गुरुवार, 29 मई 2008

क्या रिजल्ट मेल फिमेल देखकर आता है

हमारे यहाँ पिछले दिनों सीबीएसई की बारहवी का रिजल्ट घोषित हुआ जिसमे कोई फेल हुआ है और कई पास हुए है। चाय नास्ता, पार्टी, पूजा और पता नहीं क्या-क्या नहीं हुआ। इस सब खेलों से हटकर अखबारों ने जो समाचार छापे है उनमे सबसे तुच्छ बात है वह ये है की रिजल्ट को जब जनरल, एससी एसटी या ओ बी सी के आधार पर नहीं बांटा जा सका तो अखबारवालों के पास जो सबसे बेहतरीन तरीका था कि रिजल्ट में ट्विस्ट लाने के लिए उसे बोयस-गर्ल्स के आधारपर बाँट दिया जिससे समाचार में रोचकता कायम रही।
इस तरह कोई पेपर लिखता है बारहवी में लड़कों ने बाजी मारी तो कोई लिखता है लड़कियां इस साल भी लड़कों से आगे फ़िर आगे कोई बताता है की यहाँ परीक्षा में शामिल होने वाले स्टूडेंट्स में इतनी लड़कियां थी और इतने लड़के थे जिसमे से ये पास हुए और इतने फ़ेल है।
मन की समज में सबको समानता का अधिकार है नारी को प्रोत्साहन आवश्यक है इसका मतलब ये नहीं की किसी इसी प्रथा को जन्म दिया जे जो लांछित करने वाली हो वैसे भी परिवारों में लड़कों को फक्कड़, नाकारा , नालायक , आवारा और लाफाडी जैसे उपमानों से नवाजा जाता है। वहीं लड़कियों को मेरी बच्ची , पुत्तर और राजाबेटा कहकर प्यार लुटाया जाता है। अगर कोई लड़की फरमाइश करे तो उसे पल भर मे पुरा कर दिया जाता है और बेचारे ये लड़के अगर चवन्नी मांगे तो भी फटकार के अलावा कुछ नहीं मिलता है। आफ डी रिकार्ड ये बात भी सच है की लड़कों के रिजल्ट बिगाड़ने में लड़कियों का बड़ा हाथ होता है।
और इस पर ये अखबार वाले तो रहम करें क्यो बच्चों की जान लेने को पीछे पड़े है ।

1 टिप्पणी:

PD ने कहा…

:)
lagta hai aap bhukt bhogi hain.. :D