रविवार, 18 मई 2008

समीक्षा मतलबों का गणित बदल देता है

भोपाल
एक दो दिन पहले कोई समाचार पत्र पढ़ा रहा था तो पता चला कि माधुरी का मतलब माँ अधूरी भी हो सकता है । अरे भाई में उसी रिपोर्ट का जिक्र कर रहा हूँ जिसमे संवाददाता ने हल ही में विदेश यात्रा से लौटे एक कलाकार के हवाले से जाहीरकिया है कि जब अपने प्रवास के दौरान वे भारत से निष्कासित कलाकार मकबूल फ़िदा हुसैन से मिले तो उन्होंने बताया कि उनकी माधुरी कि परिभाषा ग़लत कि जाती है उनकी इस माधुरी की परिभाषा तो उनकी माँ की याद से जुड़ी है। जिस कमी को वे आज भी काफी महसूस करते है । तो भइया या जब ये ख़बर अखबार में आई है तो हम भी भारत के उस साठ प्रतिशत जनमानस की तरह आंखें मीच कर भरोसा कर लेते है की ये सच ही होगा मगर फ़िर भी मेरे मन में कुछ विचारों के बुलबुले उठा है अगर उनका निवारण नहीं किया गया तो वे कल तक दाग बन जायेंगे और मेरे पास इतनी हिम्मत नहीं है की लगा चुनरी में दाग को रिन सुप्रिन से धो सके।
चलो इस बयानके आधार पर उनको माधुरी की पंटिंग बनाकर लाखों युवाओं के दिलों को तोड़ने की खतासे बरी कर दिया जा सकता है मगर हिंदू देवी देवताओं की पेंटिंग के बरे में उनका क्या बचाव है । इसी तरह उनके उस कम पर क्या कहना जिसमे पिछले दिनों उन्होंने नई नवेली विवाह फेम हिरोइन अमृता रावके बारे में बड़बोलापन दिखाया और ऐश अभिषेक की शादी के अवसर पर बाबुल मोरा नेहर छूटो जाय बनाई थी जिस पर काफी बवाल मचा था।
एक बात तो तय है किअब मकबूल साहब कई देशवासियों के दिलों से कलाकार का वो दर्जा खो चुके है जिसे वापस पा पाना आसान नहीं है। उस पर समय समय पर उनके नित नए स्टंट उनकी बची खुची इज्जत को भी मटियामेट करने वाले होते है।
मैं उन कलाकार से माफ़ी मांगना चाहूँगा और ये स्मरण भी करना चाहता हूँ कि समीक्षा से किसी के गुण-अवगुण का विवेचन किया जा सकता है वहीं आलोचना से अवगुणों की और दयां केंद्रित कराया जा सकता है मगर उन कलाकार का ये काम इन दोनों कार्यों से दूर वकालत कि श्रेणी में आता है और जब तक किसी के कर्म उम्दा नहीं हो कोई कम का नहीं होती है। वकालत से किसी व्यक्ति को एक पल के लिए महिमा मंडित किया जा सकता है साचा पर परदा डाला जा सकता है मगर ये सब कागज के फूलों से खुशबू आने जैसा है अगर कोई कहे कि अब ये परफ्यूम से सम्भव है तो उसमे कोमलता कहाँ से लाओगे।
इस लिए उन संदेशवाहक कलाकार और मकबूल साहब के समीक्षक से कहना है कि उन्होंने माधुरी का मतलब तो माँ अधूरी बता दिया है मगर फ़िदा साहब की अमृता का अर्थ भी पुंछते आते ।
शायद इसी बहाने हमे भी कुछ नया सिखने को मिल जाता ।

1 टिप्पणी:

विजयशंकर चतुर्वेदी ने कहा…

दोस्त, अगर मैं कहूं कि पहले अपनी हिन्दी दुरुस्त कर लीजिये, तो बुरा नहीं मानिएगा. भाषा बहुत लोगों की अच्छी होती है. लेकिन बुरी भाषा में भी ज़हरीले ख़याल प्रसारित किए जा सकते हैं ये आपने कर दिखाया. आपका कोटिशः धन्यवाद!