गुरुवार, 29 मई 2008

ओवर एज नहीं है इंडियन डेमोक्रेसी

अक्सर लोग चर्चा करते है कि हमारे देश के लोकतंत्र में ये हो रहा है, वो हो रहा है। हमारा लोकतंत्र बिखरता जा रहा है और ये ज्यादा दिन नहीं चलेगा। लोगों के इस तरह के तमाम बयान पुरी तरह से खोखले लगते है। जब हम लोगों की लोकतंत्र में गहरी श्रद्धा पाते है कभी कभी हमे ऐसी रौशनी दिखाई देती है जो हमको तमसो मा ज्योतिर्गमय का संकेत देती है।

आज मैं सत्ताईस मई का दैनिक ट्रिब्यून देखा रहा था उसके पहले पेज पर एक फोटो छपा था जिसने मुझे कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था। यहाँ फर्स्ट लीड के स्थान पर समाचार था पंजाब चुनावों में हिंसा एक कि मौत कई घायल हालांकि ये एक निराशा पैदा करने वाला समाचार था मगर इसके साथ जो फोटो था वो देखकर मन प्रसन्न हो गया।

फोटो में तीन युवाओं को दिखाया गया है जो चुनाव के लिए मतदाताओ को ला रहे थे केप्सन था

सोमवार को अटारी मतदान केन्द्र पर निब्बे साल की प्रकाश कौर व पिछत्तर वर्षीय सुरजीत सिंह को मतदान केन्द्र पर लेट उनके परिजन -

यह फोटो विशाल कुमार का था जो लोकतंत्र में चुनाव की छवि को मानसपटल पर इंगित करता है। अगर किसी स्थान पर मात्र बीस से पच्चीस प्रतिशत मतदान हो और दुसरे स्थान पर साथ प्रतिशल मतदाता वोट डाले तो माना जाता है दुसरे स्थान के लोगो में लोकतंत्र के प्रति ज्यादा विश्वास है। ऐसी स्थिति न आए इसके लिए चुनाव वाले दिन नेताजी के घर के वाहनों के साथ-साथ उनके सारे रिश्तेदारों और सभी चुनावी पार्टियों के वहां लगा जाते है ताकि ज्यादा मतदान,लोकतंत्र में जनता की ज्यादा भागीदारी,ज्यादा जन जागरूकता का प्रमाण, जन सेवा की भावना तथा ज्यादा मतान्तर से जीतने की भूख सबकुछ आदि कई ऐसे तत्त्व है जो इसमे सक्रीय रहते है। चुनावों में सारे लोग लादकर लाये जाते है ताकि ये भी बताया जा सके की फलां सरकार के बनने में जनता का कितना बड़ा हस्तक्षेप रहा है। ये बात अलग है कि उन लोगो को लेन में स्याम,दाम,दंड और भेद जैसे सारे उपकरण काम में आते है।

इन सब के बावजूद भी इस फोटो से ये आशा जरूर दिखती है कि हमारे इस वर्तमान के लिए हम ही उत्तरदायी है और यही एकमात्र रास्ता है जहाँ से हम अपना वर्तमान और भविष्य दोनों को बदल सकते है। बस जरूरत इस बात की है कि आखिर कब तक हम यूं ही हनुमान तंद्रा में सोये रहेंगे और कौन जामवंत आकर हमे हमारी ताकत का ज्ञान कराएगा और हम मुश्किलों के जलधि को एक छलांग में लाँघ जायेंगे।

उम्मीद है तब तक हमारा भारत युवा हो चुका होगा और हमारा लोकतंत्र एवर ग्रीन बना रहेगा

1 टिप्पणी:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

भारत कब तक बचपने में जिएगा?
दृष्टि सत्यापन हटाएँ, बाद में बात करेंगे।