शुक्रवार, 16 मई 2008

क्या इंसानियत अब भी जिंदा है ?

कहते है कि आप भले तो जग भला, राजस्थान हमेशा से ही लोगों के आंसू पोछने में आगे रहा है उसी का नतिजा है कि अब यहाँ पर भी सेवा के हाथ बताने वालों की कमी नहीं है । आज कही पढने को मिला जहाँ एक तरफ़ हमारे हाथ तो हमारी सेवा मैं है ही साथियों ने हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया है।
जयपुर के नजरों को देखने आए पर्यटकों से भी नही रहा जा रहा है और वे दिन रात लोगों की मदद कर रहे है। जहाँ एक और मेडिकल होस्टल के डॉक्टर और मेडिकल स्टूडेंट्स और नर्सिंग के बच्चे जुटे है रहत देने के इस प्रयास में ।
समाचार से ज्ञात हुआ कि जो भारत के रंग और जयपुर के दृश्यों को देखने के लिए आए और यहाँ का ये हाल देखा तो, खुद भी जुट गए एक त्रासदी से बचाव करने मे । अपनी पसंद के शहर को जब मुश्किल में देखा तो होटल में छिपने के बजाय, दो अमेरिकी पर्यटकों रक्तदान करने के लिए और उन घायल हुए लोगों की सहायता के लिए हॉस्पिटल जा पहुचे, समाचार पत्र में भी जब पढ़ा की कर्फ्यू के बावजूद रक्तदान करने वालों की लाईन कम नही थी तो लगा कि अभी भी हमारे खून में उबाल बचा है ।
उन सभी हाथों को मेरा प्रणाम उन कन्धों को मेरा धन्यवाद ।

एरिक और उसके दोस्त को इंडिया आए हुए चार पांच दिन ही हुए थे और जिस दिन ब्लास्ट हुआ वे किसी काम के सिलसिले में जयपुर से बाहर सयद किसी शादी में गए थे मगेर विस्फोट के बाद अगले दिन पता चला कि साठ लोग मरे है दो सौ सोलह घायल है और ब्लड डोनेट करने वालों कि जरूरत है और उन्होंने मरीजों की मदद की
अब एक बात उन लोगों की भी कर ली जाय जो इस तरह के हालात में भी अपने हितों के पीछे पड़े रहते है। मैं बात कर रहा हूँ उन दवाईयों के दूकानदारों की जिन्होंने घटना वाली रात अपनी दवाओं को जम कर ऊँची कीमत पर बेंचा। इस पर शिकायत का भी कोई असर नहीं हुआ समझ में नहीं आया।
ये घर में धंधा आड़ा कब से आने लगा है ये बात शायद किसी कलयुगी बनिए से छुपी हुयी नहीं थी कि तब हालात क्या थे और वेसे भी इन मेडिकल वालों कि कमायी कम होती ही कहाँ हैं फ़िर कुछ मौकों पर तो सब्र रखा जा सकता है और सरकार की नीद क्यो नहीं उड़ती है होना ये चाहिए की उन सभी मेडिकल वालों के लायसेंस केंसल कर देने चाहिए जो ना सिर्फ़ उपभोक्क्ताओ को ब्लैक मेल करते है बल्कि देश के दुश्मन होने जैसा काम करता है।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

इंसानियत और हैवानियत समाज में साथ साथ रहते हैं. कभी इंसानियत जोर मारती है तो कभी हैवानियत. आज कल हैवानियत की इनिंग्स चल रही है, पर इंसानियत भी कभी कभी जोर मारती है. इंसानियत इंसान को इंसान के रूप में देखती है. हैवानियत इंसान को धर्म, जाति, नस्ल, भाषा, देश, प्रदेश के हिसाब से बाँटती है. जयपुर में हैवानों ने निर्दोष नागरिकों की हत्या की. पर वहाँ की फिजा ने विदेशिओं को भी मदद करने के लिए उकसाया. हाँ कुछ दवा बेचने वाले हैवान बन गए.