मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

जूता और जान




नेतागिरी का नाम आते ही ओके साथ एक और शब्द जुदा चला आता है और वह है जूता।
जी हाँ वाही जूता जो कभी किसी के पैरों की शान होता है तो कई लोगों की जान पर भी बन आता है।
इस बार जूते का जिक्र इस कारण से आया है इरान मैं एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान एक पत्रकार ने अमेरिका के रास्त्रपति बुश को जूता दे मारा। कारण ये बताया जा रहा था की वह इस बात से परेशानथा की उस आदमी के कारण उसे अपहरण करके बंदी बना दिया गया था यह वाकिया तब हुआ जब वे साझा बयान के लिए प्रेस कांफ्रेंस मैं बोल रहे थे ।
अब कुछ लोगों का यह कहना है की किसी भी देश के प्रतिनिधि के साथ एसा नहीं किया जन चाहिए तो जनाब सुन लीजिये वह देश भारत नहीं था जिसके मंत्री की कपडों की भी तलाशी की जे या फ़िर रस्त्रपिता की समाधी पर बुश अपना कुत्ता ले जा सके और हम कुछ भी न कर सके।
वहां उस पत्रकार का मानना था कि बुश हजारों लोगों कि मौत का जिम्मेदार है और उसने जूता मार दिया , अब भारत मैं ढूँढने निकलोगे तो कदम कदम पर बुश मिलेंगे जो गुनाहगार है मगर हम कुछ करते कहाँ है सिवाय यह कहने के "इनको तो जूता मारना चाहिए '

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