आज के दैनिक भास्कर में जयप्रकाश चौकसे जी का कालम परदे के पीछे में एक नई बात पढने को मिली के जब सभी लोग नो मोर चीयर लीडर के नारे लगा रहे है तो इन जनाब की धारा के विपरीत राय पढने को मिली। ख़बर का हेडिंग था तमाशे की जान, तमाशे की आन। उन्होंने लिखा कि सांस्कृतिक आक्रमण की थोथी दलील में कोई दम नही है क्योंकि संस्कृतियाँ तरल होकर एक दुसरे में मिल जाती है। कुछ लोगों को आपत्ति है की चीयर लीडर की तरह नाच गाना हमारी परम्परा नही है वे भूल जाते है की इस क्रिकेट का जन्म भी विदेश में ही हुआ है।
जनाब मजा आ गया क्या कहना क्या लिखा। वाकई मे आज के ज़माने में किसी का असली चेहरा पहचान पाना आसन नही है। जब नेताजी के चुनावी प्रचार मे शराब और शबाब का बोलबाला होता है तो किसी को आपति नही होती है। अगर इस पर भी उनका मत ये हो की हम तो भारतीय को नाचते है तो इससे भी बुरी बात और क्या होगी। जश्न तब भी होता है और यहाँ भी हो रहा है बुरा है। नेताजी अक्सर दूसरो को प्रवचन देने के दौरान ये भूल जाते है कि उनका कुर्ता अभी भले ही साफ दिख रहा हो दाग उन पर भी है। बस नेताजी सस्ते मे काम चलते है और इन किरकेट वालों के पास पैसा ही पैसा है और इन आई पी अल वालों के पास कोई कमी नही है फ़िर कोई सस्ते मे कम क्यो चलाए अब नेताजी के लिए चेलेंगे तो यह भो होगा कि नेता इतना कोस्ट एफ्फोर्ट कर पते है या नही। नेता जी कुछ करो ये इन्डिया के क्रिकेट के चक्कर में इंडियन वोटर भी अब फोर्गिन वालियों कि डिमांड करने लगेंगे। आगे एलेक्टिन जितना हो तो व्यवस्था तो करनी ही होगी वरना अगली बार सरकार आने के चांस नही के बराबर है
2 टिप्पणियां:
यह लेख सुबह मैने भी पढ़ा था.. इस बात से पूर्णतया सहमत हु..
बात तो वाकई काबिलेगौर है चौकसेजी की.
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