जी हा जनाब काया कह रहे है किसी और से मत कहना वरना पागल समझेगा?
लो अब कारन भी पूछते है आप तो ठीक है हम ही बता देते है हम कह रहे है कि बक बक करना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है . यह अधिकार इतना पुराना है कि इसके बारे में अब में क्या कहू बताना तो नहीं चाहिए लेकीन बता देते है कि हम सभी को ये अधिकार अपनी माता के पलने में ही मिल जाता है . बचपन में बच्चा सोता सोता आआआना ऊऊ करता है तो माता पिता कितना खुश होते है कि हमारा बच्चा बोलना सिख रहा है मगर उनको क्या पता है कि वह क्या कहना चाह रहा है .
खेर उसके बाद कुछ बड़ा होने पर भी दोस्तों के साथ कभी अलग अपनी इस बक बक को छुट ही नहीं पाती है स्कुल में टीचर का गुस्सा दुसरे बच्चों पर तो घर में माँ बाप का गुस्सा छोटे बड़े बहिनों पर निकलता ही रहता है .
ऐसी बात में है कि कई खामोशी पसंद बच्चे भी होते है जो चुप चाप अपना काम कर लेते है मगर एक बात उनके साथ भी होती है कि उन्हें भी जब भी मौका मिलता है अपनी कुंठाओं को निकलने में बाज नहीं आते है बचपने के बाद धीरे धीरे लोग बड़े हो जाते है मगर उनमे से कई इसे भी होते है बड़े होकर भी बड़े नहीं हो पाते है उनके बड़े होने पर भी ये बच्चों वाली आदत छूट नहीं पाती है. और कुछ लोगों में तो ये कला समय के साथ साथ बाद ही जाती है और वे इतनी बक बक करते है कि लोग उन्हें नेता मानने लग जाते है.
तो भइया ऐसे लोग नेता बनने के बाद भी कहाँ इस आदत को छोड़ पाते है और जैसे ही इस आग में चुनावी घी पड़ जाता है तो बेचारे आम जनता के जलने का वक्त शुरू हो जाता है. पुरे पॉँच साल तक जनता इनके पीछे दौड़ती है बाकि के कुछ दिन ये भी जनता के दरवाजे चले जाते है मगर वहां भी बक बक से नहीं चूकते है जनता बेचरी चाहती है कि जैसे भी हो इस बक बक से साथ छूटे और इस ऊहापोह की दशा में वोट चाहो तो ले लो भेजा तो मत खाओ की मान्यता पर वोट मिल जाते है मगर यहाँ एक बात और बता देना जरूरी है कि इन दिनों बक बक का दौर चल रहा है एक तरफ़ जम्मू कु बक बक दूसरी तरफ़ उडीसा कि तो तीसरी तरफ़ गोरखा लैण्ड की बक बक और अब बिहार और सिंगुर भी उसमे शामिल हो गया है
जाते जाते एक बात और बता दे इन दिनों एम पी और राजस्थान में भी बक बक के बड़े अवसर उपलब्ध है दोनों राज्यों में चुनाव है यहाँ शिवराज सिंह आशीवाद के बहने बक बक करने निकले है तो राजस्थान में वसुंधरा अपने बचे काम को समेटने में लगी है तो वहां बक बक का जिम्मा विपक्ष के सी पी जोशी ने उठाया है उनको मुकाबले की टक्कर देने के बसपा ने तो कोई भारी काम नहीं किया मगर राम विलाश पासवान जी को क्या हो गया कि उनको बिहार की बाढ़ में राजस्थान की याद आ गई और वे टपक से पुष्कर आ पहुचे . हाँ जनाब वहीं पुष्कर जहाँ देश का सबसे बड़ा ब्रम्हा मन्दिर है और पवित्र सरोवर हैं जहाँ पुरखों का पिंडदान भी क्या जाता है ताकि उनकी आत्मा को शान्ति मिल सके.
पुष्कर में आकर भी कई लोगों को शान्ति नहीं मिला पाती है और उनकी जनम जात वाली बक बक कि आदत नहीं छूट पाती है अब पासवान साहब यहाँ आए तो थे हरी बहजन को और ओटन लगे कपास साफ कहे तो चोर की दाढ़ी में तिनका नियत का खोट जल्दी पकड़ा जाता है इसमे भी बक बक का बड़ा योगदान रहा जनाब यहाँ आकर उस राज्य में बांग्लादेशियों की वकालत कर गए है जो इनकी वजह से सबसे ज्यादा परशानी में है जहां देश के सबसे ज्याद रिफ्यूजी है जनाब ने सिमी पर प्रतिबन्ध के खिलाफ बजरंग दल पर रोक की मांग की पिछडे सवर्णों को आरक्षण से लगाकर परमाणु करार सब पर जम कर बक बक की यहाँ तक की मायावती पर दलितों को ठगने का आरोप लगाया और बिहार बाढ़ पर नीतिश को नाकाम बताया. ऐसे कई अनेक मुद्दों पर लामा कर बक बक की भाई कहना यही है कि
चुप रहे तो अच्छा है सो मौन का भी लाभ है वरना कर बार जीभ तो गुस्ताखी कर जाती है और सज़ा बेचारे सर को भुगतनी पड़ती है
आख़िर भारत में रहने का यही तो फायदा है कि बक बक पर पाबन्दी नहीं है यहाँ वरना तो हम कब के मर गए होते
मंगलवार, 2 सितंबर 2008
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