उडीसा के सुंदरगढ़ जिले से राउरकेला में अभी भगवान हनुमान की एक भव्य प्रतिमा बनाई जा रही है इस प्रतिमा का निर्माण हरिद्वार में बनी भगवान् शिव की प्रतिमा के सामान ही भव्य होगा जिसे सुंदर वन में स्थापित किया जायगा जहाँ पर बारह एकड़ में उद्यान का निर्माण कराया जा रहा है इसकी उचाइ चोहत्तर फीट की होगी.
भाई इस पर हमें रामायण की वह चौपाई याद आ गई जिसमे कहा गया है कि "जस जस सूरमा बदन बढ़ावा तासु दुगुन कपि रूप दिखावा" हमें तो भाई आज के ये हाल भी बिलकूल वैसे ही लग रहे है जैसे रामायण के लंका के युद्ध में थे. भाई आज भी तो जहाँ कई लोगों की संकीर्ण मानसिकता लोकतंत्र को चलने का प्रयास करते है तो उनसे भी बड़े रूप में हमारा भाईचारा सामने आता है.
मगर क्यो एक दूसरे के खिलाफ हथियार उठाने कि नौबत आती है? आखिर क्यो कोई ज्यादती इस हद तक पहुँच जाती है जहाँ से कोई भी व्यक्ति सिर्फ़ एक ही राह पर जाता है और वो राह होती है हथियार उठाने की. आज हमारे सामने आज़ादी से लगाकर अज तक के कई उदहारण है जहाँ हमारे देश कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के बाद भी एक दी नहीं बड़े जन समूहों को अपने हक़ की जंग लड़ने के लिए हथियारों का सहारा लेना पड़ा है.
इसके बावजूद जो लोग इस दशा का फायदा बखूबी उठा लेते है वे लोग इतने शातिर होते है कि वे परेशानियों से ट्रस्ट और हमारी व्यवस्था से परेशान जनता से वह सबकुछ करा लेते है जो वो चाहते है और जब उनका स्वत पूरा हो जाए तो उन्हें अपने स्वाथों के हवं में स्वाहा करने से नहीं चुकते है.
एसा करने में कई लोग बड़े महीर थे जो पहले देश की जनता का प्रयोग करके उन्हें देश की रक्षा करने वाली बंदूकों के सामने खड़ा कर देते है इस काम को करने में मज़हबों का जम कर सहारा लिया जाता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति धरम और परिवार के नाम पर ही सबसे ज्यादा हिंसक बन जाता है यदि उसे किसी से खतरा हो तो वो धरम युद्ध से लगाकर जेहाद तक कर लेता है.
इसी आधार पर पहले सिक्खों को खालिस्तान के नाम पर बहलाया गया इसी क्रम में कुछ नए प्रयोग शिवसेना ने महारास्त्र में, भाजपा ने राम मन्दिर, गुजरात के गोधरा के अलावा कई मामले में मुस्लिमो ने भी किया है. गुजरात की हिंदू प्रयोगशाला के अस्तित्व को हम मानते है तो कश्मीर में पिछले दो दशको से चलने वाले कोहराम को भी नकारा नहीं जा सकता है. वहीं समय समय पर ईसाई मिशनरियों के पवित्र उद्देश्य के दूसरे पक्ष धर्मान्तरण से इंकार नहीं किया जा सकता है. वहीं सिमी के शक के बाद कानपूर के धमाके भी हमने सुने है.
कहना बस यही है कि भाई हिंद देश के निवासी सभी जन एक है तो फ़िर क्यो हम समय समय पर बहक जाते है आखिर क्या हो जाता है कि हम हैवानियत पर उतर आते है और सबकुछ भूल जाते है बस हम सभी चाहे जिस किसी भी धर्म या मज़हब के हो अपने दायरों को समझाना चाहिए और दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं मरने चाहिए क्यो कि उनके भी हाथ है और पत्थर मरना तो मानव ने आदि काल से ही सिख लिया है तो सामने वाला भी पत्थर मार सकता है तब हमारा जो खून निकलेगा वह भी सामने वाले की तरह लाल ही होगा.
गुरुवार, 28 अगस्त 2008
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