शुक्रवार, 2 मई 2008

भविष्यवानियों का यहाँ भी कुछ करों

बच्चा, तेरे भाग्य में आज पिज्जा हट का पिज्जा लिखा है .............................
.................तेरे भाग्य पर शनि की छाया है ,
राहू तेरे पीछे पड़ा है। गुरु-मंगल झगड़ रहे है,
बुध अशांत लगता है और केतु भी शुक्र के घर मे जा बैठा है।.............साथ ही
ना जाने कैसी-कैसी भविष्यवाणी करने वालों की अब खैर नहीं।
अरे जनाब हिंदुस्तान में तो यह धंधा युग युगान्तर तक जारी रहेगा। जब तक हिंदुस्तान में हम है किसकी मझाल है कि धरम-अधर्म , पाप और पुन्य के साथ-साथ अंधविश्वासों का काम चलता रहेगा। हमारे देश में नेता , वकील , डाक्टर , पत्रकार , चपरासी, बाबु और ढोंगियों का धंधा हमेशा निरंतर चलता रहेगा। भाई क्या करें गन्दा है पर धंधा है क्या करें पापी पेट के लिए क्या क्या नही करना पड़ता है।
अंग्रेज भी तो अपने पेट के साथ साथ मन की पैसे की भूख को मिटने के लिए कई देशों को अपना गुलाम बना दिया। उनमे हमारा देश भी शामिल था उसी की बदौलत हमें कई साल खाक छाननी पड़ी। आजाद होने के बाद हमारे यहाँ के लोगों की महत्वाकांक्षा बढ़ी तो लोगों ने सात समंदर पर कर लिए चले गए।
मगर ये अंग्रेज भी बड़े बदमाश है कभी हमारे यहाँ के डाक्टर्स को रोकने के प्रयास करते है तो अब हमारे ज्योतिषियों के धंधे को लगाम लगाने का प्रयास किया।
ब्रिटेन ने नए उपभोक्ता संरक्षण के तहत कोई भी जजमान किसी भी ज्योतिष और भविष्यवाणी करने वाले को कोर्ट लेजा सकता है। इस वजह से हमारा यूरोपीय महाद्वीप मैं फैला एशियाई देशों का यह टिन सौ बीस करोड़ का बिजनेस चौपट हो जाएगा। जैसा कहा जा रहा है यह कानून छब्बीस मई से लागु हो जाएगा।
दूसरो के भविष्य को देखने वाले इन महानुभावों को न जाने कब अपने भविष्य पर लगा प्रश्नचिंह नहीं दिखा क्या ?माना कि इस ज़माने में हम पंडिताई के पड्पंच में नहीं पड़ना चाहते है मगर एक बात तो सही है कि उन विकसित देशों में भी ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है जिनकी तंत्र मंत्र में गहरी श्रद्धा है। तभी तो इतने दिनों हमारा यहाँ के टेलेंट को वहां पर रोजगार मिल रहा था। भेड़ों की कतार में जहाँ हम उनकी संस्कृति पर टूट पड़ रहे है वहीं वे भी हमारी अंध परम्पराओं को अपनाते जा रहे है। वहां भी एक अंधी दौड़ भी है जो कहाँ जा रही है उनको भी पता नहीं है।
इस पर भाई साहब मेरा ये मानना है कि जब हम हर मामले में उनके पीछे दौडे चले जाते है तो फ़िर ऐसे कानूनों को क्यों नजर अंदाज कर देते है क्यो हमारे यहाँ भी कोई ऐसा कानून नही बनता है जिसकी अगली सुबह से हमारे देश में कोई भी अन्धविश्वास के नाम पर ठगा नहीं जाए। इस मामले में समझ में नहीं आता कि कौन आगे आए क्योंकि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया ख़ुद नाग-नागिन दिखाने में लगा हुआ है ...................
ठीक हैं भई जो चल रहा है चलने दो भगवान हम सबका भला करेगा ।

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