शनिवार, 3 मई 2008

समझौता एक्सप्रेस पर पुस्तक

शरहद पर से सवेरे सवेरे कुछ मुलाझिम आए थे

साथ अपने अपने देश की मति की महक लाये थे

आकर खड़े थे दरवाजे पर, अन्दर बुलाया तख्त लगवाया

हालचाल पूछे और हाथ पैरों को धुलवाया

दिल की बाते करने को अपने पास बिठाया था

बातों के दरमियाँ हुक्का भी बढाया था

भूखे प्यासे जान कर तंदूर पर मक्के की रोट बनाया था

साथ खाने को मेरा यार परदेश का गूड लाया था

तभी आँख खुली तो देखा चारों और विराना था

तनहा अकेला साया हूँ कोई मेरे पास ना था

मगर ये मन जो मानने को तैयार ना था

जाकर देखा तो तंदूर बाहर से तपा था

और होठों पर गूड का स्वाद मीठा था

क्यो आख़िर ऐसा क्यो हुआ सयद

कोई सपना था हाँ सच में वोह सपना ही होगा

किसी ने बताया कल रात सरहद पर शोर था

कुछ गोलियां चली थी , इंसानियत का खून था
आपको कुछ इसी तरह की नसीरउद्दीन साहब की आवाज में जगजीत सिंह जी की एक घजल की पंक्तियाँ तो याद ही होगी ना समझोता एक्सप्रेस कभी भारत में हथियार तो कभी नकली नोटों को लाने का आरोपी मानी जाती है वाही रेल कई बार हमारे यहाँ के मुलजिमों को उनके बंधुओं से पक लेजा कर मिलाती है तो वाही ट्रेन कई बार हमारे लिये भी कई जशन के अवसर लेकर आती है इस बार यह रेल हमारे देश में पाकिस्तान के 20 सदस्यीय लेखकों का दल शुक्रवार को अटारी बार्डर के रास्ते यहां लायी है । जो 15 दिन के वीजा के साथ दिल्ली आया है। इस दल की अगुवाई कोई राजनीतिक पार्टी के नेता नहीं बल्कि पाकिस्तान के प्रसिद्ध लेखक अवेश शेख कर रहे जिन्होंने उर्दू में समझौता एक्सप्रेस नाम से एक किताब लिखी है। उर्दू में लिखी इस किताब का बाद में हिंदी अनुवाद करके प्रकाशित किया जाएगा। इस किताब में बताया गया है की दोनों देशों के बीच पुल का काम करने वाली समझौता एक्सप्रेस अहम है। समझौता एक्सप्रेस दोनों देशों की अवाम के लिए दुख के साथ-साथ सुख के क्षण भी देती है। तमाम बनते-बिगडते रिश्तों की समझौता एक्सप्रेस वह गवाह है जिसे भुलाया नहीं जा सकता। उम्मीद है की इस पुस्तक को जल्द ही हमारे यहाँ भी प्रकासीत किया जाएगा उम्मीद है की इस किताब से दोनों देशों के साहित्यप्रेमियों को लाभ होगा जो स्वस्थ सम्बन्ध बनने में सहायक साबित होगा

1 टिप्पणी:

Prabhakar Pandey ने कहा…

सुंदरतम ।