रविवार, 4 मई 2008

सुबह हो गई मामू


हर सुबह अपने को ही देखकर हँसता है ये शहर
भोपाल। जिन्दगी के बारे में कहा जाता है कि सफर बहुत लंबा है मेरे यारों हमेशा चलते रहिये दिल किसी से मिले या न मिले मगर मुस्कुराते रहिये वास्तव मैं जीवन में मुस्कुराने का बहुत महत्व है मगर हँसना तो इससे भी एक कदम आगे कि बात है शायद आज से दस पन्द्रह साल पहले किसी ने ये सोचा भी नही होगा कि उनके बाद आने वाले भारत के वासियों को अपने स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए कोशिश करके हँसना पड़ेगा पहले मैं जिस दुनिया मैं था वहां ये सब कृत्रिम रूप से करने कि जरूरत नही पड़ती थी बोले तो मेरा घंव जहाँ पर हमे न ही तो रात क नींद के आने का इन्तजार करना पड़ता था और न ही अपने स्वाथ्य को बनाये रखने के लिए योग प्राणायाम या लाफ्टर थेरेपी कि जरूरत होती थी कितनी बढ़िया थी वह दुनिया , मैं बात कर रहा हूँ अपने गाँव की जहाँ हर आदमी दिन भर जी जान से काम करता था कि ये साडी कसरतें कमजोर पड़ जाती थी खैर शहर मैं आ कर पता चला की लोग कुछ ऐसा भी करते है फ़िर भी पहले वाले शहर मैं मैं एक मध्यम वर्गीय कालोनी मैं रहता था इन सब से दूर मगर भोपाल का अरेरा तो अमीरी के लिए जन जाता है शायद इसी लिए मुझे यह चलन आरंभ के दिनों मैं ही दिख गया हास्य दिवस पर आप और हम भी जाने इस हसी की कुछ अन्दर की बातें इस शहर मैं 125 तरह के 'लाफ' यानी हँसाने के केन्द्र है जिनके सहर कई लोग हँसने की कोशिश करते है इनमे छिपा है तन-मन की सेहत का राज। इनके सहारे भोपाल वासी हंसा करते है और तनाव और निराशा के चलते कई लोग दुनिया छोड़ने का फैसला कर लेते हैं। इन केन्द्रों में कई सेवानिवृत्त लोगों के अलावा युवा और महिलाएं भी शामिल है अभी भोपाल में हास्य योग के ऐसे 27 केंद्र चल रहे है और इनके पंजीकृत सदस्यों की संख्या ढाई हजार है। नौकरी से अवकाश प्राप्त कर चुके अथवा बीमार लोगों के लिए ये केंद्र संजीवनी जैसे साबित होते बताये जा रहे है। आज की दौड़ भाग की जिंदगी मई आदमी पैसा कामने के लिए क्या क्या नहीं करता है उसके बाद फ़िर मन को हैं कैसा ? पूरे जीवन भर की भागदौड़ के बाद मन की शान्ति के लिए ये केन्द्र कहा तक कारगर साबित होते है ये तो नहीं कहा जा सकता है मगर इस ज़िंदगी को देखकर तो मुझे मुन्नाभाई एम बी बी एस फ़िल्म की याद आ जाती है और उस फ़िल्म का ऐ के अस्थाना बोले तो बोमन इरानी याद आ जाता है वो मामू जिस तरह से साडी थेरेपी अपनाने के बावजूद भी परेशान रहता है इसके पीछे उसका काम ही जिम्मेदार होता है उसी तरह हमारे जबरदस्ती से हंसने वालों के बुरे स्वास्थ्य और तनाव के लिए भी ये ही जिम्मेदार होते है इस लिए मामू अपने आप को बदलो जैसे उस फ़िल्म के एंड में डाक्टर अस्थाना भी बदल जाता है तो तुम क्यो नही बदल सकते हों भाई इस पुरी कहानी बोले तो फ़िल्म की आधी स्क्रिप्ट का यही मतलब है कि आप अच्छा करेंगे तो आपके साथ भी अच्छा ही होगा और बुरा करोगे तो मामू ................ऊपर वाला बहु जोरदार है जो किसी न किसी मुन्ना को जर्रोर भेजेगा तुम्हे जादू कि झप्पी देने के लिए , फ़िर रहना तैयार

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