भाई साहब सात मई एक ऐसा दिन जिसका कई बार इन्तजार सा रहता है ।
पता नहीं क्यो मिडिल क्लास से है तो कई बार हम जैसे लोगों को लगता है कि सबकुछ आसानी से हो जाए मगर ये सबकुछ लाइट कैमरा एक्शन जैसा नही है ना भाई सात मई को हमारा भी बर्थ डे होता है ना भाई जैसे जैसे हम बड़े होते जा रहे है तो हमारे हाल भी सुधारते जा रहे है ।
भई याद नहीं आता है कि बचपन में कहाँ पर हमारा बर्थ डे मानता था भई हमारे बापूजी गाँव के रहने वाले वहां न तो मोमबत्ती मिलती थी और न ही केक मगर अब हालात बदल गए है वहां भी कुछ कुछ तो मिलने लगा है ये बात हमे शहर आकर पता चली है।
पांचवी तक पढ़ने के बाद हम नवोदय में चले गए वहां गिर्ल्स हॉस्टल में तो भूल-चुक से बर्थ डे कि क्लेपींग कि आवाज सुनाई दे देती थी मगर बोय्स हॉस्टल मैं एसे मौके बहुत कम आते था और कभी लड़को बोले तो कड्को की बस्ती मैं भी रोनक आती थी । नवोदय के बाद फ़िर वाही चार दिन कि चांदनी वाली बात लेकिन वक्त गुजरा और इस तारीख के साथ एक और रिश्ता जुड़ गया वह थे मेरे सबसे प्यारे दोस्त रतन कुमावत की की वेडिंग अनिवेर्सेरी थी ।
इसके बाद हम उदयपुर आ गए कॉलेज में पढने को मेरे साथ बड़े भाई भी थे वो एम ऐ कर रहे थे तो मैं बी ऐ . यहाँ भी हमारी दोस्ती का दायरा काफी सीमित था फ़िर आगे चलकर ये दिन एक और याद जुड़ गई मेरी मौसी की लड़की सुधा और कविता की शादी भी इसी दिन को हुयी थी इसी प्रकार जब डिप्लोमा कर रहे थे तो हमारे बैच मैं नंदू भइया और सना थी तो उन्होंने भी धीरे से सारी तैयारियां कर ली और फ़िर बताया पत्रिका में काम करने के दोरान पिछले साल इस दिन नरेश भाई और दिनेश नही माने तो उन्होंने भी जमकर मजा उठाया ।
इस साल भी हमारा तो ऐसा कोई इरादा नही था मगर जब सबको उनके बर्थ डे पर हमारी लात पड़ी हो तो कई कैसे मौका चुक सकता है और हुआ भी वही शांतनु और प्रवीन ने पुरा मजा लिया और सुबह नेताजी ने बची खुची कसार पुरी कर दी ।
खैर शाम को केक वेक सबकुछ हुआ मगर आब जब मैं इस के बारें में सोचता हूँ तो लगता है की उसका क्या मतलब है आपको सभी लोग फ़ोन करते है अपना टाइम निकल कर आपके लिए परेशान होते है और ये केक वेक सब बकवास है बात पैसे की नहीं है मगर इन सब चोंचलों की जरूरत ही क्या है ।
जब आप किसी के लिए प्रेम स्नेह और सम्मान रखते है तो ये सब महत्वहीन से प्रतीत होते है मेरा कहने का मतलब भाव बिन सब सून अब जब हम जो है सो रहें तो ही अच्छा है हमारा तो एक ही सिद्धांत है जो बचपन मैं मेरी तरह पढे तो हम सभी होंगे मगर शायद आज कहीं भूलते जा रहे है किसी ने कहाँ था कि सादा जीवन उच्च विचार फ़िर भी वक्त के साथ बदलना जरूरी है मगर इतना भी नही बदल जाए कि देशी छोरी परदेशी चाल वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है ।
सो भाई मेरे इन अमीरों के चोचलों में कुछ भी नहीं रखा है इन मुखुतों के सहारे अपना असली चेहरा छुपाया नहीं जा सकता है कभी न कभी वो सामने तो आ ही जाएगा फ़िर इन मूखौटों का बोझ क्यो तौका जाय