गुरुवार, 29 मई 2008

भोपाल पुलिस की धुल में लट्ठामारी

हमारे देश में यूं तो सभी विभागों के दावे वास्तविकता से परे होते है मगर पुलिस की दशा तो माह्शाल्लाह है। खिसियाई बिल्ली खम्बा नोचे जयपुर में विस्फोट हो गया और कभी कान पर जूं न रेंगने देने वाली पुलिस अब जग गई है और सांप तो चला गया है जोश में होश खोकर लकीर को पिटने के खातिर धुल में लट्ठ मारे जा रही है।
इस मामले में हमरे शहर भोपाल को ही ले लीजिए जहाँ पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनजर धारा एक सौ चोवालिश जारी कर दिया था जिसके तहत होटल, लाज,धर्मशाला के साथ-साथ किरायेदारों और होस्टल में रहने वाले छात्रों को भी अपना पहचान प्रमाण देना होगा। इस पर हमारा प्रशासन समय-समय पर इसे तुगलकी निर्णय लेता रहता है जो न सिर्फ़ अव्यावहारिक होते है बल्कि असंभव से होते है इसी वजह से कभी सफल भी नही होता है।
कई आम अन्ग्रिकों की तरह हम भी इस शहर में किसी किराये की कुतिया में रहते है हमारे यहाँ भी एक दादी है जो उस घर को और किरायेदारों को मेनेज करती है जब से हम इस शर में आए है हर रोज आकर 'भेजा 'चाट जाती है और हमे फार्म भरने का ऑर्डर दे जाती है। और अब तक जिन लोगों ने भर कर दिया है उसे भी किसी पुलिस को जमा नहीं करती है बस यूं ही आ आ कर डराती है। हमसे बड़ा भी कई नही है ............ ।
हमरे यहाँ के सरकारी नियम इतने अच्छे होते है जिन पर चला जे तो हमारा देश स्वर्ग बन जाए और आम आदमी जीते जी मर कर स्वर्ग में चला जाए मगर हम पब्लिक है सब जानते है।

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