सोमवार, 25 अगस्त 2008

चाय वाले की तो दादी मर गई...............


अरे भाई मैं किसी का मजाक कहाँ बना रहा हूँ मैं तो सच बता रहा हूँ ।


जब से भोपाल मैं आकर बसा हूँ कुछ गिने चुने स्टालों पर ही चाय पीता


हूँ उनमे से ही एक है हमारे ख़ास चाय वाले जिनकी चाय की दूकान कह दो या थडी कह दो या फ़िर जो जी मैं आए सो कह दो वह भोपाल के प्राइम लोकेशन पर है। शहर के आई एस ओ मान्यता प्राप्त रेलवे स्टेसन हबीबगंज के ठीक सामने के चंद दुकानों मैं से ख़ास है हमारे खास की होटल। सर्दियों में जब अक्सर देर से घर जन होता था या फ़िर रात को घूमने का मन करता तो यहाँ की चुस्कियों से भला कहाँ चूका जाता था. कभी कभार हमारे एक सीनियर सर थे उनको भी चाय की तलब लगती थी या फ़िर जब उन्हें अपनी बड़े होने के कर्तव्य का लिहाज़ आ जाता था तो इस क़र्ज़ को चुकाने के लिए हमें चाय पिलाने ले जाते थे.



ये तो थी तब की बात जब हम छोटे बोले तो बच्चे नहीं जूनियर हुआ करते थे जिसे बाद मैं न किसी ने याद दिलाया,


और न ही हमें भी याद आया ........................


और इसके एक अरसे बाद कल शाम को हम फ़िर उसी सड़क से गुजर रहे थे कि रूक गए मन किया चलो फ़िर वह बचपन वाली चाय पी जाय। गाड़ी रोकी और होटल पर पहुचे तो होटल वाला एक पल तक देखता रहा गया हम भी उसकी शक्ल में कुछ ढूँढने लगे चंद ही पल बाद उन्होने कहा कि अरे आप यहाँ ? कैसे आना हुआ ?


हमने भी कह दिया बस यूँ ही आ गए है. हमारे मन मैं मौजूद प्रश्न को भी हमने दाग दिया कि आपके सिर को क्या हुआ ? उसने बड़ी गम्भिरता के साथ जवाब दिया कि दादीजी नहीं रही है।



खेर मैं उनसे उम्र मैं काफी छोटा और अश्वासन के लिए मेरे पास कुछ नहीं था। मगर इसके चंद समय पहले मेरे मन में था कि कहीं एसा तो नहीं कि ये भी आमिर खान से प्रभावित हो गए हो जैसा इन दिनो कई युवा लगते है. जनाब क्या कहे सर मुंडवा के अपने आप को गज़नी समझने लगते है.



उनको पता नहीं आमिर की तरह हर कोई कामयाब नहीं होता, उनके भी क्या कहने जब फ़ैसला पब्लिक को करना हो तो कुछ भी हो सकता है जैसा मंगल पाण्डेय के साथ हुआ था



1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

सर मुंड़वाने का फैशन भी खूब है..पता ही नहीं लगता गमी हुई है या शौकिया.