सोमवार, 12 मई 2008

बड़े काम की चीज है सायकल

रहिमन देखा बदें को लघु दीजिये डारी
जहाँ काम आए सुई , का करे तलवारी
भाई साहब ये तो थी मेरी मन की बात।
अब आप पूछेंगे की इस सायकल का रहीम दास जी क्या लेना देना है, तो मैं बताता हूँ, कुछ दिनों पहले की बात है हमारे एक सनीयर हमसे मिलने आए हम भी नेट खबरें पढ़ रहे थे और हमने अपनी एक सहपाठी जो एक अख़बार मैं काम करती है उससे कहा कि अबे स्टील के रेट बढ़ने से सायकल बन्नने वाली कम्पनियों ने सायकल के दाम ज्यदा कर दिए है जिससे आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ जायेगी इस पर तुम स्टोरी कर सकते हो।
हमारा बस ये कहना ही हुआ था की अग्रज हमे शिक्षा देने लग गए की आज कितने लोग है जो साईकिल चलते है हमारे पेपर का रीडर साईकिल पर चलने वाला नहीं है हम इलीट क्लास के लिए लिखते है।
खेर इनका उपदेश भी समाप्त हो गया वे ही महाशय अगले दिन उस अखबार के दफ्तर के सामने दिखे जो ठेले और खमचों वालों का अख़बार ही माना जाता है।

मुझे एक बात ये समझ मे नहीं आई की हम सब सच जानते है तो फ़िर ये झूठा आवरण क्यो ? सच ये है की आज हमारे देश में आधे से ज्यादा लोग गाँव में रहते है जहाँ आपकी फटफटिया से कई गुना ज्यादा लोग साइकिलों से सफर तय करते है। इस पर अगर यदि हम गाँव के लोग को मूर्ख और सायकिल को घृणा की नजर से देखने लगे तो फ़िर वो गया कल्याण आज जितना पेट्रोल खपत होता है उसका कई गुना तेल चाहियेगा , और जब आज की डिमांड को हम पुरा नहीं कर पा रहे है तो फ़िर हमारा भविष्य तो राम भरोसे होगा।

फ़िर तो सारा झंझट ही खत्म हो जाएगा आप भी साईकिल से चलेंगे और गांवों मे रहने वाला गवार भी साईकिल से सवारी करेगा शान से ,और आप मजबूरी से ।

है न मजे वाली बात ।

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