मैं
बालक हूँ ।
पानी जैसा
रुकना मेरी आदत कब था ।
मुश्किलों के भंवर में
बस चुप रहा जब वक्त न था ।
मैं अस्थिर, मैं परिवर्तनशील,
मैं पानी-सा गतिमान हूँ ।
नीचे बहता देख न चौंको,
कल बादल बन बरसुंगा ।
खामोशी मेरा काम नही,
और मौन का कोई नाम नहीं
मेरी आदत में तो शामिल है ,
बस बहते ही जाना,
गंभीरता और
स्थिरता का कोई काम नहीं ।
जो गंभीर बनें सो बनें रहे,
हम तो हर दम ऐसे ही थे ।
और ऐसे ही रहेंगे ।
-शिव चरण
शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008
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