानों में तोड़ फोड़।
ये सारी कलाबाजियाँ सर्कस से भी ज्यादा रोचक है। भाई पिटने वाले भले पिटते हो मगर मारने वाले उनसे भी ज्यादा डरे हुए है।
आपने सर्कस में देखा होगा कि बड़े जोकर के साथ खेल में छोटा जोकर भी होता है और छोटा जोकर हमेशा ही करतब करने से पहले तो डरता है । इसी बीच उसका उत्साह बढ़ने के लिए बड़ा जोकर स्टंट दिखता है वो करतब बड़ी खूबसूरत कलाबजियों के साथ दिखता है और सबकी तालियाँ प्राप्त करता है ये सब कुछ देखकर छोटा जोकर भी जोश में आकर स्टंट करने को रिंग में उतर जाता है और वास्तव में कर कुछ नहीं कर सकता है उल्टे दर्शकों कि हँसी का पात्र बन जाता है।
ये तो थी सर्कस कि बात मगर मुम्बई में भी हालत कुछ ज्यादा अलग नहीं है वहां भी अब उद्धव अपने बड़े राज की देखादेखी करने में लगे है। जो कहते है कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आई पी एल में खेलने का कोई हक नहीं है। साथ ही उन्होंने शरद पंवार को भी निशाना बनाया है।
अब उन्हें कोई समझाए इन स्टंट से कुछ नहीं होगा बस ये जरुर होगा कि लोग जरा सी देर जोरों से तालियाँ ही बजायेंगे ।

पिंक सिटी को आई पी एल छाप मरहम

भोपाल
जयपुर के विस्फोट के पीडितों को राहात के लिए कई लोगों ने हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया है कभी दैनिक भास्कर के द्वारा मदद के बाद अब आई पी एल भी मदद के लिए आगे आया है।
आई पी एल की आठ टीमों ने मुख्यमंत्री राहत कोष में पचास पचास लाख रूपये देने की घोषणा की है। साथ ही उनका ये कदम बड़ा अच्छा रहा है जिसमे उन्होंने जयपुर में ही अगला मैच आयोजित कराने का साहस किया है यह काबिले तारीफ कदम है। और इसमे बेहद साहस और भरोसे का कम भी है जिसमे खतरा कम नहीं है।
इस से दूसरी और बात करे केन्द्र सरकार की तो उनकी राजनीती बड़ी ओछी है , जयपुर जैसे शहर में ब्लास्ट होने पर भी हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने यहाँ आना भी उचित नही समझा है । सोनिया जी आयीं तो वो भी बस इतना कह कर चली गई कि सतर्कता होती तो ये नही होता भाई इतनी बड़ी घटना पर वे जयपुर कि सहन शक्ति कि प्रसंसा के अलावा कुछ नहीं कर सकी । ये हमारी वाही सरकार है जो म्यांमार में या भूटान कि मदद के लिए तो बड़ा बड़ा चन्दा दानवीर कर्ण की तरह कर देते है मगर यहाँ उनकी जेब कंगाल हो जाती है ।

शुक्रवार, 16 मई 2008

क्या इंसानियत अब भी जिंदा है ?

कहते है कि आप भले तो जग भला, राजस्थान हमेशा से ही लोगों के आंसू पोछने में आगे रहा है उसी का नतिजा है कि अब यहाँ पर भी सेवा के हाथ बताने वालों की कमी नहीं है । आज कही पढने को मिला जहाँ एक तरफ़ हमारे हाथ तो हमारी सेवा मैं है ही साथियों ने हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया है।
जयपुर के नजरों को देखने आए पर्यटकों से भी नही रहा जा रहा है और वे दिन रात लोगों की मदद कर रहे है। जहाँ एक और मेडिकल होस्टल के डॉक्टर और मेडिकल स्टूडेंट्स और नर्सिंग के बच्चे जुटे है रहत देने के इस प्रयास में ।
समाचार से ज्ञात हुआ कि जो भारत के रंग और जयपुर के दृश्यों को देखने के लिए आए और यहाँ का ये हाल देखा तो, खुद भी जुट गए एक त्रासदी से बचाव करने मे । अपनी पसंद के शहर को जब मुश्किल में देखा तो होटल में छिपने के बजाय, दो अमेरिकी पर्यटकों रक्तदान करने के लिए और उन घायल हुए लोगों की सहायता के लिए हॉस्पिटल जा पहुचे, समाचार पत्र में भी जब पढ़ा की कर्फ्यू के बावजूद रक्तदान करने वालों की लाईन कम नही थी तो लगा कि अभी भी हमारे खून में उबाल बचा है ।
उन सभी हाथों को मेरा प्रणाम उन कन्धों को मेरा धन्यवाद ।

एरिक और उसके दोस्त को इंडिया आए हुए चार पांच दिन ही हुए थे और जिस दिन ब्लास्ट हुआ वे किसी काम के सिलसिले में जयपुर से बाहर सयद किसी शादी में गए थे मगेर विस्फोट के बाद अगले दिन पता चला कि साठ लोग मरे है दो सौ सोलह घायल है और ब्लड डोनेट करने वालों कि जरूरत है और उन्होंने मरीजों की मदद की
अब एक बात उन लोगों की भी कर ली जाय जो इस तरह के हालात में भी अपने हितों के पीछे पड़े रहते है। मैं बात कर रहा हूँ उन दवाईयों के दूकानदारों की जिन्होंने घटना वाली रात अपनी दवाओं को जम कर ऊँची कीमत पर बेंचा। इस पर शिकायत का भी कोई असर नहीं हुआ समझ में नहीं आया।
ये घर में धंधा आड़ा कब से आने लगा है ये बात शायद किसी कलयुगी बनिए से छुपी हुयी नहीं थी कि तब हालात क्या थे और वेसे भी इन मेडिकल वालों कि कमायी कम होती ही कहाँ हैं फ़िर कुछ मौकों पर तो सब्र रखा जा सकता है और सरकार की नीद क्यो नहीं उड़ती है होना ये चाहिए की उन सभी मेडिकल वालों के लायसेंस केंसल कर देने चाहिए जो ना सिर्फ़ उपभोक्क्ताओ को ब्लैक मेल करते है बल्कि देश के दुश्मन होने जैसा काम करता है।

गुरुवार, 15 मई 2008

इसे कहते है ...................

भोपाल
आज से कुछ सालों पहले जब मैं सेकंडरी में पढ़ा था की राजस्थान में कई स्थानों के विस्थापितों और शरणार्थियों को शरण दी गई है जो यहाँ की जनसंख्या बड़ा देते है । तब मुझे गर्व होता था किहम अपने पुरखों रंथाम्भोर के हमीर कि भांति शरण दे रहे है । मगर आब जब उनका ही नाम आता है कई विस्फोटों में तो अपने से ही ....................

सोमवार, 12 मई 2008

व्यंग्य के लिए थोड़ा-सा नॉन सेंस होना पड़ता है

भोपाल

व्यंग्य संवेदना की जमीं पर अनुभव के बीजों को कल्पनाशीलता से सींचने के जैसा है ये कहना है जाने-माने आर्थिक विश्लेषक और व्यंग्य कर श्री आलोक पुराणिक जी का , जो इन दिनों पत्रकारिता विभाग के छात्रों से रूबरू हो रहे है इस मसले पर बाकि बातें ब्रेक के बाद ........................................... ।

चीयर लीदेर्स नेक्स्ट टाइम इन साडी में दिखेंगी

भाई कहा गया है की जिन्दगी में शान्ति के लिए ये जरुरी है कि जितना हो सके विवादों से बचा जाय तो स्वाभाविक है की इसका फायदा ही होगा अब अपने आई पी एल सिरीस को ही ले लीजिये क्या जरुरत है नवरे झंझटों में पड़ने बस अपने को तो मैच खलने से काम मगर नहीं भारतीय जो ठहरे बस चले तो रास्ते में सोये शेर की भी पूंछ मरोड़ने का मजा उठाना नहीं भूलेंगे जब ये टूर्नामेंट शुरू हुआ था तो सभी को जनता को अपनी और खीचना था नतीजतन शुरू हो गई कभी ख़त्म न होने वाली खीचतान कभी हरभजन का झापड़ तो कभी चीयर लीडर्स को लेकर बवाल यहाँ तक कि इस मुद्दे पर संसद मे ये स्थिति हो गई कि कई जनप्रतिनिधियों के नाम शिस्ताचार कमेटी के सामने रखे गए फ़िर भी चीयर लीडर्स का मटकना जारी रहा राजस्थान मे उनपर बोटल मरने कि शिकायत भी आई मगर भइया ये किरकिट है किसकी सुनता है सबकुछ एक मेक हो गया तो अब हालात से शर्मा कर मुंबई और चेन्नई के बाद राजनीतिक दलों के दबाव की वजह से अब हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन ने आईपीएल मैचों के दौरान चीयरलीडर्स की ड्रेस में बदलने का फैसला किया है नए ड्रेस कोड के कारण कोलकाता नाइट राइडर्स और डेक्कन चार्जर्स के बीच हुए मैच में चीयरलीडर्स पूरे कपड़ों में नजर आई।दोस्त ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू यहाँ अच्छे अच्छे आकर सुधर जाते है तो इन बेचारी न्रित्यांगानाओ कि क्या बिसात और रही बात बाकि लोगों कि तो उनको भी तो अपनी कम्पनी को कम कर देना है और पब्लिक के डिमांड के मुताबिक काम नहीं किया तो सब नाटक किया धरा रह जाएगा इस लिए अगर जनता इसी तरह चीयर लीडर्स से कन्नी काटती रही तो पता चला अगले साल ये ही बालाएं साडी मे नाचती दिखई पड़े ।

अब एड के भी सिक्वल बनने लगे है

भोपाल
बात कल की है जब मैं टीवी पर कोई प्रोग्राम देख रहा था तब मुझे इंडिया की ओये बबली का एक एड देखने का सौभाग्य मिला। अरे क्या हुआ ओये बबली से कुछ याद नहीं आया, बबली बोले तो पेप्सी। उसे देख कर मुझे याद आया की कुछ दिनों पहले तो पेप्सी का दूसरा एड आता था जिसमे सांवरिया फेम रणबीर ओम शान्ति ओम से चर्चा मैं आई दीपिका को घर छोड़ने जाता है तो उसको दीपिका का भाई यानि कि शाहरुख़ देख लेता है तो बचने के लिए अपने एक हाथ मैं टूटा हुआ डी टी एच लेकर कह देता है कि मैं यंगिस्तान से आया हूँ।

जब पूछा जाता है कि यहाँ क्यो आए हो ? तो बताता है कि तुम्हारी बहन का बोडी गार्ड बनने के लिए फ़िर क्या हो जाती है उसकी वहां उसकी जगह।

इसके कुछ समय बाद ही जब आई पी एल में जब किंग खान कोल्कता टीम,दादा , चीयर लीडर्स में व्यस्त थे तो कम्पनी ने उनकी गैर मौजूदगी में बचे दोनों मॉडल के साथ एक नया एड बनाया है जिसमे दोस्त रणबीर से कहते है कि क्या आईडिया दिया है बॉस लड़की के घर में जाने का। और लेक्चर देने के बहाने रणबीर किसी और का पेप्सी पी लेता है।

अब ये तो थी एड कि बात पहले किताबों के , फ़िर फिल्मों के और अब इस दौर में एड के भी सिक्वल आने लगे है। अब देखने वाली बात ये होगी की इनको कितनी सफलता मिलती है और नही मिलेगी तो क्या फ़िर कोई नया सिक्वल एड बना देंगे।

हम उसे देखेंगे और दोस्तों के बीच उसी स्टाइल मे पेप्सी पीकर कहेगे ......................

ये यांगिस्तान मेरी जान ।

बड़े काम की चीज है सायकल

रहिमन देखा बदें को लघु दीजिये डारी
जहाँ काम आए सुई , का करे तलवारी
भाई साहब ये तो थी मेरी मन की बात।
अब आप पूछेंगे की इस सायकल का रहीम दास जी क्या लेना देना है, तो मैं बताता हूँ, कुछ दिनों पहले की बात है हमारे एक सनीयर हमसे मिलने आए हम भी नेट खबरें पढ़ रहे थे और हमने अपनी एक सहपाठी जो एक अख़बार मैं काम करती है उससे कहा कि अबे स्टील के रेट बढ़ने से सायकल बन्नने वाली कम्पनियों ने सायकल के दाम ज्यदा कर दिए है जिससे आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ जायेगी इस पर तुम स्टोरी कर सकते हो।
हमारा बस ये कहना ही हुआ था की अग्रज हमे शिक्षा देने लग गए की आज कितने लोग है जो साईकिल चलते है हमारे पेपर का रीडर साईकिल पर चलने वाला नहीं है हम इलीट क्लास के लिए लिखते है।
खेर इनका उपदेश भी समाप्त हो गया वे ही महाशय अगले दिन उस अखबार के दफ्तर के सामने दिखे जो ठेले और खमचों वालों का अख़बार ही माना जाता है।

मुझे एक बात ये समझ मे नहीं आई की हम सब सच जानते है तो फ़िर ये झूठा आवरण क्यो ? सच ये है की आज हमारे देश में आधे से ज्यादा लोग गाँव में रहते है जहाँ आपकी फटफटिया से कई गुना ज्यादा लोग साइकिलों से सफर तय करते है। इस पर अगर यदि हम गाँव के लोग को मूर्ख और सायकिल को घृणा की नजर से देखने लगे तो फ़िर वो गया कल्याण आज जितना पेट्रोल खपत होता है उसका कई गुना तेल चाहियेगा , और जब आज की डिमांड को हम पुरा नहीं कर पा रहे है तो फ़िर हमारा भविष्य तो राम भरोसे होगा।

फ़िर तो सारा झंझट ही खत्म हो जाएगा आप भी साईकिल से चलेंगे और गांवों मे रहने वाला गवार भी साईकिल से सवारी करेगा शान से ,और आप मजबूरी से ।

है न मजे वाली बात ।

गुरुवार, 8 मई 2008

कहाँ छूटेगा ये ब्रह्मास्त्र

भईया अब हम तनिक भोजपुरी इस्टाइल मे आ जाते है
कारण के ई बक्त हम हमारा नाहि हमार भोलू भइया याने के परवीन का बारे में बात कर रहे हैं । हमारे वरिष्ट परवीन जी से हम नन्हें मुन्ने बच्चों की हँसी ठिठोली देखि नाहि गई और उन्होंने भी इस ढलती उमरिया मैं अखबारों को पढ़ना छोड़ के अब ब्लॉग लिखने का फ़ैसला किया है ।
जनाब यहाँ तक टू कोई बात नहीं मगर इससे आगे की जो बात हमे आज के न्यूज़ पता चली है कि उन्होंने बच्चों को सही दिशा निर्देशन देने के लिए अपना ब्लॉग बनाया है ।
जिसके द्वारा वे हमारे विभाग के साथ साथ जो भी ब्लॉग मिलेगा उसमे मीन-मेख निकलने का कर्म करेंगे और इस दौरान वे गीता के कर्मन्येवाधिकारास्तू मां फलेषु कदचिने के आदर्श पर कार्य करेंगे ।
आपको बताना तो नहीं चाहिए लेकिन हम बता देते है कि उन्होंने अपने ब्लॉग को बड़ी मेहनत से बनाया दूसरो कि तरह ए सी कमरों में बैठ के नहीं बनाया है, उन्होंने अपनी जेब से पैसे काट कर सायबर केफे में जाकर अपना ब्लॉग लॉन्च किया है । अरे भाई जहाँ एक और भारत और पाकिस्तान चाहे कैसे भी हथियार बना रहे हों मगर जरा सोचे कि क्या हम इस शक्तिशाली मीडिया मध्यम का अंधेरे को मिटने मे कर पा रहे है या नहीं । शायद हम तो जरा भी नहीं । आखिर हम ब्लोग्गिंग को लेकर गम्भीर कब होंगे । मुझे नहीं पता फ़िर भी उम्मीद है कि उम्र के साथ साथ जैसे लड़कपन चला जाता है और गंभीरता आ जाती है उसी तरह हमारे ब्लॉग भी बड़े होने पर गंभीर हो जायेंगे , मगर ये सब इतना आसन नहीं होगा क्योंकि जब तक किसी बच्चा गिरता नहीं है चलना नहीं सीखता है बिना तानो के सबक नहीं मिलता है । आज हम प्रवीण जी की तरह हमारे सभी बडों को ये निमंत्रण देते है कि वे आए तो सही हंस कर या झल्ला कर ही सही , निंदा या फटकर किसी भी बहाने हमे रास्ता तो दिखाए । और दिखाए एक राह जिस पर चल कर हम कुछ कर सके मगर कोई हो तो सही ना । जो हमे चलना सिखा सके हमारी अंगुली पकड़ कर चलना सिखा सके समझा सके निन्दा कर सके हमारी ताकि हम
आपही होत सुहाय जैसे बन सके ।
चलते-चलते आपको भी बता देते है । उनके ब्लॉग का नाम है ब्रह्मास्त्र अभिव्यक्ति का
भाई यू आर एल तो उनको याद नहीं रहा जब वो बता देंगे तो हम आपकी सेवा मैं पेश कर देंगे फ़िर भी खैर अब आप जरा संभल के क्योंकि पता नहीं ये ब्रम्हास्त्र कहाँ जा रहा है कहीं आप से न टकरा जाए ये दिशा हीन अस्त्र जिसे ब्लॉग कहते है

सब पड़े है सरकार के राज़ के पीछे


भोपाल
भैसों की कतार के बीच में काम करते चार पांच लोगों को ताबड़ तौब आर्डर देता हुआ भइया,
मजदूर दोड-दौड़ कर काम कर रहे है ।
कैमरा को अपने करीब आता देख घूरती आँखों से देख कर अपनी क्लोस अप स्माइल के साथ भैंस, जब कैमरा दूर जाता है तो कैमरा मैन को अपने को फोकस करने का आर्डर देती हुयी सी लड़ती है। वह भैंस हमेशा की तरफ़ बीन की बजाय लेटेस्ट ज़माने के म्यूजिक डायरेक्टरों के चोरी-चकारी के हालीवुड के बेक ग्राउंड म्यूजिक पर भी पगुराती हुयी-सी भैंस जो अब तक जरा भी नहीं बदली है ।
पास ही में एक लकड़ी की आराम फरमाने वाली कुर्सी पर बैठा एक युवक जिसके हाथों में एक कप और प्याली है चीनी मिटटी की जिसमे वह बार बार चाय निकल निकल कर पिता रहता है।
सामने आंखों से दो कदम भर की दूरी पर रखा है एक ब्लैक एंड व्हाइट टीवी जिस पर वह सरकार फ़िल्म देख रहा है उस युवक की पीठ से सट कर एक खम्भा है जिस पर अमिताभ बच्चन का सरकार फ़िल्म का फूल साइज़ का पोस्टर लगा है ।
तभी पीछे से अपना लाफ्टर फेम रतन नूरा जो नौकर होता है कहता है क्या भइया आप दिन भर आप इस फ़िल्म को क्यों देखते रहते है सुबह से आप इस फ़िल्म को चार बार देख चुके है
ठिगने कद का वह युवक अपना यू पी का राजपाल खड़े होकर कहता है
हमका सरकार बनना है पूरे मुम्बई के साथ साथ अंडरवर्ल्ड पर राज़ करना है
मेरे भाई ये तो थी कुछ दिनों पहले मेरे द्वारा देखी गई फ़िल्म अपना सपना मनी मनी का एक कॉमेडी का शोट जिसमें राजपाल को दोन बनने की बड़ी हसरत रहती है । उसके लिए वह क्या क्या करता है ये में तो आपको बाद में कभी बताऊंगा । उससे पहले शायद ये फ़िल्म देख लेंगें अब तो दूरदर्शन पर भी ऐसी फिल्म बड़ी जल्दी बता दी जाती है खेइर ये बात अलग है की उनमे विज्ञापन प्राईवेट चेनलों से भी ज्यादा होते है हमारे सिनेमा का तो कम ही जनता को कामेडी से हँसाना होता ही है मगर पिछले कुछ दिनों से जो चल रहा है वो भी कम मजेदार नहीं है ।

बाला साहब ठाकरे की स्टाइल से प्रभावित होकर रामू एक ऐसी फ़िल्म बना बैठे जो रामू की कम्पनी को आर्थिक, तो सदी के सुपर स्टार बिग बी को राजनैतिक समस्या में डाल गई । हुआ यूं कि इस फ़िल्म से राजपाल जैसे कई युवा इतने प्रभावित हुए कि एंग्री यांग मन कि इमेज के साथ सिने जगत में आने वाले बच्चन साहब के लिए भी तकलीफ दायक बन गए उन जोशीले जवानों ने समझा कि सत्ता के लिए सिनेमा के लिए दो-दो हाथ हो जाए तो क्या कहना ।

अरे भई वैसे भी अब पॉलिटिकल बीट में अब इतना स्कोप ही कहाँ बचा है । इस बीट के पत्रकारों को फ्री के गिफ्ट देने का भी कोई फायदा नहीं है , जब एडिटर राजनीती के हर समाचार को सिंगल कॉलम में लगाने का फतवा जरी कर देता है

भाई जैसा फायदा राजपाल ने कॉमेडी के जरिये फिल्मों में उठाया वैसा ही कुछ मिलता-झूलता लाभ नए ठाकरे साहब ने लेना चाहा है अमिताभ बच्चन को कोन नहीं जनता है देश के हर गाँव में पेप्सी को लॉन्च करना हो तो अमिताभ , झंडू के प्रचार के लिए अमीत जी , यहाँ तक कि प्लस पोलियो तक के जन जन तक पहुँचने के लिए अमिताभ का सहारा लिया जाता है समाजवादी पार्टी का चुनाव प्रचार उनके दम पर चलता है विदेशों में होने वाले आइफा अवार्ड तक जब अमिताभ के नाम आने साथ ही घर घर में देखे जाते है यहाँ तक कि मल्टी स्टारर फ़िल्म ओम शान्ति औम भी उनके बिना नहीं रिलीज होती है तो राज़ ठाकरे को तो मुम्बई के घर घर में ही पहुचना था किसके लिए ? अरे भाई चुनाव आने वाले है और इनको भी एकछत्र सरकार बनने का सा सपना लगता है ।

दूसरी और ये अमिताभ जी है कि इनको भी न जाने इस सरकार बनने कि क्या तलब लग गई है जो छुटाए नहीं छूटती है । जहाँ एक तरफ़ राज़ सरकार बनने के पीछे पड़े हुए है तो अमिताभ जी भी हाथ धोकर सरकार राज़ के पीछे पड़ गए है ।

अब इस उमर में क्या जरूरत है सरकार-वरकार के नवरे चक्कर में पड़ने की मेरी माने तो अब सरकार की छाया के पास भी मत जाइये इसके लिए रामू जी को पुरी तरह से नो थैंक्स कह दीजिये क्योंकि बहुत कठिन है डगर ..................................की ।

अब अमिताभ जी इंडस्ट्री में एक संवेदनशील कलाकार के रूप में स्थापित हो चुके हैं उनके ऊपर से अब वो पुराना वाला एंग्री यांग मेन का लेबल हट चुका है मगर राजनीती के साथ उनकी करीबियों का फायदा लिया है छोटे ठाकरे ने ।

वैसे कहा भ जाता है कि जब शेर सोया होता है तो हर कोई उस पर गुर्रा सकता है मगर राज साहब ये पब्लिक है जो सब कुछ जानती है कितने लोग है आपके साथ जरा गिन कर बता देना मगर एक जो आपको भी पता होना चहिये वह ये कि सच किसी से छुपाये नहीं छुपता है ।

आज देश के हर कोने में बच्चे बच्चे अमिताभ को जानते है और इसी तरह उन तक ये खबर भी पहुँच गई है कि आप क्या कर रहे है अब आप ही सोचिये क्या आप पांचवी पास से ज्यादा ......................नहीं है

बुधवार, 7 मई 2008

अमीरों के चोंचले

भाई साहब सात मई एक ऐसा दिन जिसका कई बार इन्तजार सा रहता है ।
पता नहीं क्यो मिडिल क्लास से है तो कई बार हम जैसे लोगों को लगता है कि सबकुछ आसानी से हो जाए मगर ये सबकुछ लाइट कैमरा एक्शन जैसा नही है ना भाई सात मई को हमारा भी बर्थ डे होता है ना भाई जैसे जैसे हम बड़े होते जा रहे है तो हमारे हाल भी सुधारते जा रहे है ।
भई याद नहीं आता है कि बचपन में कहाँ पर हमारा बर्थ डे मानता था भई हमारे बापूजी गाँव के रहने वाले वहां न तो मोमबत्ती मिलती थी और न ही केक मगर अब हालात बदल गए है वहां भी कुछ कुछ तो मिलने लगा है ये बात हमे शहर आकर पता चली है।
पांचवी तक पढ़ने के बाद हम नवोदय में चले गए वहां गिर्ल्स हॉस्टल में तो भूल-चुक से बर्थ डे कि क्लेपींग कि आवाज सुनाई दे देती थी मगर बोय्स हॉस्टल मैं एसे मौके बहुत कम आते था और कभी लड़को बोले तो कड्को की बस्ती मैं भी रोनक आती थी । नवोदय के बाद फ़िर वाही चार दिन कि चांदनी वाली बात लेकिन वक्त गुजरा और इस तारीख के साथ एक और रिश्ता जुड़ गया वह थे मेरे सबसे प्यारे दोस्त रतन कुमावत की की वेडिंग अनिवेर्सेरी थी ।
इसके बाद हम उदयपुर आ गए कॉलेज में पढने को मेरे साथ बड़े भाई भी थे वो एम ऐ कर रहे थे तो मैं बी ऐ . यहाँ भी हमारी दोस्ती का दायरा काफी सीमित था फ़िर आगे चलकर ये दिन एक और याद जुड़ गई मेरी मौसी की लड़की सुधा और कविता की शादी भी इसी दिन को हुयी थी इसी प्रकार जब डिप्लोमा कर रहे थे तो हमारे बैच मैं नंदू भइया और सना थी तो उन्होंने भी धीरे से सारी तैयारियां कर ली और फ़िर बताया पत्रिका में काम करने के दोरान पिछले साल इस दिन नरेश भाई और दिनेश नही माने तो उन्होंने भी जमकर मजा उठाया ।
इस साल भी हमारा तो ऐसा कोई इरादा नही था मगर जब सबको उनके बर्थ डे पर हमारी लात पड़ी हो तो कई कैसे मौका चुक सकता है और हुआ भी वही शांतनु और प्रवीन ने पुरा मजा लिया और सुबह नेताजी ने बची खुची कसार पुरी कर दी ।
खैर शाम को केक वेक सबकुछ हुआ मगर आब जब मैं इस के बारें में सोचता हूँ तो लगता है की उसका क्या मतलब है आपको सभी लोग फ़ोन करते है अपना टाइम निकल कर आपके लिए परेशान होते है और ये केक वेक सब बकवास है बात पैसे की नहीं है मगर इन सब चोंचलों की जरूरत ही क्या है ।
जब आप किसी के लिए प्रेम स्नेह और सम्मान रखते है तो ये सब महत्वहीन से प्रतीत होते है मेरा कहने का मतलब भाव बिन सब सून अब जब हम जो है सो रहें तो ही अच्छा है हमारा तो एक ही सिद्धांत है जो बचपन मैं मेरी तरह पढे तो हम सभी होंगे मगर शायद आज कहीं भूलते जा रहे है किसी ने कहाँ था कि सादा जीवन उच्च विचार फ़िर भी वक्त के साथ बदलना जरूरी है मगर इतना भी नही बदल जाए कि देशी छोरी परदेशी चाल वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है ।
सो भाई मेरे इन अमीरों के चोचलों में कुछ भी नहीं रखा है इन मुखुतों के सहारे अपना असली चेहरा छुपाया नहीं जा सकता है कभी न कभी वो सामने तो आ ही जाएगा फ़िर इन मूखौटों का बोझ क्यो तौका जाय

रविवार, 4 मई 2008

सुबह हो गई मामू


हर सुबह अपने को ही देखकर हँसता है ये शहर
भोपाल। जिन्दगी के बारे में कहा जाता है कि सफर बहुत लंबा है मेरे यारों हमेशा चलते रहिये दिल किसी से मिले या न मिले मगर मुस्कुराते रहिये वास्तव मैं जीवन में मुस्कुराने का बहुत महत्व है मगर हँसना तो इससे भी एक कदम आगे कि बात है शायद आज से दस पन्द्रह साल पहले किसी ने ये सोचा भी नही होगा कि उनके बाद आने वाले भारत के वासियों को अपने स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए कोशिश करके हँसना पड़ेगा पहले मैं जिस दुनिया मैं था वहां ये सब कृत्रिम रूप से करने कि जरूरत नही पड़ती थी बोले तो मेरा घंव जहाँ पर हमे न ही तो रात क नींद के आने का इन्तजार करना पड़ता था और न ही अपने स्वाथ्य को बनाये रखने के लिए योग प्राणायाम या लाफ्टर थेरेपी कि जरूरत होती थी कितनी बढ़िया थी वह दुनिया , मैं बात कर रहा हूँ अपने गाँव की जहाँ हर आदमी दिन भर जी जान से काम करता था कि ये साडी कसरतें कमजोर पड़ जाती थी खैर शहर मैं आ कर पता चला की लोग कुछ ऐसा भी करते है फ़िर भी पहले वाले शहर मैं मैं एक मध्यम वर्गीय कालोनी मैं रहता था इन सब से दूर मगर भोपाल का अरेरा तो अमीरी के लिए जन जाता है शायद इसी लिए मुझे यह चलन आरंभ के दिनों मैं ही दिख गया हास्य दिवस पर आप और हम भी जाने इस हसी की कुछ अन्दर की बातें इस शहर मैं 125 तरह के 'लाफ' यानी हँसाने के केन्द्र है जिनके सहर कई लोग हँसने की कोशिश करते है इनमे छिपा है तन-मन की सेहत का राज। इनके सहारे भोपाल वासी हंसा करते है और तनाव और निराशा के चलते कई लोग दुनिया छोड़ने का फैसला कर लेते हैं। इन केन्द्रों में कई सेवानिवृत्त लोगों के अलावा युवा और महिलाएं भी शामिल है अभी भोपाल में हास्य योग के ऐसे 27 केंद्र चल रहे है और इनके पंजीकृत सदस्यों की संख्या ढाई हजार है। नौकरी से अवकाश प्राप्त कर चुके अथवा बीमार लोगों के लिए ये केंद्र संजीवनी जैसे साबित होते बताये जा रहे है। आज की दौड़ भाग की जिंदगी मई आदमी पैसा कामने के लिए क्या क्या नहीं करता है उसके बाद फ़िर मन को हैं कैसा ? पूरे जीवन भर की भागदौड़ के बाद मन की शान्ति के लिए ये केन्द्र कहा तक कारगर साबित होते है ये तो नहीं कहा जा सकता है मगर इस ज़िंदगी को देखकर तो मुझे मुन्नाभाई एम बी बी एस फ़िल्म की याद आ जाती है और उस फ़िल्म का ऐ के अस्थाना बोले तो बोमन इरानी याद आ जाता है वो मामू जिस तरह से साडी थेरेपी अपनाने के बावजूद भी परेशान रहता है इसके पीछे उसका काम ही जिम्मेदार होता है उसी तरह हमारे जबरदस्ती से हंसने वालों के बुरे स्वास्थ्य और तनाव के लिए भी ये ही जिम्मेदार होते है इस लिए मामू अपने आप को बदलो जैसे उस फ़िल्म के एंड में डाक्टर अस्थाना भी बदल जाता है तो तुम क्यो नही बदल सकते हों भाई इस पुरी कहानी बोले तो फ़िल्म की आधी स्क्रिप्ट का यही मतलब है कि आप अच्छा करेंगे तो आपके साथ भी अच्छा ही होगा और बुरा करोगे तो मामू ................ऊपर वाला बहु जोरदार है जो किसी न किसी मुन्ना को जर्रोर भेजेगा तुम्हे जादू कि झप्पी देने के लिए , फ़िर रहना तैयार

शनिवार, 3 मई 2008

समझौता एक्सप्रेस पर पुस्तक

शरहद पर से सवेरे सवेरे कुछ मुलाझिम आए थे

साथ अपने अपने देश की मति की महक लाये थे

आकर खड़े थे दरवाजे पर, अन्दर बुलाया तख्त लगवाया

हालचाल पूछे और हाथ पैरों को धुलवाया

दिल की बाते करने को अपने पास बिठाया था

बातों के दरमियाँ हुक्का भी बढाया था

भूखे प्यासे जान कर तंदूर पर मक्के की रोट बनाया था

साथ खाने को मेरा यार परदेश का गूड लाया था

तभी आँख खुली तो देखा चारों और विराना था

तनहा अकेला साया हूँ कोई मेरे पास ना था

मगर ये मन जो मानने को तैयार ना था

जाकर देखा तो तंदूर बाहर से तपा था

और होठों पर गूड का स्वाद मीठा था

क्यो आख़िर ऐसा क्यो हुआ सयद

कोई सपना था हाँ सच में वोह सपना ही होगा

किसी ने बताया कल रात सरहद पर शोर था

कुछ गोलियां चली थी , इंसानियत का खून था
आपको कुछ इसी तरह की नसीरउद्दीन साहब की आवाज में जगजीत सिंह जी की एक घजल की पंक्तियाँ तो याद ही होगी ना समझोता एक्सप्रेस कभी भारत में हथियार तो कभी नकली नोटों को लाने का आरोपी मानी जाती है वाही रेल कई बार हमारे यहाँ के मुलजिमों को उनके बंधुओं से पक लेजा कर मिलाती है तो वाही ट्रेन कई बार हमारे लिये भी कई जशन के अवसर लेकर आती है इस बार यह रेल हमारे देश में पाकिस्तान के 20 सदस्यीय लेखकों का दल शुक्रवार को अटारी बार्डर के रास्ते यहां लायी है । जो 15 दिन के वीजा के साथ दिल्ली आया है। इस दल की अगुवाई कोई राजनीतिक पार्टी के नेता नहीं बल्कि पाकिस्तान के प्रसिद्ध लेखक अवेश शेख कर रहे जिन्होंने उर्दू में समझौता एक्सप्रेस नाम से एक किताब लिखी है। उर्दू में लिखी इस किताब का बाद में हिंदी अनुवाद करके प्रकाशित किया जाएगा। इस किताब में बताया गया है की दोनों देशों के बीच पुल का काम करने वाली समझौता एक्सप्रेस अहम है। समझौता एक्सप्रेस दोनों देशों की अवाम के लिए दुख के साथ-साथ सुख के क्षण भी देती है। तमाम बनते-बिगडते रिश्तों की समझौता एक्सप्रेस वह गवाह है जिसे भुलाया नहीं जा सकता। उम्मीद है की इस पुस्तक को जल्द ही हमारे यहाँ भी प्रकासीत किया जाएगा उम्मीद है की इस किताब से दोनों देशों के साहित्यप्रेमियों को लाभ होगा जो स्वस्थ सम्बन्ध बनने में सहायक साबित होगा

जे राम जी की

किसानों को मिलेंगे सस्ते मोबाइल

जनाब इस बार इन्द्र देव भले किसानों पर मेहरबान नही हुए हो तो भी ये सरकार काफी दरियादिली दिखाने मई लगी है । अरे भई लगे भी क्यो नही अगली बार वापस आना तो है न । क्योकि पांच साल विपक्ष में बैठ पाना हर किसी के बस में नहीं होता है और जैसे तैसे भी आने की उम्मीद हो तो कौन पापड़ बेलना चाहता है । सरकारें जानती है किजनता में किसान ही रबड़ी है जिसे किसी भी दिक्कत के निगला जा सकता है । पहले किसानों पर साठ करोड़ रुपयों का कर्जा माफ़ किया गया और अब सरकार को ऐसे लगता है कि हमारा किसान खेत में खड़ा होकर कंनेक्टिंग इंडिया और एयरटेल जैसे मोबाइल सेट लेकर बात करता रहेगा । इसी क्रम में गावों के किसानों के भरे पोस्टर छपकर प्रचार करने वाली कंपनियों ने नये नुस्खे निकले है ।
इस पर ये कहा जा रहा है कि देश की दूरसंचार क्रांति से अब तक अछूते पड़े देश के लाखों किसानों के लिए ये खुशखबरी है। अब उन्हें भी इस क्रांति की मुख्यधारा में शामिल होने का मौका मिलेगा। उन्हें जल्द ही एयरटेल कनेक्शन वाले सस्ते मोबाइल हैंडसेट उपलब्ध होंगे। इसका रास्ता उर्वरक क्षेत्र की कंपनी इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर्स कोआपरेटिव लिमिटेड [इफको] और दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल लिमिटेड ने मिलजुल कर तैयार किया है। इसके लिए इन दोनों कंपनियों ने इफको किसान संचार लिमिटेड नाम से संयुक्त उपक्रम गठित किया है।
इस उपक्रम से इफको अपनी सोसाइटियों के जरिए प्राथमिकता के आधार पर उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, चंडीगढ़, बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश के किसानों को सस्ते मोबाइल हैंडसेट मुहैया कराएगी। इसके साथ ही इसमें एयरटेल मोबाइल कनेक्शन भी उपलब्ध कराए जाएंगे। किसानों को अनूठे वीएसएस प्लेटफार्म के साथ भी संपर्क उपलब्ध कराया जाएगा। इसके जरिए उन्हें रोजाना मंडी मूल्यों, कृषि तकनीकों, मौसम की जानकारी, डेयरी फार्मिग, पशुपालन और उर्वरक की उपलब्धता जैसी बातों की पूरी जानकारी मिलेगी।
यही नहीं, किसानों को अपने विभिन्न सवालों के जवाब हासिल करने के लिए एक हेल्पलाइन भी मुहैया की जाएगी। इस संचार क्रांति में शामिल होने से उनकी उत्पादकता और कमाई में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।
हर योजना कि भांति इस योजना से उम्मीदे तो ढेर साडी कि जा रही है मगर क्या इसका सकारात्मक फायदा होगा ये तो कहा नही जा सकता है मगर ये बात तो तय है कि किसानों कि जेब में बचे खुचे पैसों पर हाथ फेरने का अच्छा तरीका ही लगता है।
अब देखना ये है कि ये मोबाइल सरकारी योजनाओं को जानने मे होता है या काका और काकी , भइया और भाभी एवं छोरा छोरी की प्यार तकरार में होता है?
शायद इसका जवाब भी आपके पास जरूर होगा।
एक बार और कोशिश करो अपने दिल को टटोल कर देखो अगर आप वहां होते तो क्या करते .........................
क्यों मिल गया ना जवाब ।

शुक्रवार, 2 मई 2008

सौरभ गांगुली और वॉर्न पर जुर्माने की बन्दर बाँट

बचपन में मैंने किसी क्लास में एक कहानी पढी थी की एक बार एक जंगल में दो बिल्लियों में कसती मी से चुराई गई रोटी को लेकर झगडा हो जाता है तो वे अपने झगडे को सुलझाने के लिए जंगल के किसी बुध्धिमान बन्दर को बुलाती है बन्दर एक तराजू मांगता है और दोनों की रोटियों को एक एक तरफ़ के पलडे में रख देता है ओर जिसके हिस्से में ज्यादा रोटी होती है तोड़ तोड़ कर खाता जाता है ये बंटवारा तब तक चलता रहता है जब तक दोनों बिल्लियों की रोटी ख़त्म नही हो जाती है अब आप ये कहेंगे की मैं ये कहानी आपको बोले तो बुद्धिजीवी लोगों को क्यों बता रहा हूँ तो जनाब इसकी भी वजह है पिछले दिनों आई पी एल सीरीज़ का चीयर लीदेर्स पर पॉलिटिकल लीडर्स का बखेड़ा बंद होने कगार पर ही था कि मुक्के और झापड़ मार प्रदेश और ग्रेट खली तथा नवजोत के टीम इंडिया मी चेले मने जाने वाले भज्जी और श्रीसंत का मामला ठंडा ही हुआ था कि दादा के नाम से जाने जाने वाले सौरभ भाई ने शेन वार्न को धमका दिया . होना क्या था मामला मीडिया ने दिखाया तो रेफरी ने सबकी वाट लगा डाली . उसने किसी को भी नही छोडा अगर उनका बस चलता तो स्टेडियम के साथ साथ घर मैं बैठ कर टीवी देखने वालों तक पर कोई न कोई कानून लगा कर फाईन लगा देते. उनका कम बन्दर मामा के जैसा ही लगता है कोलकाता नाइट राइडर्स के कप्तान सौरभ गांगुली को अपने व्यवहार की क़ीमत चुकानी पड़ी है. मैच रेफ़री इंजीनियर साहब ने नई इंजिनीरिंग का गणीत लगते हुए उन पर मैच फ़ीस का 10 फ़ीसदी जुर्माना लगाया है. उस समय गांगुली 49 रन पर खेल रहे थे और पठान के गेंद पर उनके बल्ले से उछले कैच को जयपुर राजस्थान रॉयल्स के लिए खेल रहे दक्षिण अफ्रीकी कप्तान ग्रैम स्मिथ ने लपका. लेकिन गांगुली ने अंपायर प्रताप कुमार को ये फ़ैसला तीसरे अंपायर के पास भेजने को कहा, जो राजस्थान रॉयल्स के कप्तान शेन वॉर्न को बुरा लगा था इसी के साथ राजस्थान रॉयल्स के कप्तान शेन वॉर्न पर भी मैच फ़ीस का 10 फ़ीसदी जुर्माना लगाया गया है. क्योंकि वे मैदान पर शेन वॉर्न ने भी अपना ग़ुस्सा दिखाया था और मैच के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में भी जमकर बोले गांगुली के साथ साथ स्पोर्ट्स भावना के चक्कर में अम्पायर को भी नही बख्शा गया उनपर गांगुली के कहने पर मामला तीसरे अंपायर को भेजने के कारण अंपायर प्रताप कुमार को भी एक मैच के लिए निलंबित कर दिया गया है. मैच रेफ़री के मुताबिक़ प्रताप कुमार को ये मामला तीसरे अंपायर को भेजने से पहले मैदान पर मौजूद दूसरे अंपायर से विचार-विमर्श करना चाहिए था. तो था न ये सब बिसिया क्रिकेट का कमाल और उसपर रेफरी महोदय का काम बन्दर कि बाँट से कम नही कहा जा सकता है

भविष्यवानियों का यहाँ भी कुछ करों

बच्चा, तेरे भाग्य में आज पिज्जा हट का पिज्जा लिखा है .............................
.................तेरे भाग्य पर शनि की छाया है ,
राहू तेरे पीछे पड़ा है। गुरु-मंगल झगड़ रहे है,
बुध अशांत लगता है और केतु भी शुक्र के घर मे जा बैठा है।.............साथ ही
ना जाने कैसी-कैसी भविष्यवाणी करने वालों की अब खैर नहीं।
अरे जनाब हिंदुस्तान में तो यह धंधा युग युगान्तर तक जारी रहेगा। जब तक हिंदुस्तान में हम है किसकी मझाल है कि धरम-अधर्म , पाप और पुन्य के साथ-साथ अंधविश्वासों का काम चलता रहेगा। हमारे देश में नेता , वकील , डाक्टर , पत्रकार , चपरासी, बाबु और ढोंगियों का धंधा हमेशा निरंतर चलता रहेगा। भाई क्या करें गन्दा है पर धंधा है क्या करें पापी पेट के लिए क्या क्या नही करना पड़ता है।
अंग्रेज भी तो अपने पेट के साथ साथ मन की पैसे की भूख को मिटने के लिए कई देशों को अपना गुलाम बना दिया। उनमे हमारा देश भी शामिल था उसी की बदौलत हमें कई साल खाक छाननी पड़ी। आजाद होने के बाद हमारे यहाँ के लोगों की महत्वाकांक्षा बढ़ी तो लोगों ने सात समंदर पर कर लिए चले गए।
मगर ये अंग्रेज भी बड़े बदमाश है कभी हमारे यहाँ के डाक्टर्स को रोकने के प्रयास करते है तो अब हमारे ज्योतिषियों के धंधे को लगाम लगाने का प्रयास किया।
ब्रिटेन ने नए उपभोक्ता संरक्षण के तहत कोई भी जजमान किसी भी ज्योतिष और भविष्यवाणी करने वाले को कोर्ट लेजा सकता है। इस वजह से हमारा यूरोपीय महाद्वीप मैं फैला एशियाई देशों का यह टिन सौ बीस करोड़ का बिजनेस चौपट हो जाएगा। जैसा कहा जा रहा है यह कानून छब्बीस मई से लागु हो जाएगा।
दूसरो के भविष्य को देखने वाले इन महानुभावों को न जाने कब अपने भविष्य पर लगा प्रश्नचिंह नहीं दिखा क्या ?माना कि इस ज़माने में हम पंडिताई के पड्पंच में नहीं पड़ना चाहते है मगर एक बात तो सही है कि उन विकसित देशों में भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जिनकी तंत्र मंत्र में गहरी श्रद्धा है। तभी तो इतने दिनों हमारा यहाँ के टेलेंट को वहां पर रोजगार मिल रहा था। भेड़ों की कतार में जहाँ हम उनकी संस्कृति पर टूट पड़ रहे है वहीं वे भी हमारी अंध परम्पराओं को अपनाते जा रहे है। वहां भी एक अंधी दौड़ भी है जो कहाँ जा रही है उनको भी पता नहीं है।
इस पर भाई साहब मेरा ये मानना है कि जब हम हर मामले में उनके पीछे दौडे चले जाते है तो फ़िर ऐसे कानूनों को क्यों नजर अंदाज कर देते है क्यो हमारे यहाँ भी कोई ऐसा कानून नही बनता है जिसकी अगली सुबह से हमारे देश में कोई भी अन्धविश्वास के नाम पर ठगा नहीं जाए। इस मामले में समझ में नहीं आता कि कौन आगे आए क्योंकि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया ख़ुद नाग-नागिन दिखाने में लगा हुआ है ...................
ठीक हैं भई जो चल रहा है चलने दो भगवान हम सबका भला करेगा ।

अब सोनी का साढ़े तेरह मेघा पिक्सेल का कैमरा


इलेक्ट्रानिक्स उत्पादों के मामले में विशेष स्थान रखने वाली कम्पनी सोनी अब आगामी सोलह मई को अपनी सोनी सायबर शोट सीरीज़ का अगले प्रोडक्ट के रूप में डीएस सी डब्ल्यू तीन सौ के नाम से विश्व का पहले तेरह पॉइंट सिक्स मेघापिक्सेल का कैमरा जरी करने जा रहा है ।

अरुण भटनागर बनें प्रसार भारती के नए अध्यक्ष

भारतीय प्रसासनिक सेवा के अधिकारी श्री अरुण भटनागर, अब प्रसार भारती के नए अध्यक्ष पद पर नियुक्त होंगें। वे श्री एम वी कामथ का स्थान लेंगें।

लालू पार्षद जी के बालों पर वारी-वारी


जनाब अब बात हमारे देश की आधी कॉमेडी दुनिया के पसंदीदा आइडल के रूप स्थापित हस्ती और रेल मंत्री श्री लालू प्रसाद जी अपने कांडों, बच्चों, गायों और प्रबंध के लेक्चर के लिए तो आई आई एम अहमदाबाद से लेकर देश विदेश के सभी संस्थानों में प्रशिद्ध है मगर इस बार उनकी चर्चा का विषय उनका कोई लेक्चर या उनकी पार्टी के किसी सदस्य की हाथापाई नहीं बल्कि उनके बाल है पिछले दिनों हमारे देश के जाने माने हेयर स्पेस्लिस्ट जावेद हबीब साहब ने लालू जी के बालों को लेकर तारीफों के पुल बाँध दिए है उन्होंने कहा की किसी भी व्यक्तित्व को बेहतरीन बनाने में बालों का बड़ा योगदान होता है वे तीस अप्रैल के आस पास हेयर स्टाइल डे के अवसर पर बात कर रहे थे इससे जनाब एक बात तो हमें भी समाज में आ गई कि पुराने समय मे राजा महाराजा राज दरबार के नापितों पर इतने मेहरबान क्यों होते थे वक्त के साथ बदलने वालों में इनका भी दबा योगदान होता था आज वक्त बदला है मगर राजसी अंदाज तो वाही के वही है पहले जो काम राजा करते थे वह काम अब हमारे नेता कर रहे है बोले तो मौज मस्ती और ऐश आज घर घर में ब्यूटी एक्सपर्ट और हेयर स्पेस्लिस्ट है तो हबीब साहब जैसे इस विधा के प्रवर्तक लोगों को जनता भूल चुकी है अब उनका काम महज कही इनोग्रेसन और रिबन काटने तक ही सीमित रह गया है खैर अब यह काम भी उनसे छिना जा रहा है इस स्थिति में अपने को मीडिया और जनमानस के बीच बनाये रखने के लिये कुछ न कुछ तो करना ही पड़ता है तो हबीब साहब यह भी करने लगें है जिससे लालूजी के बालों को कुछ फायदा हो चाहे ना हो हबीब साहब लोगों में इस स्टाइल के कारन माह भर तक जाने जाते रहेंगें और लालूजी के करीबी भी बने रहेंगें वक्त ने साथ दिया तो चुनाव में टिकिट की भी व्यवस्था हो सकती है

गुरुवार, 1 मई 2008

अब मैथिली-भोजपुरी भाषा के एफएम भी गुन्जेंगे

मेरे सभी यू पी के भाइयों के लिए एक गुड न्यूज़ है कि जल्द अब उनको उनकी भाषा के प्रसारण सुने को मिलेंगे । दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा कि मैथिली-भोजपुरी भाषा के विकास और प्रसार प्रचार के लिए सरकार सामुदायिक एफएम रेडियो शुरु करने पर विचार करेगी।
मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में नई अकादमी के सुचारु कामकाज के लिए नये भवन का निर्माण किए जाने का निर्णय लिया गया। इस नवनिर्मित अकादमी भवन में मैथिली-भोजपुरी के अलावा हिंदी, उर्दू, पंजाबी व सिंधी अकादमियों को भी एक जगह स्थानांतरित किया जाएगा। इस नये भवन में अकादमियों के कार्यालय, सभागार, पुस्तकालय, गोष्ठी कक्ष, अतिथि गृह तथा मीडिया केन्द्र भी होगा।
श्रीमती दीक्षित ने अकादमी के सफल संचालन के लिए उप समितियों का गठन करने और आवश्यक वित्तीय प्रवधान को भी मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि अकादमी के व्यापक कार्यक्रमों और शोध कार्य में सहयोग की योजनाओं के लिए सरकार धन की कमी नहीं आने देगी। बैठक में अकादमी के उपाध्यक्ष अनिल मिश्रा और सचिव नानकचंद भी उपस्थित थे।

देहरादून की घाटियों में साहित्य का महासंगम





भोपाल।
मेरे उन सभी दोस्तों की यादों से देहरादून का नाम जरा भी धुंधला नही हुआ होगा जो , मेरे साथ इस साल के आरंभ में विज्ञान संचार पर हमारे साथ देहरादून चले थे। उसी उत्तरांचल की राजधानी देहरादून के हरेभरे पहाडों और वहां की घाटियों में आगामी शुक्रवार से दो दिन तक पग-पग पर साहित्य की चमक बनी रहेगी । इस संगोष्ठी में राष्ट्रीय स्तर के कई लेखकों के साथ-साथ कई स्थानीय लेखक भी शिरकत करेंगे। इस पर्वतीय लेखन समारोह का आयोजन पेंगुइन इंडिया ने किया है। अंग्रेजी के मशहूर लेखक रस्किन बांड की रचनाओं के हिंदी अनुवाद के पाठ के अलावा विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एवं अंग्रेजी के लेखक नवतेज शर्मा के उपन्यास के हिंदी अनुवाद हम यूं आसन ना थे का लोकार्पण प्रदेश के मुख्य सचिव एस के दास करेंगे, वही जिन्होंने हमारी संचार संगोष्ठी का शुभारम्भ किया था ।
प्रसिद्ध कथाकार विद्यासागर नौटियाल के साथ दून स्कूल के हिंदी विभाग के अध्यक्ष मोहम्मद हम्माद फारूकी संवाद करेंगे, जबकि दिल्ली के लेखक बुद्धिजीवी पुष्पेश पंत अंग्रेजी लेखिका इरा पांडे के साथ संवाद करेंगे। इस अवसर पर इरा पांडे अपनी दिवंगत मां एवं हिंदी की मशहूर लेखिका शिवानी का संस्मरण सुनाएंगी। दिल्ली के प्रसिद्ध कथाकार हिमांशु जोशी के साथ स्थानीय लेखक सुभाष पंत हरिदत्त भट्ट शैलेश एवं रमेश पोखरियाल निशंक संवाद करेंगे, जो सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं।

गिल साहब का भविष्यफल पंडित मुर्खानंद की जुबानी

भोपाल ,
पिछले कुछ दोनों से मन बड़ा परेशान है, जेब खाली है उपर से कहर बरसता ये मौसम तबियत भी सही नही की जा सकती है। भाई इन सब झंझटों की मर सहते सहते हम तो परेशान हो गए । फ़िर की था हम भी इन्सान ही रहे और इस मसले को हमारे दोस्तों के सभा मैं रखा गया तो हमारे भला नही चाहने वालों ने तो अनदेखा कर दिया कुछ हितेशियों ने गौर फ़रमाया और काफी वाद विवाद और मंत्रणा के बाद हमारे सामने काफी विकल्प रखे । किसी ने कहा वैसाख का महीना आ रहा है कुछ पुण्य करो पंडितों को भोजन कराओ , किसी ने कहा गायों को चारा डालो तो किसी ने यह मत दिया की नागे पाँव देव दर्शन को जाओ। खेर सब के सुझाओं के बाद भी मुझे किसी के प्रस्ताव में ज्यादा दम नही लगा तभी हमारे प्रिया नेताजी जिनको पंडिताई का बड़ा शौक है। पहले जब वो राजनीती नही करते थे तो पार्ट टाइम में यज्ञ अनुष्ठान करवाया करते थे। वैसे से तो आज भी उन्होंने कोई कसम नही खाई है अब भी वी बड़ा जजमान देखें तो मुह देखकर तिलक निकलने चले जाते है। भाई वो बोले तो बड़ी देर से मगर लाख टेक की बात बके। के भाई जैसा मेरा मानना है कि इन दिनों गृह दशा काफी प्रतिकूल चल रही है। और मेरी बात को सुनकर भी उन्हें मुझ पर ग्रहों का प्रकोप नजर आया।
नेताजी की भावनाओ को मैं भी छुटभैया पत्रकार ठहरा ,समझने मे तनिक भी देर नही लगी मैंने कहा थिक है नेताजी आपके बताये महाराज से जाकर मई जर्रोर मिलूंगा। जिन महाराज की दया से आप हर बार हर कर भी चुनाव जीत जाते है भला उनके पास मेरी समस्या का हल नही हो ऐसा तो हो ही नही सकता है। नेताजी को देख कर मुजे भी आस बंधी की जो राज्य सरकार मैं रहते हुए हर रोज केन्द्र से बजट नही मिलने का रोना रोते रहते है उन्ही नेताजी के पास इलेक्सन के दिनों मे नोटों के भंडार लग जाते है तो को दुह्ख मोर गरीब को जो नही जाट तोहरे नाम से टारो.....भई मेरे मन की श्रद्धा मुझे गुरूजी के पास ले गई। नेताजी ने चुनाव की तर्ज पर यहाँ भी चुनाओं से पहले हमारे लिए गाड़ी लगा दी। रास्ते में नेताजी के कार्यकर्ता ने मुझसे कहा की गुरु के पास खली हाथ जाना अच्छा नही होता। मेरा भेजा खनका मैंने कहा बे वक्त इतना बुरा चल रहा है जेब मे फूटी कोडी नही है क्या ले जाऊँ । उसने हालत की नजाकत को देखते हुए कहा आप कम से कम और कुछ नही तो कम से कम एक दो झूठी मुठी कवरेज स्टोरी का आईडिया तो ले जा सकते है नेताजी के आश्रम का फलां प्रोपर्टी डीलर से लफडा चल रहा है।जनाब फ़िर क्या था हमारा भेजा भी चला और हमने दो चार चांटी मार न्यूज़ बड़ा डाली। तब तक आ गया बाबाजी का आश्रामगेट पर दो चार मुस्टंडे थे नेत्जी के विश्वास पात्र के राम राम के बाद हमे अंदर जाने दिया। भई जरा भी चलना नही पड़ा और हम गुरूजी के आश्राम के बहर जा पहुंचे। चेला बोला आप यहीं बैठे हम गुरूजी को बुला लाते है। पांच दस मिनिट के इंतजार के बाद नेताजी के खास के साथ गुरूजी ने अपने चेलों के साथ दर्शन दिए। गुरूजी आसन पर स्थान लेने के बाद बोले बच्चा तुम्हारा मन काफी परेशां है मगर इब्मे तुम्हारा कोई दोष नही है वक्त की मार से भला कौन बचा है भगवन राम से लगाकर कृष्ण और बड़े बड़े नही बच सके है तो हमारी क्या बिसात है। आने वाला वक्त किसी के लिए भी अच्छा नही कहा जा सकता है। इस साल के आरंभ मे गुरु के पास मंगल आने से सब कुछ उल्टा सीधा हो रहा है। अब हमारे पड़ोसी देश के हिटलर मुशर्रफ़ साहब को ही देख लीजिये किसे मालूम था के उनकी कुर्सी नीचे से सरक जायेगी वर्दी भी उनका साथ छोड़ देगी और कौन जानता था के बेनजीर सबके ऊपर चली जाएँगी।हमने कहा महाराज जरा हमरे बारे मे भी तो कुछ बताएं वो बोले कई लोगों को चुना लगाया है तुमने इस पैसे मे आकर , अब जो हो रहा है तुम्हारी ही करनी का फल है भाई। इसमे कौन क्या कर सकता है। अब अपने गिल साहब को ही ले लीजिये भाई उन्होंने पंजाब के मामले मे हमारी मदद क्या कर दी। हाकी को अपने घर मे काम करने वाली दासी ही समझ लिया जैसे वह उनको दहेज़ मे मिली हों। अरे भाई इंडिया मे जब दहेज़ को लेकर कोई कानून बन चुका है तो फ़िर इनका तो यह काम पुरी तरह से गैर कानूनी ही है ना। भाई बात वाही की वाही है जैसे मुशर्रफ़ साहब ने पाकिस्तान के संविधान के साथ किसी को नही माना गिल साहब के भी वाही हाल रहे। उन्होंने भी तो किसी कानून को नही माना जिसे चाहा बुलाया जिसे चाहा निकला जैसे इंडियन हाकी टीम नही उनकी खाला का घर हो। ये तुम्हारी मेगजीन वाले न जाने कैसे कैसे सर्वे करते है कभी सेक्स तो कभी सबसे आमिर आदमी तो कभी सबसे सुंदर औरत का , एक बार इनको इस सदी के सबसे बड़े तानाशाह की रंकिंग करायी जाए तो पहले नम्बर पर मुशर्रफ़ और दुसरे नंबर पर इंडिया से गिल साहब ही आयेगे।क्या कहूँ गुरूजी का यह ओजपूर्ण उद्बोधन सुनकर मेरा मन तृप्त हो गया। मुझे लगा गुरूजी ग़लत जगह पर अपने समय जाया कर रहे है उनको इससे बढ़िया लुट तो वो राजनीती मे कर सकते है। मैं अपने गम भी भूल गया। मैंने उठ कर कहा गुरूजी मुझे सत्य का ज्ञान हो गया अब मुझे कोई तकलीफ नही है। हमे आघ्या दे कुछ टाइम पास प्रेस मे भी करना होगा वरना एक दिन का पैसा और काट लिया जाएगा। बेटा पैसे का टेंशन तुम मत लो उस ऊपर वाले ने पेट दिया है तो खाना भी वही देगा। उन्होंने अपनी झोली मे हाथ डाला एक मुठ्ठी भरी और नेताजी के चेले को इशारा किया उनसे झट से अंगोछा फैला दिया और उसी स्पीड से समेट लिया इससे पहले की मई कुछ समझता। और बोले बेटा आजकल के मालिक बड़े सयाने हो गए है मजूरी मे भी चिक चिक करते है। तेरे मन की व्यथा को मे समझता हूँ बस तू भी मेरे मन का दर्द समझ जा। दोनों मिलकर हमारे दुखों को कोसों दूर भगा देंगे की वो पास भी न आ सके।तू मेरे दर्द को जानना चाहे तो नेता का छोरा तुझे बता देगा।खैर हम निकल पड़े रस्ते मे नेता के चेले ने बताया ये गुरूजी उसी दर्द की बात कर रहे थे जिस पर गत माह तुम्हारी एक्सक्लूसिव लगी थी ,ये जगह मुन्सिपलिटी वाले उजाड़ , कच्ची बस्ती वाले अपनी , प्रोपर्टी डीलर अपने नाम बताते है जिस पर इन दिनों गुरूजी का कब्जा है। गुरूजी कई सालों से जब से जेल से वापस आए है इज्जत से ज्ञानी के रूप मे यही निवास कर रहे है। तुम्हारे अख़बार मे हर फेस्टिवल पर एड भी देते थे मगर जब से तुमने ये नया प्रेस जों किया है गरीबों के लिए ना जाने क्या लिखते हो। ये कह कर उसने गुरूजी वाली पोटली खोली जिसे देख हम दोनों की आँखों मे चमक आ गई। उनमे एक भी नोट सौ से नीच का नही था नेताजी के चेले के दो पांच सौ की चार पत्तियां उठा कर कहा ये कर टिप्स बाकि गुरूजी की तुमसे मुह दिखाई की सौगात।आगे से उस जगह से बारे मे कोई अस्सिंमेंट मत करना जब भी जेब खली हो बता देनागुरूजी बड़े दयालु और बड़े दिल वाले है ........................................... ।